Category Archives: साहित्‍य और कला

लघुकथा : शार्क और छोटी मछलियां / बेर्टोल्‍ट ब्रेष्ट Short-story – If Sharks were Men / Bertolt Brecht

धर्मं भी अवश्य होगा…। यह उन्हें सिखाएगा कि सच्‍चा जीवन शार्कों के उदर से ही आरम्भ होता है और यदि शार्क मनुष्य हो जाएं तो छोटी मछलियों आज की तरह समान नहीं रहेगी, उनमें से कुछ को पद देकर दूसरों से ऊपर कर दिया जाएगा । कुछ बड़ी मछलियों को छोटी मछलियों को खाने तक की इजाज़त दे दी जाएगी । यह शार्कों के लिए आनन्‍ददायक होगा क्योंकि फिर उन्हें निगलने के लिए बड़े ग्रास मिलेंगे और छोटी मछलियों से से सबसे महत्वपूर्ग जिनके पास पद होगे, वे छोटी मछलियों को व्यवस्थित करेंगी । वे शिक्षक, अधिकारी, बक्से बनाने वाली इंजीनियर आदि बनेंगी। संक्षेप में, समुद्र में संस्कृति तभी होगी जब शार्क मनुष्य के रूप में हो ।

कविता – अगर तुम युवा हो / शशिप्रकाश

बेशक थकान और उदासी भरे दिन
आयेंगे अपनी पूरी ताक़त के साथ
तुम पर हल्ला बोलने और
थोड़ा जी लेने की चाहत भी
थोड़ा और, थोड़ा और जी लेने के लिए लुभायेगी,
लेकिन तब ज़रूर याद करना कि किस तरह
प्यार और संगीत को जलाते रहे
हथियारबन्द हत्यारों के गिरोह
और किस तरह भुखमरी और युद्धों और
पागलपन और आत्महत्याओं के बीच
नये-नये सिद्धान्त जनमते रहे
विवेक को दफ़नाते हुए
नयी-नयी सनक भरी विलासिताओं के साथ।

संदीप/नीतू/बेबी/पवन की कविताएं

सपनों के देश में
आकांक्षाओं की पीठ पर
यथार्थ की जीन में टिकाए अपने पैर
ज़िन्दगी की राह पर
सरपट दौड़ना, चाहता नहीं कौन?
‘आसमान बेधते’ अरुणिम शिखर को
हृदय में बसाना नहीं चाहता है कौन?
मगर
यांत्रिकता की कैद से
आज़ाद नहीं होंगे जब तलक स्वप्न!
स्मृतियों के अपने ही गुंजलक में
भटकेगा मन!

उद्धरण

जब भी नैतिकता धर्मशास्त्र पर आधारित होगी, जब भी अधिकार किसी दैवी सत्ता पर निर्भर होंगे, तो सबसे अनैतिक, अन्यायपूर्ण, कुख्यात चीज़ें सही ठहरायी जा सकती हैं और स्थापित की जा सकती हैं।

होसे मारिया सिसों की पाँच कविताएँ

दफ़्न कर देना चाहता है दुश्मन हमें
जेलख़ाने की अँधेरी गहराइयों में
लेकिन धरती के अँधेरे गर्भ से ही
दमकता सोना खोद निकाला जाता है
गोता मारकर बाहर लाया जाता है
झिलमिलाता मोती
सागर की अतल गहराइयों से।
हम झेलते हैं यंत्रणा और अविचल रहते हैं
और निकालते हैं सोना और मोती
चरित्र की गहराइयों से
ढला है जो लम्बे संघर्ष के दौरान।

पाठक मंच

राजस्थान विश्वविद्यालय (जयपुर) के बाहर दो युवा साथियों (भूलवश नाम याद नहीं) के आत्मीय वार्तालाप द्वारा (ताः 20/12) आह्वान से परिचित हुआ। दोनों साथियों को धन्यवाद कि उन्होंने मेरे वैचारिक स्तर को बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण पत्रिका से परिचित कराया।

कहानी : डिप्‍टी कलेक्‍टरी / अमरकांत

शकलदीप बाबू मुस्कराते हुए उठे। उनका चेहरा पतला पड़ गया था, आँखे धँस गई थीं और मुख पर मूँछें झाडू की भाँति फरक रही थीं। वह जमुना से यह कहकर कि ‘तुम अपना काम देखो, मैं अभी आया’, कदम को दबाते हुए बाहर के कमरे की ओर बढ़े। उनके पैर काँप रहे थे और उनका सारा शरीर काँप रहा था, उनकी साँस गले में अटक-अटक जा रही थी।

‘अग्निदीक्षा’ एक नये मानव के जन्म की कहानी

हम अपने पाठकों से जोर देकर कहना चाहेंगे कि वे इस उपन्यास को एक बार नहीं, कई बार पढ़े जो उन्हें जीवन के आन्तरिक सौन्दर्य से क्रान्ति के संघर्ष में निहित अदम्य प्राणशक्ति से, समष्टि की अपार क्षमता और सृजनशीलता से, और आने वाले उस नये समाज से परिचित करायेगा जिसके लिये हमें अभी एक लम्बी लड़ाई लड़नी है। निश्चित तौर पर यह उपन्यास आपको संघर्ष करने की प्रेरणा और शक्ति देगा और यथास्थिति से विद्रोह करके जीने का सलीका सिखायेगा।

रोना स्त्रियोचित है?

यह एक आम धारणा है कि रोना स्त्रियों का गुण है, मर्द नहीं रोते। वह कवि-कलाकार हो तो दीगर बात है। कवि-कलाकारों में थोड़ा स्त्रैणता तो होती ही है। यह पुरुष प्रधान सामाजिक ढांचे में व्याप्त संवेदनहीनता और निर्ममता की मानवद्रोही संस्कृति की ही एक अभिव्यक्ति है। शासक को रोना नहीं चाहिए। रोने से उसकी कमजोरी सामने आ जायेगी। इससे उसकी सत्ता कमजोर होगी। पुरुष रोयेगा तो औरत उससे डरना बंद कर देगी। वह रोयेगा तो औरत उसके हृदय की कोमलता, भावप्रवणता या कमजोरी को ताड़ लेगी। तब भला वह उससे डरेगी कैसे? उसकी सत्ता स्वीकार कैसे करेगी? वस्तुत: यह पूरी धारणा स्त्री-पुरुष सम्बन्धों के ‘शासक-शासित फ्रेम’ की बुनियाद पर खड़ी है।

पुस्‍तक परिचय – आदिविद्रोही : आजादी और स्‍वाभिमान के संघर्ष की गौरव-गाथा

और जिन्दगी को तुमने कितना गन्दा बना दिया है। इन्सान जो भी सपने देखता है उन सबका तुम माखौल उड़ाते हो। इन्सान के हाथ की मशक्कत का और उसके माथे से गिरे हुए पसीने की बूंद का। तुम्हारे अपने नागरिक सरकार के दिये हुए टुकड़ों पर जीते हैं और अपना दिन सरकस और अखाड़े में गुजारते हैं। तुमने इन्सान की जिन्दगी को एक मजाक बना दिया है और उसकी सारी खूबसूरती लूट ली है। तुम मारने के लिये मारते हो और खून को बहता देख कर तुम्हारी तफरीह होती है। तुम नन्हें-नन्हें बच्चों को अपनी खानों में रखते हो और उनसे इतना काम लेते हो कि वे कुछ ही महीनों में मर जाते हैं। और यह जो सारी दौलत तुमने इकट्ठा की है वह सारी दुनिया की चोरी कर के। मगर अब ये चीज नहीं चल सकती।… अपनी सीनेट से जाकर कहो कि अपनी फौजें हमारे खिलाफ भेजें और हम उन फौंजों को भी उसी तरह काट कर गिरा देंगे जैसे कि हमने इस फौज को काट कर गिराया है और तुम्हारी फौजों के हथियार से हम अपने आपको लैस करेंगे।