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पंजाब यूनिवर्सिटी के छात्रों का बहादुराना संघर्ष ज़िन्दाबाद

11 अप्रैल की घटना के बाद संघर्ष को पीठ दिखाकर ‘जॉइंट एक्शन कमेटी’ से बाहर हो जाने वाले संगठनों –सोई, स्टूडैंट काउंसिल, एन.एस.यू.आयी, पुसु, ए.बी.वी.पी, आदि –जो 11 अप्रैल के पथराव वाली घटना का सारा दोष छात्रों पर मढ़ रहे थे और खासकर आरएसएस का छात्र संगठन एबीवीपी तो निजी तौर पर संघर्षशील छात्रों को निशाना बना रहा था ताकि पुलिस उनको गिरफ़्तार कर ले। ये लोग अब बेहद बेशर्मी साथ इस जीत का सेहरा अपने सिर बाँधना चाहते हैं। परन्तु छात्र जानते हैं कि कौन खरा है, कौन पूरे संघर्ष दौरान छात्रों का पक्ष लेता रहा है और कौन प्रशासन और सरकार का टट्टू बन बैठा रहा है! इस जीत ने न सिर्फ़ छात्रों के मन में ऊर्जा का संचार किया है, बल्कि एक क्रान्तिकारी संगठन की ज़रूरत का एहसास भी पक्का किया है। साथ ही, इस संघर्ष ने अपना नाम चमकाने के लिये बैठे संगठनों का चरित्र भी नंगा किया है।

लुधियाना बलात्कार व क़त्ल काण्ड की पीड़िता और बहादुरी से बलात्कारियों-कातिलों के ख़िलाफ़ जूझने वाली शहनाज़़ को इंसाफ़ दिलाने के लिए विशाल लामबन्दी और जुझारू संघर्ष

इस संघर्ष के दौरान विभिन्न चुनावी पार्टियों के दलाल नेताओं सहित संघर्ष में तोड़फ़ोड़ करने की कोशिश करने वाली कई रंगों की ताक़तों की जनविरोधी साजिशों को नाकाम करने में कामयाबी मिली है। एकजुट संघर्ष की यह प्राप्तियाँ बताती हैं कि जनता जब एकजुट होकर इमानदार, जुझारू और समझदार नेतृत्व में योजनाबद्ध ढंग से लड़ती है तो बड़े से बड़े जन-शत्रुओं को धूल चटा सकते हैं। लोगों को शहनाज़़ के बलात्कार व क़त्ल के दोषियों को सजा करवाने के लिए तो जुझारू एकता कायम रखनी ही होगी बल्कि स्त्रियों सहित तमाम जनता पर कायम गुण्डा राज से रक्षा और मुक्ति की लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए एकता को और विशाल व मज़बूत बनाना होगा।

हज़ारों इंसाफ़पसन्द लोगों ने दी बहादुर शहनाज़़ को भावभीनी श्रद्धांजलि

ढण्डारी (लुधियाना) बलात्कार व क़त्ल काण्ड विरोधी संघर्ष कमेटी के आह्वान पर 28 दिसम्बर को कड़ाके की सर्दी व सरकार द्वारा पूरे ढण्डारी इलाक़े को पुलिस छावनी में बदलकर दहशत का माहौल खड़ा करने के बावजूद हज़ारों लोगों के विशाल जनसमूह ने अपहरण, बलात्कार, मिट्टी का तेल डालकर जलाए जाने के दिल दहला देने वाले जुल्मों का शिकार व गुण्डा गिरोह के ख़िलाफ़ जूझती हुई मर-मिटने वाली बहादुर शहनाज़़ को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।

पंजाब को भी संघी प्रयोगशाला का हिस्सा बनाने की तैयारियाँ

आज़ादी के बाद चाहे संघ का संसदीय गिरोह भाजपा (पहले जनसंघ) सिर्फ़ एक दशक से भी कम समय के लिए सरकार बना सकी है, परन्तु संघ का ताना-बाना लगातार फैलता ही गया है। सरकार में होना या न होना, फासीवाद के फैलाव के लिए कोई विशिष्ट कारक नहीं है और सबसे अहम और ज़रूरी कारक भी नहीं है। सबसे अहम और ज़रूरी कारक यह है कि ऐतिहासिक तौर पर पूँजीपति वर्ग को फासीवाद की ज़रूरत है। सरकार में आने के साथ इसकी सरगर्मियाँ सिर्फ़ तेज़ होती हैं। इसने भारत के कई प्रान्तों में अपने पैर पहले ही अच्छी तरह जमा लिये हैं परन्तु पंजाब में अभी यह उस हैसियत में नहीं है, अब इसकी तैयारी पंजाब को भी अपनी शिकारगाह का हिस्सा बना देने की है।

शिक्षा में सेमेस्टर प्रणाली – सुशिक्षित गुलाम तैयार करने का नुस्खा

वार्षिक प्रणाली के अधीन विद्यार्थियों के पास आपसी बहस, विचार-चर्चाएँ, सेमीनारों और सांस्कृतिक सरगर्मियों के लिए कुछ-कुछ वक़्त होता था, परन्तु सेमेस्टर प्रणाली ने विद्यार्थियों को अपने ख़ुद के लिए समय से पूरी तरह वंचित कर दिया है। सांस्कृतिक सरगर्मियाँ और सेमीनारों के नाम पर प्रशाशन से “मंजूरशुदा” कुछ दिखावे होते हैं, इससे अधिक कुछ नहीं। विद्यार्थियों की तरफ़ से ख़ुद पहलक़दमी करके बहस, सेमीनार आदि करवाने को शिक्षण संस्थानों का प्रशासन सख़्ती के साथ रोकता है, जिसके लिए विद्यार्थियों को डराने-धमकाने तक के हथकण्डे इस्तेमाल किये जाते हैं। कॉलेजों, यूनिवर्सिटियों के कैम्पसों को समाज से अलग-थलग करने में भी सेमेस्टर प्रणाली काफ़ी प्रभावी है। विद्यार्थी ग्रेड-नम्बरों के चक्कर में उलझ कर सामाजिक घटनाओं और समस्त मानवता से टूटकर रह जाते हैं और भयंकर हद तक व्यक्तिवादी चेतना का शिकार हो रहे हैं।

पंजाब में काले क़ानून के ख़िलाफ़ संयुक्त मोर्चा

पंजाब सरकार द्वारा पारित घोर फासीवादी काले क़ानून ‘पंजाब सार्वजनिक व निजी सम्पत्ति नुकसान रोकथाम क़ानून-2014’ को रद्द करवाने के लिए पंजाब के मज़दूरों, किसानों, सरकारी मुलाजमों, छात्रों, नौजवानों, स्त्रियों, जनवादी अधिकार कार्यकर्ताओं के संगठन संघर्ष की राह पर हैं। करीब 40 संगठनों का ‘काला क़ानून विरोधी संयुक्त मोर्चा, पंजाब’ गठित हुआ है।

स्मृति संकल्प यात्रा के तहत देश के अलग-अलग हिस्सों में कार्यक्रम जारी

23 मार्च, 2005 को भगत सिंह और उनके साथियों के 75 शहादत वर्ष के आरम्भ पर शुरू की गई स्मृति संकल्प यात्रा के तहत देश के विभिन्न क्रान्तिकारी संगठन पिछले दो वर्षों से भगतसिंह के उस सन्देश पर अमल कर रहे हैं जो उन्होंने जेल की कालकोठरी से नौजवानों को दिया था; कि छात्रों और नौजवानों को क्रान्ति की अलख लेकर गाँव-गाँव, कारखाना-कारखाना, शहर-शहर, गन्दी झोपड़ियों तक जाना होगा। इस अभियान के दौरान इन जनसंगठनों ने जो भी जनकार्रवाइयाँ की हम उसका एक संक्षिप्त ब्यौरा देते रहे हैं और इस बार भी यहाँ दे रहे हैं। जिन इलाकों में अभियान की टोलियों ने मुहिम चलाई उनमें उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद, लखनऊ, गोरखपुर, वाराणसी, कानपुर, नोएडा, ग़ाज़ियाबाद, हापुड़; पंजाब में जालंधर, लुधियाना, संगरूर, अम्बाला आदि जैसे शहर और साथ ही दिल्ली समेत पूरा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र भी शामिल है। इनमें से कुछ स्थानों की अभियान सम्बन्धी रिपोर्टें हम यहाँ प्रकाशित कर रहे हैं।