Tag Archives: नयी कलम से

बेबी की कविताएँ

रोज
कोड़ता हूँ
घोंघे, सितुए
कंकड.पत्थर
चुन.चुनकर फेंकता हूँ
कि
कल
बो दूँगा तुझे
जिन्दगी

प्रदीप की कविताएँ

सभी आधुनिक कविगण हँसते हैं
मेरी सपाट ‘कुपोषित’ कविताओं पर
अभद्रता का शून्य प्रदर्शन करते हुए
किन्हीं तिलस्मी बिम्बमहलों में
शब्दों के गोल-गोल छल्ले बनाते हुए।
वे पापी ठहराते हैं मुझे
क्रिया-फ्रिया, रस-फस,
और छन्द-बन्द की घोर
अनुपस्थिति पर।

धर्मेन्द्र चतुर्वेदी की कविताएँ

तुम्हारी और मेरी दुनिया
इतनी भिन्न है कि
हम अलग-अलग प्रजातियों का
प्रतिनिधित्व करते हैं

लखविन्दर की तीन कविताएँ

हम सीख लेंगे
वो सबकुछ
जो ज़रूरी है
और जो सीखा जा सकता है
ताकि जान लें सभी
यह दृढ़ता तर्कसंगत है,
कि हमारी ‘उम्मीद
महज एक भावना नहीं है’।

अरुण कुमार की कविताएँ

ठहर जाऊँ ये सोचकर डर लगता है
जो ठहरे हैं उन्हें देखकर डर लगता है
सफ़र में जो भी है कठिन है
बिन सफ़र सब हादसा लगता है

कुछ भी नहीं ‘मेरा’ ये सच है
कोई नहीं उनका ये बड़ा सच लगता है

संदीप/नीतू/बेबी/पवन की कविताएं

सपनों के देश में
आकांक्षाओं की पीठ पर
यथार्थ की जीन में टिकाए अपने पैर
ज़िन्दगी की राह पर
सरपट दौड़ना, चाहता नहीं कौन?
‘आसमान बेधते’ अरुणिम शिखर को
हृदय में बसाना नहीं चाहता है कौन?
मगर
यांत्रिकता की कैद से
आज़ाद नहीं होंगे जब तलक स्वप्न!
स्मृतियों के अपने ही गुंजलक में
भटकेगा मन!