उद्धरण
अपने समाज के प्रति आलोचनात्मक नज़रिया हमारे भीतर पैदायशी नहीं होता। हमारी जिन्दगी में कुछ ऐसे क्षण रहे होंगे (कोई महीना या कोई साल) जब कुछ प्रश्न हमारे सामने प्रस्तुत हुए होंगे, उन्होंने हमें चौंकाया होगा, जिसके बाद हमने अपनी चेतना में गहरे जड़ें जमा चुकी कुछ आस्थाओं पर सवाल उठाये होंगे – वे आस्थाएँ जो पारिवारिक पूर्वाग्रह, रूढ़िवादी शिक्षा, अख़बारों, रेडियो या टेलीविज़न के रास्ते हमारी चेतना में पैबस्त हुई थीं। इससे एक सीधा-सा निष्कर्ष यह निकलता है कि हम सभी के ऊपर एक महती जिम्मेदारी है कि हम लोगों के सामने ऐसी सूचनाएँ लेकर जायें जो उनके पास नहीं हैं, ऐसी सूचनाएँ जो उन्हें लम्बे समय से चले आ रहे अपने विचारों पर दोबारा सोचने के लिए विवश करने की क्षमता रखती हों।
मक्सिम गोर्की के जन्मदिवस (29 मार्च) के अवसर पर
क्रान्तिकारी सर्वहारा का मानवतावाद सीधा-सादा है। वह मानवता के प्रति प्यार के सुन्दर शब्दों का वाग्जाल नहीं रचते। इसका लक्ष्य है सारी दुनिया के सर्वहारा को पूँजीवाद के शर्मनाक, खूनी, पागल जुए से मुक्त करना और मनुष्य को यह सिखाना कि वह स्वयं को ख़रीदा-बेचा जाने वाला माल या विषयासक्त लोगों को ऐयाशी के लिए कच्चा माल न समझे। पूँजीवाद दुनिया पर उसी तरह अतिचार करता है जैसे कोई असमर्थ बूढ़ा आदमी किसी युवा स्वस्थ औरत पर अतिचार करे और बदले में गर्भाधान नहीं बुढ़ापे की बीमारियां दे। सर्वहारा मानवतावाद प्यार की गीतमय घोषणाओं की मांग नहीं करता, वह प्रत्येक मज़दूर से अपने ऐतिहासिक दायित्व के प्रति चेतना चाहता है और सत्ता पर उसका हक़ चाहता है… विषयलोलुपों, परजीवियों, फ़ासिस्टों, हत्यारों, सर्वहारा वर्ग के दग़ाबाज़ों के प्रति तीव्र घृणा चाहता है। वह उन लोगों के प्रति घृणा चाहता है जो दु:ख का कारण हैं और जो हज़ारों-लाखों लोगों के दु:ख पर पनपे हैं। (मक्सिम गोर्की, कल्चर ऐण्ड द पीपुल)
जब तक लोग अपनी स्वतंत्रता का इस्तेमाल करने की ज़हमत नहीं उठाएंगे, तब तक तानाशाहों का राज चलता रहेगा क्योंकि तानाशाह सक्रिय और जोशीले होते हैं, और वे नींद में डूबे हुए लोगों को जंजीरों में जकड़ने के लिए, ईश्वर, धर्म या किसी भी दूसरी चीज़ का सहारा लेने में नहीं हिचकेंगे।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, मार्च-अप्रैल 2010
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