उद्धरण
जब भी नैतिकता धर्मशास्त्र पर आधारित होगी, जब भी अधिकार किसी दैवी सत्ता पर निर्भर होंगे, तो सबसे अनैतिक, अन्यायपूर्ण, कुख्यात चीज़ें सही ठहरायी जा सकती हैं और स्थापित की जा सकती हैं।
जब भी नैतिकता धर्मशास्त्र पर आधारित होगी, जब भी अधिकार किसी दैवी सत्ता पर निर्भर होंगे, तो सबसे अनैतिक, अन्यायपूर्ण, कुख्यात चीज़ें सही ठहरायी जा सकती हैं और स्थापित की जा सकती हैं।
दफ़्न कर देना चाहता है दुश्मन हमें
जेलख़ाने की अँधेरी गहराइयों में
लेकिन धरती के अँधेरे गर्भ से ही
दमकता सोना खोद निकाला जाता है
गोता मारकर बाहर लाया जाता है
झिलमिलाता मोती
सागर की अतल गहराइयों से।
हम झेलते हैं यंत्रणा और अविचल रहते हैं
और निकालते हैं सोना और मोती
चरित्र की गहराइयों से
ढला है जो लम्बे संघर्ष के दौरान।
राजस्थान विश्वविद्यालय (जयपुर) के बाहर दो युवा साथियों (भूलवश नाम याद नहीं) के आत्मीय वार्तालाप द्वारा (ताः 20/12) आह्वान से परिचित हुआ। दोनों साथियों को धन्यवाद कि उन्होंने मेरे वैचारिक स्तर को बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण पत्रिका से परिचित कराया।
शकलदीप बाबू मुस्कराते हुए उठे। उनका चेहरा पतला पड़ गया था, आँखे धँस गई थीं और मुख पर मूँछें झाडू की भाँति फरक रही थीं। वह जमुना से यह कहकर कि ‘तुम अपना काम देखो, मैं अभी आया’, कदम को दबाते हुए बाहर के कमरे की ओर बढ़े। उनके पैर काँप रहे थे और उनका सारा शरीर काँप रहा था, उनकी साँस गले में अटक-अटक जा रही थी।
हम अपने पाठकों से जोर देकर कहना चाहेंगे कि वे इस उपन्यास को एक बार नहीं, कई बार पढ़े जो उन्हें जीवन के आन्तरिक सौन्दर्य से क्रान्ति के संघर्ष में निहित अदम्य प्राणशक्ति से, समष्टि की अपार क्षमता और सृजनशीलता से, और आने वाले उस नये समाज से परिचित करायेगा जिसके लिये हमें अभी एक लम्बी लड़ाई लड़नी है। निश्चित तौर पर यह उपन्यास आपको संघर्ष करने की प्रेरणा और शक्ति देगा और यथास्थिति से विद्रोह करके जीने का सलीका सिखायेगा।
यह एक आम धारणा है कि रोना स्त्रियों का गुण है, मर्द नहीं रोते। वह कवि-कलाकार हो तो दीगर बात है। कवि-कलाकारों में थोड़ा स्त्रैणता तो होती ही है। यह पुरुष प्रधान सामाजिक ढांचे में व्याप्त संवेदनहीनता और निर्ममता की मानवद्रोही संस्कृति की ही एक अभिव्यक्ति है। शासक को रोना नहीं चाहिए। रोने से उसकी कमजोरी सामने आ जायेगी। इससे उसकी सत्ता कमजोर होगी। पुरुष रोयेगा तो औरत उससे डरना बंद कर देगी। वह रोयेगा तो औरत उसके हृदय की कोमलता, भावप्रवणता या कमजोरी को ताड़ लेगी। तब भला वह उससे डरेगी कैसे? उसकी सत्ता स्वीकार कैसे करेगी? वस्तुत: यह पूरी धारणा स्त्री-पुरुष सम्बन्धों के ‘शासक-शासित फ्रेम’ की बुनियाद पर खड़ी है।
और जिन्दगी को तुमने कितना गन्दा बना दिया है। इन्सान जो भी सपने देखता है उन सबका तुम माखौल उड़ाते हो। इन्सान के हाथ की मशक्कत का और उसके माथे से गिरे हुए पसीने की बूंद का। तुम्हारे अपने नागरिक सरकार के दिये हुए टुकड़ों पर जीते हैं और अपना दिन सरकस और अखाड़े में गुजारते हैं। तुमने इन्सान की जिन्दगी को एक मजाक बना दिया है और उसकी सारी खूबसूरती लूट ली है। तुम मारने के लिये मारते हो और खून को बहता देख कर तुम्हारी तफरीह होती है। तुम नन्हें-नन्हें बच्चों को अपनी खानों में रखते हो और उनसे इतना काम लेते हो कि वे कुछ ही महीनों में मर जाते हैं। और यह जो सारी दौलत तुमने इकट्ठा की है वह सारी दुनिया की चोरी कर के। मगर अब ये चीज नहीं चल सकती।… अपनी सीनेट से जाकर कहो कि अपनी फौजें हमारे खिलाफ भेजें और हम उन फौंजों को भी उसी तरह काट कर गिरा देंगे जैसे कि हमने इस फौज को काट कर गिराया है और तुम्हारी फौजों के हथियार से हम अपने आपको लैस करेंगे।
तुलसीदास ने मानस में कई जगह लिखा है कि रावण अपने दसों सिरों से बोल उठा या दसों मुँह से ठठाकर हँस पड़ा। रावण ज़्यादातर अपने एक मुँह का इस्तेमाल करता था और जब दसों मुँहों से बोलता भी था तो एक ही बात। पर भाजपा एक ऐसे रावण जैसा व्यवहार करती है जो हमेशा दसों मुँह से दस परस्पर विरोधी बातें करता रहता है।
सुनो युवको, सुनो युवा साथियो
बहुत देर हो चुकी है कि उन्हीं घरों में ठहरा जाये,
जिन्हें तुम्हारे पिताओं ने बनाया था कि जहां तुम
खूब नाम कमा सको, देर हो गयी बहुत
एक औरत जिसकी आंखों में
आजादी की आग के लाल साये
लहरा रहे हैं,
एक औरत जिसके हाथ
काम करते-करते सीख गये हैं कि
लाल झण्डा कैसे उठाया जाता है!