राष्ट्रीयता और भाषा के प्रश्न पर एक अहम बहस के चुनिन्दा दस्तावेज़
(सम्पादकीय प्रस्तावना)
16 सितम्बर 2019 से हमारे और पंजाबी पत्रिका ‘ललकार’ के साथियों के बीच राष्ट्रीयता और भाषा के प्रश्न पर एक अहम बहस जारी है, हालाँकि इस पूरी बहस में दूसरे पक्ष से हमें कोई जवाब अभी तक नहीं मिला है। लेकिन सकारात्मक तौर पर ‘ललकार’ की ओर से राष्ट्रीयता और भाषा के प्रश्न पर और विशेष तौर पर पंजाबी भाषा, पंजाबी राष्ट्रीयता, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश के कतिपय अंगों के पंजाब का हिस्सा होने, हरियाणवी बोलियों, हिन्दी भाषा के इतिहास और चरित्र पर जो अवस्थितियाँ रखी जाती रही हैं, उन्हें हम भयंकर अस्मितावादी विचलन से ग्रस्त मानते हैं। यह अस्मितावादी विचलन एक अन्य बेहद अहम और आज देश में प्रमुख स्थान रखने वाले मुद्दे राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर पर भी प्रकट हुआ है, जिसमें कि ‘ललकार’ (और उसके सहयोगी अख़बार ‘मुक्तिमार्ग’) ने असम में नागरिकता रजिस्टर को घुमाफिराकर सही ठहराया है, या कम-से-कम असम में एनआरसी की माँग को वहाँ की राष्ट्रीयता के भारतीय राज्य द्वारा राष्ट्रीय दमन के कारण और प्रवासियों के आने के चलते वहाँ के संसाधनों पर अत्यधिक दबाव पड़ने का नतीजा बताया है। इस रूप में असम में एनआरसी की माँग को राष्ट्रीय भावनाओं और अपनी राष्ट्रीय संस्कृति, अस्मिता और भाषा की सुरक्षा की भावना की अभिव्यक्ति बताया है। यह पूरी अवस्थिति समूचे राष्ट्रीय प्रश्न पर एक मार्क्सवादी-लेनिनवादी क्रान्तिकारी अवस्थिति से मीलों दूर है और गम्भीर राष्ट्रवादी और भाषाई अस्मितावादी विचलन का शिकार है।
हमने इन अवस्थितियों की 16 सितम्बर से ही ‘मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान’ के फ़ेसपुक पेज पर आलोचनाएँ पेश की हैं। इन आलोचनाओं को आम तौर पर विस्तृत निबन्धों और संक्षिप्त टिप्पणियों के रूप में रखा गया था। इन सारे निबन्धों और टिप्पणियों को यहाँ पेश करना आवश्यक नहीं है, क्योंकि एक तो इनमें बहस की प्रक्रिया में कई बिन्दुओं को बार-बार दुहराया गया है और दूसरा इन सभी को एक अंक में समेट पाना सम्भव भी नहीं है। जो सुधी पाठक इन सभी निबन्धों व टिप्पणियों को पढ़ना चाहते हैं, वे पत्रिका के फ़ेसबुक पेज पर जाकर 3 फ़रवरी को डाली गयी पोस्ट को देख सकते हैं, जिसमें कि सभी निबन्धों व टिप्पणियों का लिंक दिया गया है।
हम इस अंक में इन निबन्धों के साथ साथी अभिनव का एक छोटा निबन्ध भी दे रहे हैं, जो कि इस प्रश्न पर मार्क्सवादी-लेनिनवादी अवस्थिति को ससन्दर्भ पेश करता है।
निबन्धों के इस संकलन को हम इसलिए इस अंक में दे रहे हैं क्योंकि यह भाषाई और राष्ट्रीय अस्मितावादी विचलन को अनावृत्त करता है और इस प्रश्न पर सन्दर्भों, उदाहरणों व प्रमाणों के साथ क्रान्तिकारी मार्क्सवादी-लेनिनवादी अवस्थिति को भी पेश करता है। इसलिए मार्क्सवाद-लेनिनवाद में रुचि रखने वाले पाठकों के लिए इसका विशेष महत्व है, विशेष तौर पर उन पाठकों के लिए जो राष्ट्रीयता और भाषा के प्रश्न में दिलचस्पी रखते हैं।
ये निबन्ध भाषा और राष्ट्रीयता का प्रश्न भारत में किस रूप में अस्तित्वमान है और उसके समाधान का समाजवादी कार्यक्रम के मातहत क्या रास्ता होगा, इस प्रश्न के उत्तर की कोई व्यवस्थित और व्यापक प्रस्तुति नहीं हैं। भारत में राष्ट्रीयता और भाषा के प्रश्न पर हम आने वाले अंकों में कई ऐसे निबन्ध पेश करने जा रहे हैं, जो सकारात्मक तौर पर इस प्रश्न के समाजवादी समाधान का रास्ता प्रस्तावित करते हैं। यहाँ हमने क्रान्तिकारी आन्दोलन के भीतर मौजूद एक विशेष धारा की आलोचना मात्र रखी है, जो कि राष्ट्रीय व भाषाई अस्मितावाद के विचलन का शिकार है। इस प्रक्रिया में टुकड़े-टुकड़े में कई नुक़्तों पर बातें रखी गयी हैं, जो कि भारत में राष्ट्रीयता और भाषा के प्रश्न के विषय में हैं, लेकिन भारत में राष्ट्रीयता और भाषा के प्रश्न पर आने वाले अंकों में हम सकारात्मक तौर पर अपनी अवस्थिति को लेखों और निबन्धों के रूप में प्रकाशित करेंगे।
हम उम्मीद करते हैं कि निबन्धों और लेखों का यह संकलन सुधी पाठकजनों को राजनीतिक रूप से शिक्षाप्रद और महत्वपूर्ण लगेगा। इन निबन्धों पर आपकी प्रतिक्रियाओं का स्वागत है। जिन निबन्धों अथवा टिप्पणियों में लेखक का नाम नहीं है, उन्हें सम्पादक मण्डल द्वारा लिखा गया है।
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- राष्ट्रीय दमन क्या होता है? भाषा के प्रश्न का इससे क्या रिश्ता है? मार्क्सवादी-लेनिनवादी अवस्थिति की एक संक्षिप्त प्रस्तुति / अभिनव, 15 मार्च 2020
- भाषाई व राष्ट्रीय अस्मितावादी विचलन के शिकार ‘ललकार’ के साथियों से चली हमारी बहस में दोनों पक्षों की अवस्थितियाँ : एक महत्वपूर्ण याददिहानी / सम्पादक मण्डल, 3 फ़रवरी 2020
- भाषाई व राष्ट्रीय अस्मितावादी विचलन के शिकार साथियों के नये द्रविड़ प्राणायाम / सम्पादक मण्डल, 8 फ़रवरी 2020
- ‘महापंजाब’ का आइडिया और राष्ट्रीय प्रश्न पर मार्क्सवादी अवस्थिति : आरज़ी तौर पर विचारार्थ कुछ बातें / इन्दरजीत, रमेश खटकड़, अजय स्वामी, 16 सितम्बर 2019
- हरियाणा में पंजाबी भाषा के प्रश्न पर कतिपय कॉमरेडों के अज्ञान पर संक्षिप्त चर्चा / अरविन्द, 28 अक्टूबर 2019
- लोकरंजकतावाद और भाषाई अस्मितावाद के ख़तरे / सम्पादक मण्डल, 31 अक्टूबर 2019
- हमारी बातों के मुख्य बिन्दु / सम्पादक मण्डल, 4 नवम्बर 2019
- 5 नवम्बर 2019 को ‘आह्वान’ के फ़ेसबुक पेज पर डाली गयी टिप्पणी / सम्पादक मण्डल, 5 नवम्बर 2019
- भाषाई अस्मितावादियों और राष्ट्रवादियों के नये गहने / सम्पादक मण्डल, 7 नवम्बर 2019
- भाषाई अस्मितावादियों का नया उत्खनन उर्फ़ बन्दर के हाथ में उस्तरा / सम्पादक मण्डल, 8 नवम्बर 2019
- भाषाई अस्मितावादियों से न्गूगी वा थ्योंगो को बचाओ! / सम्पादक मण्डल, 9 नवम्बर 2019
- भाषाई अस्मितावादियों के हवाई दावे और भाषा-बोली को लेकर बचकानी, हठीली नासमझियाँ / सम्पादक मण्डल, 11 नवम्बर 2019
- असम में एनआरसी पर ‘ललकार’ के भाषाई व राष्ट्रीय अस्मितावाद के शिकार साथियों की ग़लत अवस्थिति पर ‘आह्वान’ की ओर से 14 दिसम्बर 2019 को डाली गयी टिप्पणी / सम्पादक मण्डल
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