‘अग्निदीक्षा’ एक नये मानव के जन्म की कहानी
सत्यव्रत
निकोलाई आस्त्रोवस्की का उपन्यास ‘अग्निदीक्षा’ एक नये मानव के जन्म की कहानी है जो समाजवादी युग में क्रान्ति के गर्भ से पैदा हुआ, जिसने मानवीय जीवन के उदात्त नैसर्गिक सौन्दर्य और सभी मानवीय मूल्यों की गरिमा को समाज में स्थापित कर देने के लिये अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया, जिसे स्वयं आस्त्रोवस्की ने ‘‘हमारे युग का चरितनायक’ कहकर पुकारा और जिसके बारे में गोर्की ने यह घोषणा की कि यही सर्वहारा युगनायक आज के युग के महाकाव्य की सुरीले षट्पदी छन्दों में रचना करेगा।
इस अमर कृति ने सोवियत रूस के नौजवानों-मेहनतकशों के बीच से कम्युनिस्टों की एक कतार पैदा करने में और समाजवादी निर्माण के महान कार्य में अपनी पूरी ताकत लगा देने की चेतना पैदा करने में भारी भूमिका निभाने के साथ ही पूरी दुनिया को समाजवादी देश के एक आम नागरिक की शक्ति, उसकी वीरता और ओज, त्याग और प्यार करने की उसकी अकूत क्षमता और उसकी अदम्य जिजीविषा से उन सारे मानवीय गुणों से जिनका निर्माण जनता के बीच होता है, जिन्हें श्रम पैदा करता है और संघर्ष निखारता है-परिचित कराया है, और दुनिया भर के मेहनतकश अवाम के लिये प्रेरणा और शक्ति के अक्षय स्रोत का काम किया है। हमारे देश में भी विगत चार-पांच दशकों से यह उपन्यास हिन्दी और अंग्रेजी में भारी पैमाने पर पढ़ा जाता रहा है और ‘मां’ के बाद समाजवादी यथार्थवाद की कृतियों में सर्वाधिक लोकप्रियता प्राप्त की है। हम यह जरूरी समझते हैं कि इस अमर कृति से अपने पाठकों को परिचित करायें, हालांकि बहुत सारे लोग इससे पहले से ही परिचित होंगे। आज, जब पूरी दुनिया में सर्वहारा के नेतृत्व में जारी जनता का पूँजी-विरोधी संघर्ष रूस और चीन की ऐतिहासिक पराजयों के बाद एक अभूतपूर्व कठिनाई के दौर से गुजर रहा है और कठिन संघर्ष जारी रहने की सच्चाई के बावजूद एक आम निराशा की सी स्थिति मौजूद है, आज जब समाजवादी समाज की उपलब्धियों को विस्मृति के गर्त में ढकेल देने, उसकी जीवन-अग्नि पर राख की एक परत चढ़ा देने की हरचन्द साजिश सर्वहारा क्रान्ति के विश्वासघातियों द्वारा की जा रही है, ऐसे में इस उपन्यास की प्रासंगिकता और अधिक बढ़ जाती है।
‘अग्निदीक्षा’ दरअसल निकोलाई आस्त्रोवस्की की अपनी जिन्दगी की कहानी है, पर वह आत्मकथा न होकर एक उपन्यास है। अपने जीवन चरित्र को उसने इस तरह नये सांचे में ढाला है कि वह उसकी समूची पीढ़ी का जीवन-चरित्र बन गया है। नायक पावेल कोर्चागिन विशिष्ट न होकर एक प्रतिनिधि चरित्र बन गया है। इस उपन्यास की रचना दुर्द्धर्ष युद्ध में लगभग पूरी तरह अपाहिज हो चुकने के बाद अनेक असाध्य रोगों की यंत्रणा से जूझते हुए जिन कठिन परिस्थितियों में हुई वह अपने आप में इस सत्य का साक्षी है कि तत्कालीन समाजवादी समाज में मानव सम्बन्धों और जीवन-मूल्यों में कितना बड़ा परिवर्तन आ चुका था और एक नये मानव का जन्म हो चुका था। आस्त्रोवस्की को श्रद्धांजलि देते हुए
फ्रांसीसी मनीषी साहित्यकार रोम्यां रोलां ने लिखा था, ‘‘विप्लव के बीच जिन नये मनुष्यों का जन्म होता है, वे ही मनुष्य विप्लव की सबसे महान रचना होते हैं। कष्टों से पीड़ित पृथ्वी को विदीर्ण करके उसी के भीतर से एक महान, उदात्त संगीत की तरह नवजीवन का विस्फोट होता है। वह एक ऐसे अग्निमय प्राण के समान होता है जो नये विश्वास की घोषणा करके सातों आकाशों को गुंजाता दिखायी देता है। ऐसे मनुष्य जब पृथ्वी से उठ जाते हैं तो उसके बहुत दिनों बाद तक भी उनकी वाणो दसों दिशाओं में प्रतिध्वनित होती रहती है। भविष्य में ये ही व्यक्ति महाकाव्यों और वीरचरित गाथाओं के नायक और प्रेरक बनते हैं। निकोलाई आस्त्रोवस्की ऐसे ही मनुष्य थे। साहसपूर्ण और उद्दीप्त प्राण के लिये समर्पित उनकी जीवन-कहानी मानो एक उदात्तमय संगीत है। आस्त्रोवस्की का समग्र अस्तित्व कर्ममुख संग्राम की एक अग्निमय शिखा के समान था। मृत्यु की रात्रि उसे जितना ही चारों ओर से घेरती थी, वह शिखा उतनी ही उज्जवल ज्योति से उद्भाषित हो चमक उठती थी।
आस्त्रोवस्की अपना यह उपन्यास अपने नायक के बचपन की एक तस्वीर देकर शुरू करता है और पाठक को दिखता है कि किसतरह एक शत्रुता से भरे हुए परिवेश के विरुद्ध संघर्ष करते हुए पावेल कोर्चागिन के मन और चरित्र का निर्माण होता है, कैसे उसके विचार पकते हैं और उसकी इस आवश्यकता की जागृति होती है। कि परिवेश और सम्पूर्ण समाज-व्यवस्था को नये सिरे से बनाना है, कैसे समाजवाद के लिये जनता का संघर्ष सामाजिक जीवन की आर्थिक स्थितियों को बदलकर एक नयी समाजवादी चेतना को जन्म देता है और सामाजिक और वैयक्तिक आचरण के एक नये मानदण्ड की स्थापना करता है, जो कि वास्तव में एक मानवीय आचार का आधार है।
उक्रेन के शेपेतोवका नामक छोटे से शहर की चौका-बर्तन साफ करने वाली गरीब मां का बेटा पावेल अपने ‘धर्मविरोधी प्रश्नों से चिढ़े हुए पादरी के आटे में तम्बाकू मिलाने के बाद स्कूल से निकाल दिया जाता है और रेलवे स्टेशन के छोटे से रेस्तरां के बावर्चीखाने में काम करने लगता है जहाँ समाज के तलछट में पड़े हुए अपने जैसे अभिशप्त लोगों के जीवन में व्याप्त दुःखों, निर्मम अमानवीयता, उत्पीड़न और निराशा के विरुद्ध उसका किशोर मन सुलगने लगता है। एक बदमाश बैरे द्वारा कोर्चागिन के पीटे जाने के बाद रेलवे डिपो में काम करने वाला उसका भाई आतेम उसकी खूब कुटम्मस करता है और इस घटना के बाद पावेल बिजली घर में फायरमैन के मददगार का काम करने लगता है। इसी बीच 1917 की फरवरी क्रान्ति होती है, आजादी-बराबरी-भाई चारे के नारे शेपेतोवका के उस छोटे से कस्बे में भी हलचल पैदा करते हैं पर जल्दी ही जीवन बदस्तूर चलने लगता है। पुनः अक्तूबर-क्रान्ति के दौरान कस्बे के लोग एक नये शब्द ‘बोल्शेविक’ से परिचित होते हैं जिनकी लड़ाई उनके गन्तव्यों पर जाने के दौरान कस्बे के स्टेशन पर मेन्शेविकों एवं अन्य प्रतिक्रान्तिकारियों की सरकार की फौज से होती है। 1918 के बसन्त में पहली बार लड़ते हुए बोल्शेविक उस कस्बे में प्रवेश करते हैं, पर जल्दी ही उन्हें वहां से हटना पड़ता है और जर्मनी की सेना कस्बे में प्रवेश करती है।
पावेल के भीतर उसकी नौकरी एक विद्रोही मजदूर चरित्र का निर्माण तो शुरू ही कर चुकी थी, भयानक वर्गयुद्ध की इन उथल-पुथल भरी घटनाओं के प्रति भी वह और उसके दोस्त एक किशोर सुलभ उत्सुकता के साथ सजग रहते हैं। इस दौरान बोल्शेविकों द्वारा बांटी गयी राइफलों में पावेल द्वारा एक प्राप्त करने और बगल के रईस लेशचिन्स्की परिवार में अड्डा जमाये हुए जर्मन सेनापति की रिवाल्वर चुराने जैसे रोचक और साहसिकं घटनायें भी घटती हैं। इसी दौरान उसकी दोस्ती तोनिया नाम की एक मध्यवर्गीय लड़की से होती है जो जल्दी ही निश्छल पवित्र प्रेम में बदल जाती है। साथ ही इसी बीच उसका परिचय जुखराई नामक मजदूर से होता है जो कम्युनिस्ट है। जब जर्मनों के खिलाफ हड़ताल के दौरान जबरन ट्रेन चलाने के लिये मजबूर किये जाने के बाद एक जर्मन की हत्या करके आतेम अपने दो साथियों सहित भाग निकलता है तो पावेल पर इस घटना का प्रभाव पड़ता है। जुखराई के क्रान्तिकारी कामों और लक्ष्य के बारे में वह कुछ-कुछ समझने लगता है।
उक्रेन इस समय निर्मम और भयानक वर्ग-संघर्ष में जकड़ा होता है। जर्मनों के हटने के बाद कस्बे में पेतल्यूरा के प्रति क्रान्तिकारी गिरोह के एक ऐटमन गोलुब का कब्जा होता है। जुखराई अचानक दुश्मनों द्वारा पकड़ लिया जाता है पर पावेल अत्यन्त बहादुरीपूर्वक रास्ते में एक पेतल्यूरा सैनिक पर हमला करके उसे छुड़ा लेता है। जुखराई बचकर पुनः भूमिगत हो जाता है और उधर पावेल खुद पकड़ लिया जाता है । इत्तफाक से वह चकमा देकर वहां से भाग निकलता है। और तोनिया के घर जा छुपता है। आर्तेम भी तब तक वापस लौटता है और उससे तथा तोनिया से विदा लेकर पावेल कस्बा छोड़ देता है । यह छोटा सा दौर उसे जिन्दगी और जारी लड़ाई में न्याय के पक्ष के बारे में बहुत कुछ समझा देता है और उसका व्यक्तिगत विद्रोह एक सामाजिक स्वरूप लेने लगता है। यहां से पावेल कोचगिन का जीवन एक नया मोड़ लेता है। वह अब युवा कम्युनिस्ट लीग का एक सदस्य और लाल सेना का एक बहादुर घुड़सवार फौजी है। अपने वर्ग की सत्ता के लिये जीवन-मरण का संघर्ष कर रहे मजदूरों की फौज के साथ वह क्रान्ति-विरोधी पोलों के साथ लड़ाई में जमकर हिस्सा लेता है। बीच में वह टाइफस बुखार से बुरी तरह ग्रस्त रहता है और एक बार घायल भी हो जाता है। पर जल्दी ही पुनः फौज की कतारों में जा शामिल होता। है। इस दौरान उसकी मातृभूमि शेपेतोवका में भी घटनाओं की गति बहुत तेज रहती है। वहां बोल्शेविकों का अधिकार हो चुका है और उसके तमाम हमउम्र और दोस्त युवा कम्युनिस्ट लीग (कोमसोमोल) में सक्रिय हो चुके हैं।
लेवोव की लड़ाई में बुरी तरह घायल होने के बाद पावेल लम्बे समय तक अस्पताल में पड़ा रहा और बच तो गया पर अपनी दाहिनी आंख खो बैठा। ठीक होने के बाद जब वह अपनी प्रेमिका तोनिया से मिलता है तो यह देखकर दु:ख से भर उठता है कि जीवन के बारे में तोनिया के मध्यमवर्गीय दृष्टिकोण ने उनके बीच एक न भर सकने वाली खाई पैदा कर दी है और उसका यह पहला प्यार दुःखद पर स्वाभाविक नियति के रूप में समाप्त हो जाता है।
पोलिश क्रान्ति-विरोधी युद्ध के दौरान ही जीटोमीर शहर को कब्जा करने के बाद पावेल की टुकड़ी जब कैदियों को मुक्त कर रही थी, उस समय उसकी मुलाकात शेपोतोवका, के एक प्रेस कम्पोजीटर से हुई। जिससे उसे अपने कस्बे में क्रान्तिविरोधी पोलों द्वारा की गई विनाश लीला और अपने कई बहादुर दोस्त लड़के लड़कियों के बहादुराना संघर्ष और शहादत की जानकारी मिली । घायल होकर ठीक होने के बाद पावेल जब ‘चेका’ में काम कर रहा था, तो अचानक ही उसकी भेंट अपने प्यारे दोस्त सेर्गेई से हुई जो उसके बाद ही युद्ध में मारा गया। इन सारी घटनाओं के झटकों ने पावेल के अन्दर पैदा हुए दृढ़, शत्रुओं के लिये कठोर, लक्ष्य के प्रति समर्पित और प्यार से भरे हुए नये इन्सान को और अधिक प्रौढ़ बना दिया।
क्रान्ति-विरोधी पोलिश युद्ध की समाप्ति के बाद मानो एक तूफान को झेलकर वह शेपेतोवका में अपनी मां और भाई से मिला और कुछ दिनों वहां रहने के बाद फिर रवाना हो गया, समाजवादी समाज के निर्माण के उस काम में शामिल होने के लिये जा उसका इन्तजार कर रहा था। उपन्यास का प्रथम खण्ड यही समाप्त हो जाता है।
उपन्यास के दूसरे खण्ड का कथानक इतिहास के उस काल पर केन्द्रित है जब रूस में गृहयुद्ध समाप्त हो चुका है और उसी जोशो-खरोश, आत्मोत्सर्ग और आत्मानुशासन की भावना से पावेल कोर्चागिन देश भर के बोल्शेविकों की नयी और पुरानी पीढ़ी के साथ समाजवादी निर्माण के कार्य में, आजादी, खुशहाली, बराबरी और भाईचारे की भावना से भरी नयी जिन्दगी के निर्माण कार्य में, सर्वहारा राज्य के नये आधारों के निर्माण के कार्य में जुट जाता है।
मुनाफाखोरों-सट्टेबाजों और छिटपुट तोड़फोड़ के षड्यंत्रों के विरुद्ध पार्टी की कार्रवाइयों में लगातार हिस्सा लेता हुआ पावेल कोर्चागिन अपने जैसे तमाम बेहतरीन नौजवानों के साथ कर्मठ कोमसोमोल कार्यकर्ता बनता है और कम्युनिज्म के उसूलों का अध्ययन भी करता है। शुरू में उसने अपने कर्तब्य को जिस रूप में समझा था उसमें अपनी व्यक्तिगत जिन्दगी के लिये कोई स्थान नहीं था, यहां तक कि यौवन के नैसर्गिक गुण प्रेम के लिये भी उसमें कोई जगह नहीं। थी। इसी कारण पावेल कोचगिन रिता उस्तिनोविच के प्रति अपने प्रेम का गला घोंटकर, मर्माहत रिता से अलग हो जाता है। कुछ वर्षों बाउ उसे अपनी गलती का अहसास होता है जिसकी चर्चा बाद में वह मास्को में रिता से करता है पर तबतक देर हो चुकी रहती है क्योंकि रिता उससमय तक किसी की पत्नी हो चुकी होती है। पर पावेल जीवन की इस भारी व्यक्तिगत क्षति को आन्तरिक शक्ति के बल पर झेल जाता है। जो उसे जनता के साथ, समाजवादी समाज के लिये जीते-मरते हुए हासिल होती है। यही नहीं, अतिउत्साह का शिकार होकर अपनी इच्छाशक्ति का कड़ा से कड़ा इम्तहान लेने और अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही के अराजक रूमानी व्यक्तिवादी दृष्टिकोण का भी उसे अहसास होता है और वह उन्हें छोड़ देता है।
कीव में पावेल कोमसोमोल के एक स्थानीय संगठन के प्रधान के रूप में काम करता है। इन अत्यन्त कठिन अभाव के दिनों में कोमसमोल – नौजवानों को ईंधन की असाध्य सी समस्या को हल करने के लिये जाड़ा आने के पहले तीन महीनों के भीतर दुर्गम जंगली इलाके में पांच मील लम्बी रेल-पटरी बिछाने का काम सौंपा जाता है। पावेल अपने कर्मठ नौजवान मजदूर साथियों के साथ अत्यन्त अभावग्रस्त स्थितियों में कम कपड़े और फटे जूते पहनकर बर्फ में रेल की पटरियां बिछाता है और बरसात एवं भीषण ठण्ड के साथ ही उन्हें ओर्लिक के प्रतिक्रान्तिकारी डाकू गिरोह के हमलों का भी सामना करना पड़ता है। अपनी दुर्दम आत्मिक शक्ति के दम पर जिन्दगी को बदल देने के लिये अपने को होम कर देने वाले नौजवानों को कठिन टाइफायड बुखार का भी सामना करना पड़ता है और बेहोश कोर्चागिन को वहां से शेपेतोवका रवाना कर दिया जाता है। गलतफहमी के कारण कार्चागिन की मृत्यु का समाचार हर जगह पहुंच जाता है, रिता के पास भी, और इधर जीवन में चौथी बार मौत की सरहद छूकर पावेल जिन्दगी में लौट आता है और अपने साथियों को आश्चर्यचकिंत करता हुआ पुनः कामों में जुट जाता है।
कुछ दिन तक इलेक्ट्रिक फिटर के रूप में काम करते हुए पावेल कामेसोमोल की जिला कमेटी के मंत्री का दायित्व निभाता है। जाड़ों के शुरू होने से पहले वह बर्फ जैसे ठण्डे पानी में से बाढ़ में बहने वाले लकड़ी के कुन्दे निकालता है और फिर बीमार पड़ जाता है। गठिये का असाध्य रोग तेजी से उसे ग्रसता चला जाता है। पर थोड़ा ठीक होते ही वह फिर जीवन की तूफानी लड़ाई में वापस लौट आता है। कुछ दिनों तक उसे पोलिश सरहद पर भी काम करना पड़ता है। वहां की कोमसोमोल जिला कमेटी से जल्दी ही कोर्चागिन को सूबा कमेटी में बुला लिया जाता है और उसे पार्टी सदस्य बनाने की सिफारिश की जाती है। इसबीच लेनिन की मृत्यु होती है, पूरे सोवियत रूस में शोक की लहर दौड़ जाती है, पर साथ ही पूरे देश में लेनिन के नेतृत्व में जारी कार्यों को पूरा करने के संकल्प के साथ लाखों मजदूर बोल्शेविक पार्टी में शामिल होते हैं, जिनमें पावेल के दोस्त शहीद वालिया और सेर्गेई का बूढ़ा बाप जखार और पावेल के भाई आर्तेम जैसे लोग भी हैं।
एक ओर पावेल आकण्ठ कामों में डूबा हुआ होता है, दूसरी ओर छोटी सी उम्र में ही उसका शरीर तेजी से साथ छोड़ना शुरू करता है। जिसकी चरम परिणति यह होती है कि उसके लाख विरोधों के बावजूद उसे छुट्टी देकर उक्रेन पार्टी केन्द्रीय समिति के सेनेटोरियम में भेज दिया जाता है। 24 वर्ष की छोटी उम्र में उसके जीवन के उदास त्रासद नाटक के अन्तिम अंक का पर्दा अब उठ चुका है। कई आपरेशनों और इलाज के बाद यह तय सा हो जाता है कि पावेल का शरीर अब अधिक दिन उसका साथ नहीं दे सकता। इस बीच वह समुद्रतट के किनारे के एक छोटे से कस्बे में अपनी मां की दोस्त अलबिना क्युत्सम से मिलने गया जहां एक पिछड़े हुए बाप की तानाशाही में जी रही उसकी लड़कियों लोला और ताया से उसका परिचय होता है। एक बार फिर वह वापस लौटकर काम करने का प्रयास करता है पर शरीर एकदम साथ नहीं देता। काम से छुट्टी और पेन्शन लेकर पावेल पुनः क्युत्सम परिवार से मिलने जाता है। वहां ताया, जो अपने मां-बाप और आवारा भाई से अलग हो चुकी है, धीरे-धीरे उसके निकट आती है।
और दोनों शादी करते हैं। इन अन्तिम क्षणों में पावेल जिन्दगी को बेइन्तहां प्यार के साथ पकड़े हुए है। ताया को एक कम्युनिस्ट बनाने के साथ ही वह नौजवानों की स्टडी सर्किल, भी लेने लगता है। इससमय तक उसका शरीर लकवे से अपंग हो चुका होता है, दूसरी आंख भी अन्धी हो चुकी होती है। पर जीवन की लड़ाई से अवकाश न लेने के लिये संकल्पबद्ध पावेल पुनः एक रास्ता निकाल ही लेता है। वह अपने जीवन के गृहयुद्ध के दिनों के अनुभव को लेकर पटरी रखकर स्वयं एक उपन्यास लिखना शुरू करता है। बाद में साथियों से लिखवाने लगता है और इसतरह ‘तूफान के बेटे’ नामक उपन्यास की अत्यन्त कठिन परिस्थितियों में वह रचना करता है। प्रादेशिक कमेटी से उपन्यास के प्रकाशन की स्वीकृति का तार मिलने के साथ ही उसे लगता है कि वह एक बार फिर जिन्दगी के मैदान में लड़ने वालों की कतार में वापस लौट आया है और उपन्यास यहीं समाप्त हो जाता है।
घटनाओं के अत्यन्त रोचक और गतिमान् प्रवाह के दौरान नायक पावेल कोचगिन के जीवन की केन्द्रीय कहानी से गुंथे हुए उसके कई बहादुर साथी और पुराने बोल्शेविक क्रान्तिकारी पात्र भी आते हैं और साथ चल रही अन्य घटनाओं-प्रसंगों के माध्यम से उदात्त भावों से ओत-प्रोत उनका सच्चा मेहनतकश जीवन भी झांकता रहता है।
जैसा कि हम पहले उल्लेख कर चुके हैं, पावेल कोचगिन का जीवन आस्त्रोवस्की का अपना जीवन है पर उसने उसे अपनी पीढ़ी और अपने समाज के एक प्रतिनिधि चरित्र के रूप में ढाला है और यह दिखाया है कि उसकी वीरता रूस के मजदूर वर्ग के अन्दर निहित वीरता है जिसकी प्रकृति उसकी जिन्दगी के हर नये दौर के साथ बदलती जाती है। कोर्चागिन अपनी जीवन-स्थिति के विरुद्ध जो सहज प्रतिवाद करता है वह उसको वर्ग-संघर्ष के भीतर खींच लाता है और उसी रास्ते पर बढ़ते हुए उसके भीतर एक समाजवादी चेतना का उदय होता है, गृहयुद्ध और समाज के निर्माण के दौर से गुजरते हुए उसमें आत्मोत्सर्ग की भावना और फिर सजग कम्युनिस्ट आत्म अनुशासन जन्म लेता है और अशक्तता और बीमारी के बावजूद नवजीवन-सृजन के संघर्ष में लगे रहने की उसकी जद्दोजहद उसे जनता के लिये एक मिसाल बना देती है।
पावेल कोर्चागिन के ये सबसे अच्छे गुण हवा में नहीं पैदा होते बल्कि समाजवाद के लिए जनता के संघर्ष के योगदान देने की प्रक्रिया में पैदा होते हैं, मँजते और निखरते हैं। समाजवादी प्रणाली में श्रम की, प्रकृति, उसका रूप और प्राण दोनों बदल जाते हैं और करोड़ों आदमी निर्माण में लगी हुई एक ही समष्टि के अंग बन जाते हैं। ये परिवर्तन आस्त्रोवस्की के पात्रों के विचारों, भावनाओं और उनके आपसी सम्बन्ध ओं को बदल डालते हैं। लड़ाई के मोर्चे से लौटने के बाद ही पावेल के भीतर श्रम और समाजवादी सम्पत्ति के प्रति नया दृष्टिकोण दिखाई देने लगता है और उत्पादन के नये सम्बन्धों से पैदा होने वाली नई सामूहिक स्वामित्व की भावना से अनुप्राणित होकर वह क्रान्तिविरोधियों, तोड़-फोड़ करने और मुनाफा कमाने वालों के अतिरिक्त स्वार्थी और आलसी लोगों तथा पार्टी के भीतर घुसे विजातीय तत्वों से भी निर्मम संघर्ष करता है। समष्टि से हटकर हम पावेल की कल्पना नहीं कर सकते। उसे उसके अपने ऐसे साथियों से अलग कर के नहीं देख सकते-जैसे सर्योजा बुजाक जो युद्ध में इसलिये जाता है कि फिर युद्ध न हो, जैसे सजा की बहन वालिया, वह महान देशभक्त युवती जिसे क्रान्ति विरोधी पोल मार डालते हैं, या लाल सेना की एक कम्पनी द्वारा गोद लिया गया अनाथ लड़का ईवान जार्की, या जैसे जिला कोमसोमोल का मन्त्री ओकुनेव या युवा जहाजी मजदूर पांक्रातोव। पावेल और उसके साथी उस पुरानी बोल्शेविक पीढ़ी से ही अपने सबसे अच्छे गुणों की विरासत प्राप्त करते हैं जिनके प्रतिनिधि इस उपन्यास में बोलोस्त की गुप्त क्रान्तिकारी कमेटी के प्रधान दोलिनिक, भूतपूर्व मल्लाह और बहादुर एवं पुराने बोल्शेविक जुखराई और 1903 से ही पार्टी सदस्य तोकारेव जैसे लोग करते हैं।
पूरे उपन्यास में लड़ाई, रेल की पटरी बिछाने, पार्टी और कोमसोमोल की मीटिंगों जनमें त्रात्स्कीपंथियों को पीछे ढकेला जाता है तथा सोवियत-पोलिश सीमा पर उत्सव जैसे जनता के सामूहिक कार्यों के तमाम जीवन्त चित्रों में उदात्त भावनाओं और विचारों का जो रूप दिखाई पड़ता है, वह पात्रों के वैयक्तिक गुण के बजाय एक समूचे राष्ट्र का गुण बन जाता है। साथ ही, पावेल और उसके मित्रों के आन्तरिक भावनाओं-गुणों में प्रेम और मैत्री का एक बहुत ही ऊंचा और पवित्र नैतिक मानदण्ड दिखाई देता है और इसकी अजस्र धारा पावेल और तोनिया, सर्योजा और रिता या पावेल और रिता के कोमल सम्बन्धों के सूत्र में या पावेल और उसकी पत्नी ताया के परस्पर सम्बन्धों में, बहती हुई दिखाई देती हैं। इस तरह से सभी व्यक्ति-पात्र मिलकर जनता की एक विशाल मूर्ति बन जाते हैं। और कहा जा सकता है कि जनता ही इस उपन्यास की नायक है।
इस उपन्यास का दूसरा महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि यह क्रान्ति को राज्यसत्ता हाथ में आने के बाद और सत्ता के सुदृढ़ीकरण के बाद भी जारी रहने वाली वर्ग-संघर्ष की सतत प्रक्रिया के रूप में दर्शाता है और तीक्ष्ण अन्तर्विरोधों से कन्नी काटने के बजाय नये समाज के निर्माण के दौरान की कुरूप सच्चाइयों को भी सामने लाता है। यह दिखलाता है कि वर्ग-समाज का अभिशाप अतीत किस तरह क्रान्ति के बाद भी मजदूर वर्ग और जनता की छाती पर दुःस्वप्न की तरह सवार रहता है और व्यक्तियों की चेतना में पूंजीवाद के अवशेष किस तरह पिछड़े विचारों के रूप में मौजूद रहते हैं और कठिन संघर्ष में ही दूर होते हैं। साथ ही चूंकि समाजवादी संक्रमण के प्रारंभिक दौर में वर्ग अभी मौजूद रहते हैं, पूंजीवादी उत्पादन-सम्बन्ध अभी मौजूद रहते हैं इसलिए वर्गसंघर्ष खुले रूप में जारी रहने के अतिरिक्त विचारधारात्मक तथा अन्य परोक्ष रूपों में भी चलता रहता है और पार्टी के भीतर पतित त्रात्स्कीपंथी दबावा, दुश्चरित्र फाइलो, राजवालिखिन, शुम्स्की, स्तारोवेरोव जैसे विजातीय तत्व उन्हीं का प्रतिनिधित्व करते होते हैं। यदि लगातार संघर्ष करके इन तत्वों की छंटनी न की जाय, पार्टी कार्यकर्ताओं के विचारधारात्मक स्तर को उन्नत न किया जाय और मजबूत कम्युनिस्ट चरित्रों का निर्माण न किया जाय-तात्पर्य यह कि क्रान्ति को सतत, जारी रखने के रूप न निकाले जाय तो समाजवाद की जीत हार में भी बदल सकती है, यह रूस और चीन में पूंजीवाद की पुनर्स्थापना के बाद स्पष्ट है। हालांकि आस्त्रोवस्की के काल में यह समस्या अभी स्पष्ट नहीं हो सकी थी पर उन्होंने अपने अनुभव से उस समय पार्टी के भीतर के विजातीय तत्वों के साथ संघर्ष का जो चित्र प्रस्तुत किया है, उसे आज अच्छी तरह से समझा जा सकता है और यह बात इस उपन्यास की प्रासंगिकता को और अधिक बढ़ा देती है।
रूसी उपन्यासों में भावों की गहराई और सामाजिक अन्तर्विरोधों और सामाजिक संघर्षों के भीतर झांकती गहरी अन्तर्दृष्टि की परम्परा को आस्त्रोवस्की इस उपन्यास में आगे ले जाते हैं। समाजवादी यथार्थवाद के प्रणेता गोर्की ने क्रान्ति पूर्व की अपनी रचनाओं में पावेल ब्लासोव एवं अन्य मजदूरों के रूप में जिस सर्वहारा नायक की रचना की थी, इसमें आस्त्रोवस्की ने नये गुणों का समावेश किया जिनका जन्म समाजवादी निर्माण के काल में, एक नये समाज में हुआ था। दिलचस्प बात यह है कि आस्त्रोवस्की साहित्यकार नहीं था, एक कम पढ़ा-लिखा आदमी था । पर जीवन और उसके सौन्दर्य से उसका इतने निकट का परिचय था कि पहली बार ही उसकी कलम से जीवन की पुनर्रचना समाजवादी यथार्थवाद की एक अनूठी कृति और विश्वसाहित्य की एक धरोहर बन गयी। जीवन के संघर्ष से किनारे रहकर जनता के लिये साहित्य-सृजन करने की मुगालता पालने वालों के लिये आस्त्रोवस्की का जीवन कृतित्व एक शिक्षा है।
अन्त में हम अपने पाठकों से जोर देकर कहना चाहेंगे कि वे इस उपन्यास को एक बार नहीं, कई बार पढ़े जो उन्हें जीवन के आन्तरिक सौन्दर्य से क्रान्ति के संघर्ष में निहित अदम्य प्राणशक्ति से, समष्टि की अपार क्षमता और सृजनशीलता से, और आने वाले उस नये समाज से परिचित करायेगा जिसके लिये हमें अभी एक लम्बी लड़ाई लड़नी है। निश्चित तौर पर यह उपन्यास आपको संघर्ष करने की प्रेरणा और शक्ति देगा और यथास्थिति से विद्रोह करके जीने का सलीका सिखायेगा।
‘आह्वान कैंपस टाइम्स’, जनवरी-मार्च 2000
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