Category Archives: फ़ासीवाद

शिवसेना की ‘नज़र’ में एक और किताब ‘ख़राब’ है!

दरअसल इस घटना में और ऐसी ही तमाम घटनाओं में भी, जब अभिव्यक्ति की आज़ादी का गला घोंटा जा रहा हो तो मुठ्ठी भर निरंकुश फासिस्ट ताकतों के सामने यह व्यवस्था साष्ट्रांग दण्डवत करती नज़र आती है। दिनों-दिन इस व्यवस्था के जनवादी स्पेस के क्षरण-विघटन को साफ-साफ देखा जा सकता है। अगर ग़ौर से देखें तो यह इस पूँजीवादी व्यवस्था की मौजूदा चारित्रिक अभिव्यक्ति है। ज्यों-ज्यों पूँजी का चरित्र बेलगाम एकाधिपत्यवादी होता जा रहा है, त्यों-त्यों इसका जनवादी माहौल का स्कोप सिकुड़ता चला जा रहा है।

वे इतिहास से इतना क्यों भयाक्रान्त हैं!

जेम्स लेन की किताब में कुछ ऐसी बातों का जिक्र किया गया था जो मराठा अस्मितावादी तथा संघियों के आदर्श हिन्दू राज्य के खोखले तथा तर्कविहीन आदर्शों से कतई मेल नहीं खाती थी। तब ज़ाहिर सी बात है कि जैसा हमेशा होता आया है कि राष्ट्रवादियों का राष्ट्रप्रेम जागे तथा वे प्रतिरोध करने वालों को दैहिक व दैविक ताप से मुक्ति का अभियान शुरू करें। यह फासीवाद की कार्यनीति का अभिन्न अंग है कि वह अपने सांगठनिक व राजनीतिक हितों की पूर्ति हेतु आतंक का सहारा लेता है।

“राष्ट्रवादियों” का राष्ट्र प्रेम

उपरोक्त घटना इस ओर भी इंगित करती है कि मीडिया का जनसरोकारों से अलगाव आज दिन के उजाले की तरह एकदम साफ हो चुका है। यदि वाकई मीडिया में जनपक्षधरता का पहलू होता तो यह हो ही नहीं सकता था कि जनता साथ न खड़ी होती। सलमान, ऐश्वर्या तो खड़े होने से रहे! मीडिया व फासिज्म का प्रश्न आज तमाम प्रगतिशील जनपक्षधर क्रान्तिकारी ताकतों के एजेण्डे पर होना लाजिमी है। जनसंसाधनों के दम पर खड़े किये गये मीडिया से ही यह अपेक्षा की जा सकती है कि वे बहुसंख्यक जनता की भावनाओं, आकांक्षाओं को अभिव्यक्त करते हुए जनता को सचेत और जागरूक करने का काम करेंगे, न कि कारपोरेट घरानों व बाज़ार की शक्तियों से संचालित मीडिया से।

खाप पंचायतों के फ़रमान और पूँजीवादी लोकतंत्र की दुविधा

खाप पंचायतों और इस प्रकार के सभी निरंकुश सामाजिक-आर्थिक निकायों के वर्चस्व को तोड़ने के लिए तर्कप्रसार, वैज्ञानिक दृष्टि के प्रसार, जाति-विरोधी प्रचार-प्रसार के कामों को हाथ में लेना होगा। युवाओं के बीच विशेष रूप से इन अभियानों को सांस्कृतिक रूपों के सहारे चलाना होगा। लेकिन इन सभी कार्यभारों को पूरे सामाजिक-आर्थिक ढाँचे को आमूल-चूल रूप से बदल डालने वाले क्रान्तिकारी आन्दोलन का हिस्सा बनाना होगा। युवाओं को इस पूरे काम में ख़ास तौर पर आगे आना चाहिए और भारतीय समाज में एक नये प्रकार के पुनर्जागरण और प्रबोधन के आन्दोलन का अगुआ बनना चाहिए। इसके बग़ैर हम इस मामले में एक भी कदम आगे नहीं बढ़ा सकते हैं।

साम्प्रदायिक दंगों का निर्माण

साफ़ है कि यह दंगे कोई स्वत:स्फूर्त रूप से दो समुदायों के बीच नहीं हुए। इन्हें योजनाबद्ध ढंग से संघी फासीवादियों ने अंजाम दिया। अफवाहों और झूठों के जरिये नफ़रत फैलायी गयी और दोनों समुदायों को आपस में लड़ा दिया गया। पुलिस के एक आला अधिकारी ने बताया कि बरेली पारम्परिक तौर पर साम्प्रदायिक तनाव से मुक्त शहर है। लेकिन पिछले तीन–चार सालों के दौरान साम्प्रदायिक तनाव की घटनाएँ सुनने में आने लगी हैं। बरेली में सबसे अधिक बिकने वाले हिन्दी दैनिक अमर उजाला के एक भूतपूर्व सम्पादक ने बताया कि रोहिलखण्ड के पूरे क्षेत्र से ही हाल में साम्प्रदायिक तनाव की ख़बरें आने लगी हैं। वरुण गाँधी ने पिछले साल पड़ोस के पीलीभीत जिले में एक भड़काऊ भाषण दिया था। आरएसएस ने पूरे रोहिलखण्ड इलाके में जगह–जगह सरस्वती शिशु मन्दिर खोलने शुरू कर दिये हैं।

गुजरात : पूँजीवादी इंसाफ का रास्ता बेइन्तहा लम्बा, टेढ़ा–मेढ़ा और थकाऊ है

आज गुजरात में हुआ, कल कहीं और होगा। आज मोदी ने किया, कल कोई और करेगा। क्या आज़ादी के बाद के 63 वर्ष इस बात की गवाही नहीं देते ? अगर इस कुचक्र से मुक्ति पानी है तो पूरी पूँजीवादी व्यवस्था, सभ्यता और समाज के ही विकल्प के बारे में सोचना होगा। हर इंसाफ़पसन्द नौजवान का आज यही फ़र्ज़ बनता है।

भगवा ब्रिगेड का फ़रमान वरुण गांधी की जुबान

सफ़ेद झूठों की सूची को और लम्बा करने काम वरुण गांधी ने किया है और अपनी बात को सही साबत करने के लिए अपने पक्ष में कहा कि मैं एक ऐसे माहौल में बोल रहा हूँ जब हिन्दू दबा हुआ महसूस कर रहे थे और मुझे उनमें ‘हिम्मत’ भरनी है। कई हिन्दू लड़कियों का बलात्कार किया गया था। वहाँ क्या मैं एक नर्म भाषण देता? जिसमें यह बात अन्तर्निहित है कि हिन्दू लड़कियों का बलात्कार भला हिन्दू थोड़े ही करेंगे! ‘इण्डियन एक्सप्रेस’ ने इसमें अपनी रिपोर्ट छापी कि कई नहीं, तीन बलात्कारों की सूचना थी और सबमें जो अपराधी नामजद थे, वे हिन्दू ही थे। 2002 के गुजरात के अखबारों में ख़बर छपी कि हिन्दू औरतों के क्षत-विक्षत शरीर पाए गए हैं। ऐसी सारी खबरें गलत पाई गई, लेकिन किसी ने इसके लिए माफ़ी नहीं माँगी। इसी तकनीक का इस्तेमाल वरुण गाँधी ने किया जो संघ परिवार की बार-बार अपनाई गई तकनीक है।

माया कोडनानी और जयदीप पटेल की गिरफ्तारी और गुजरात नरसंहार पीड़ितों को इंसाफ़!

जिस तरह से जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड के बाद जनरल डायर को जुल्मी अंग्रेज सरकार ने सम्मानित करने का काम किया था उसी तरह से मोदी ने भी चुन–चुनकर गुजरात कत्लेआम में शामिल लोगों को सम्मानित करने का काम किया। लेकिन जनरल डायर जैसे हत्यारों का क्या अंजाम हुआ, वो तो जगज़ाहिर हैं। लेकिन इसके साथ कुछ ऐसे सवाल भी हैं जिसपर बात किये बिना इस मामले को समझा नहीं जा सकता।

संघी फासीवादियों का अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर नया हमला

संघ परिवार के गुण्डों की इस जघन्य हरक़त ने एक बार फ़िर साबित कर दिया है कि ये साम्प्रदायिक फ़ासीवादी हिटलर, मुसोलिनी, जनरल फ्रांकों और सालाज़ार जैसे तानाशाहों के असली मानस-पुत्र हैं। इनके गुरुओं ने इन्हें यही सिखाया है! इनसे और कोई उम्मीद रखना भी व्यर्थ है। यह जनवाद के उस बुनियादी सिद्धान्‍त से नफ़रत करते हैं कि हर किसी को अपनी बात कहने का हक़ है। आप उससे सहमत हों या असहमत, आपमें उसे बोलने देने का जनवादी विवेक और भावना होनी चाहिए। जब रूसो की किताबों को चर्च जलवा रहा था तो वाल्तेयर ने रूसो से कहा था कि “मैं तुम्हारी बात से असहमत हूँ। लेकिन तुम अपनी बात कह सको, इसके लिए मैं अपनी जान भी दे सकता हूँ।“ यह है वह जनवादी चेतना जिससे संघी ब्रिगेड के गुण्डे वाकि़फ़ नहीं हैं।

हिन्दुत्व की नयी प्रयोगशाला : उड़ीसा

सच्चाई तो यह है कि ग़रीबी के कारण ही अधिकांश धर्मांतरित लोग ईसाइयत की तरफ़ आकर्षित हुए हैं । लेकिन सबसे बड़ी समस्या हिन्दुत्व की लहर पर सवार होकर सत्ता पाने की इच्छुक साम्प्रदायिक फासीवादी भगवा ब्रिगेड है । सच्चाई यह है कि वोटों का खेल करीब आ रहा है और अपनी गोटियाँ लाल करने की ख़ातिर एक बार फिर कफनखसोट–मुर्दाखोर चुनावी पार्टियाँ ग़रीबों की लाशों पर रोटियाँ सेंकने से बाज़ नहीं आएँगी । यही उड़ीसा में हो रहा है । हमें इसकी सच्चाई को समझने की ज़रूरत है ।