Tag Archives: अविनाश

आपस में नहीं, सबको रोज़गार की गारण्टी के लिए लड़ो!

अब इन आँकड़ों की रोशनी में सोचिए! जब सरकारी प्राथमिक विद्यालय रहेंगे ही नहीं तो क्या सारे बीटीसी वालों को नौकरी दी जा सकती है? या अगर बीएड अभ्यर्थियों को योग्य मान भी लिया जाय तो सभी को रोज़गार दिया जा सकता है? दरअसल आज नौकरियाँ ही तेज़ी से सिमटती जा रही हैं। निजीकरण छात्रों-नौजवानों के भविष्य पर भारी पड़ता जा रहा है। रेलवे, बिजली, कोल, संचार आदि सभी विभागों को तेज़ी से धनपशुओं के हवाले किया जा रहा है। अगर इस स्थिति के ख़िलाफ़ कोई देशव्यापी जुझारू आन्दोलन नहीं खड़ा होगा तो यह स्थिति और ख़राब होगी। इसलिए ज़रूरी है कि आपस में लड़ने की जगह रोज़गार गारण्टी की लड़ाई के लिए कमर कसी जाय।

अग्निपथ: ठेके पर “राष्ट्र सेवा” की योजना

सत्ता में पहुँचने के लिए भाजपा ने अपने चुनाव प्रचार में सेना, देशप्रेम, राष्ट्रवाद, राष्ट्रसेवा का ख़ूब भावनात्मक इस्तेमाल किया था। इस प्रक्रिया में फासिस्टों ने सेना का निरपेक्ष आदर्शीकरण कर इसे सवालों से परे किसी दैवीय शक्ति के रूप में प्रस्तुत किया। लेकिन आज यही सेना के जवान फासिस्टों के ख़ूनी पंजों का शिकार हो रहे हैं।

कर्णन

कर्णन अविनाश उत्तरआधुनिकतावाद के दौर में जेण्डर, रेस, जातियाँ और तमाम अस्मिता या पहचान की राजनीति ने दर्शन, फ़िल्म, कला, संस्कृति व अन्य जगहों पर तेज गति से अपने पैर…

प्रोजेक्ट पेगासस : शासक वर्ग का हाइटेक निगरानी तन्त्र और उसके अन्तरविरोधों का ख़ुलासा

पेगासस स्पाइवेयर को विकसित करनेव वाली टेक फ़र्म एन.एस.ओ. सीधे इज़रायली ख़ुफिया विभाग की देख-रेख में काम करती है। एन.एस.ओ. का दावा है कि वह पेगासस केवल सरकारों को बेचतीं है, इसे किसी निजी व्यक्तियों या संस्थाओ को नहीं दिया जाता है। भारत, यूएई, बहरीन, सऊदी अरब, कज़ाखिस्तान, मेक्सिको, मोरक्को, अज़रबैजान सहित दुनिया के 50 देश इस स्पाइवेयर के ग्राहक हैं। लगभग इन सभी देशों में निरंकुश सत्ता है। पेगासस प्रोजेक्ट के इस खुलासे से पूरी तरह साफ़ हो गया है कि इसका इस्तेमाल सरकार द्वारा अपने ही देश के नागरिकों, बुद्धिजीवियों और सरकार के ख़िलाफ़ उठने वाली हर आवाज़ की जासूसी और दमन के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।

बेरोज़गारी की मार झेलती युवा आबादी

निजी मालिकाने पर आधारित पूँजीवादी व्यवस्था अपनी स्वाभाविक गति से समाज में एक तरफ़ कुछ लोगों के लिए विलासिता की मीनारें खड़ी करती जाती है तो दूसरी ओर करोड़ों-करोड़ छात्रों समेत आम आबादी को गरीबी और भविष्य की अनिश्चितता के अँधेरे में ढकेलती है। मुनाफ़ा पूँजीवादी व्यवस्था की चालक शक्ति होती है। आज विश्व पूँजीवाद मुनाफ़े की गिरती दर के असमाधेय संकट के दौर से गुजर रहा है। पूँजीवादी होड़ से पैदा हुई इस मंदी की कीमत छँटनी, तालाबन्दी, भुखमरी, दवा-इलाज़ का अभाव, बेरोज़गारी आदि रूपों में मेहनतकश वर्ग को ही चुकानी पड़ती है।

फ़ासिस्टों ने किस तरह आपदा को अवसर में बदला!

भारत में फ़ासीवादी सरकार ने इस संकट को भी अपने फ़ासीवादी प्रयोग का हिस्सा बना लिया और थाली-ताली बजवाकर, मोमबत्ती जलवाकर जनता का एक सामूहिक मनोवैज्ञानिक परीक्षण कर यह पता लगाने में एक हद तक सफल भी हो गयी कि जनता का कितना बड़ा हिस्सा और किस हद तक तर्क और विज्ञान को ताक पर रखकर आरएसएस के फ़ासीवादी प्रचार के दायरे में आ चुका है। दूसरी ग़ौर करने वाली बात यह है कि ये फ़ासीवादी अनुष्ठान तब आयोजित किये जा रहे थे जब सीएए, एनआरसी और एनपीआर जैसे विभाजनकारी और आरएसएस के फ़ासीवादी मंसूबे को अमली जामा पहनाने वाले काले क़ानूनों के ख़िलाफ़ देशभर में सैकड़ों जगहों पर शाहीनबाग़ की तर्ज़ पर महिलाओं ने मोर्चा सँभाल रखा था। इन बहादुर महिलाओं के क़दम से क़दम मिलते हुए पुरुष, छात्र, कर्मचारी, मज़दूर यानि देश का हर तबक़ा बड़ी तादाद में सड़कों पर था। सत्ता की शह पर फ़ासिस्ट गुण्डों द्वारा प्रदर्शन पर गोली चलवाने, अफ़वाह फैलाकर आन्दोलन को बदनाम करने, सुधीर चौधरी, दीपक चौरसिया, अर्णब गोस्वामी जैसे पट्टलचाट सत्ता के दलाल पत्रकारों द्वारा फैलाये जा रहे झूठ, हिन्दू-मुसलमान के नाम पर आन्दोलन को कमज़ोर करने की लाख कोशिशों के बावजूद जब आन्दोलनकारी महिलाएँ बहादुरी से इसका सामना करते हुए मैदान से पीछे नहीं हटी तब इन दरिन्दों ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगो का ख़ूनी खेल खेलना शुरू कर दिया जिसमें दिल्ली पुलिस भी इन दंगाइयों के कन्धे से कन्धा मिलाकर आगजनी और तोड़फोड़ में शामिल रही।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 शिक्षा पर कॉरपोरेट पूँजी के शिकंजे को क़ानूनी जामा पहनाने की कवायद

नयी शिक्षा नीति-2020 भेदभावपूर्ण दोहरी शिक्षा प्रणाली को ख़त्म कर न्याय और समानता पर आधारित शिक्षा व्यवस्था लागू करने के नाम पर न सिर्फ़ महँगे निजी स्कूलों के शोषणकारी जाल को बनाये रखता है बल्कि उसे और ज्यादा मजबूत बनाता है। शिक्षा को सबके लिए अनिवार्य और निःशुल्क करने की जगह पीपीपी मॉडल के तहत इसे भी मुनाफ़े के मातहत कर दिया गया है। शिक्षा नीति बात तो बड़ी-बड़ी कर रही है किन्तु इसकी बातों और इसमें सुझाये गये प्रावधानों में विरोधाभास है। यह नीति शिक्षा के स्तर और गुणवत्ता को उन्नत करने की बात कहती है किन्तु दूसरी तरफ़ दूसरी कक्षा तक की पढ़ाई के लिए सरकार की ज़िम्मेदारी को ख़त्म करने की बात कहती है।

‘अच्छे दिनों’ की मृगतृष्णा

ऑक्सफैम की रिपोर्ट के अनुसार 2017 में देश के 1% लोग देश की 73% सम्पत्ति पर कब्जा करके बैठे हैं। अमित शाह के बेटे जय शाह की सम्पत्ति में 16000 गुना की वृद्धि हुई है, विजय माल्या और नीरव मोदी जो 9000 करोड़ और 11000 करोड़ रुपये लोन लेकर विदेश भाग गये। पनामा और पैराडाइज़ पेपर के खुलासे के बाद सरकार की नंगयी साफ तौर पर जगजाहिर हो गयी कि इनका मकसद काला धन लाना नहीं उसे सफ़ेद धन में तब्दील करना है। इस साल रिकॉर्ड ब्रेक करते हुए सरकार ने एनपीए के मातहत 1,44,093 करोड़ रुपये माफ़ कर दिया। एक तरफ धन्नासेठों-मालिकों के लिए पलकें बिछाकर काम किया जा रहा है वहीं दूसरी तरफ कश्मीर से तूतीकोरिन तक जनता के प्रतिरोध को डंडे और बन्दूक के दम पर दबाया जा रहा है। छात्र, नौजवान, मजदूर, किसान, दलित, महिलाएँ सब पर चौतरफा हमला किया जा रहा है। 2 करोड़ नौकरियाँ हर साल देने का वादा, नमामि गंगे में 7000 करोड़ रुपये खर्च किये जाने, 2019 तक सबको बिजली जैसे लोकलुभावन वायदों की हकीकत सबके सामने खुल रही है। अच्छे दिन आये पर धन्नासेठों के लिए, आम जनता की हालात बद से बदतर ही हुई है।

सोप ऑपेरा या तुच्छता और कूपमण्डूकता के अपरिमित भण्डार

ये तमाम सोप ऑपेरा वास्तव में पूँजीवादी समाज की संस्कृति, विचारधारा और मूल्यों का सतत पुनरुत्पादन करने का काम करते हैं; लोगों के विश्व दृष्टिकोण को तुच्छ, स्वार्थी, कूपमण्डूक, दुनियादार और असंवेदनशील बनाते हैं; हर प्रकार की व्यापकता और उदात्तता की हत्या कर दी जाती है। और इस प्रकार भारत के अजीबो-ग़रीब मध्यवर्ग पर मानसिक और मनोवैज्ञानिक नियन्त्रण क़ायम किया जाता है।