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पूँजीवादी जनवाद के खाने के दाँत

पूँजीवादी व्यवस्था में संसद, विधानसभाएँ आदि तो केवल दिखाने के दाँत होते हैं जो जनता को दिग्भ्रमित करने के लिए खड़े किए जाते हैं। “लोकतंत्र की सर्वोच्च संस्था”, “लोकतंत्र के मजबूत खंभे” जैसी लुभावनी बातों से जनता की नज़रों से सच्चाई को ओझल करने की कोशिश की जाती है। पूँजीवादी जनवाद की असलियत यह है कि वह 15 प्रतिशत मुनाफ़ाखोरों का जनवाद होता है और 85 प्रतिशत आम जनता के लिए तानाशाही होता है। इसी तानाशाही को पुलिस, कानून, कोर्ट-कचहरी, जेल आदि मूर्त रूप प्रदान करते हैं जो पूँजीवादी व्यवस्था के खाने के दाँत की भूमिका अदा करते हैं।

फर्जी मुठभेड़ों और हिरासती मौतों के रिकॉर्ड तोड़े उत्तर प्रदेश पुलिस ने

पिछले तमाम सालों में मुठभेड़ों के जरिये देश में हुई हत्याओं के लिए उत्तर प्रदेश कुख्यात रहा है। आँकड़ों पर नज़र डालें तो हम पाते हैं कि 2006 में भारत में मुठभेड़ों में हुई कुल 122 मौतों में से 82 अकेले उत्तर प्रदेश में हुई। 2007 में यह संख्या 48 थी जो देश में हुई 95 मौतों के 50 फीसदी से भी ज़्यादा थी। 2008 में जब देश भर में 103 लोग पुलिस मुठभेड़ों में मारे गये तो उत्तर प्रदेश में यह संख्या 41 थी। 2009 में उत्तर प्रदेश पुलिस ने 83 लोगों को मुठभेड़ों में मारकर अपने ही पिछले सभी रिकॉर्ड ध्वस्त कर डाले।