Tag Archives: तपीश

भारतीय विज्ञान कांग्रेस में वैज्ञानिक तर्कणा के कफ़न की बुनाई

आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उससे जुड़े सैंकड़ो संगठन तथा छदम् बुद्धिजीवी पुराणों और शास्त्रोंमें मौजूद धर्म के आवरण में लिपटी महान भौतिकवादी परंपराओं और आघ वैज्ञानिक उपलब्धियों की जगह मिथकों, कहानियों, कल्पनाओं को प्राचीन भारत की वैज्ञानिक उपलब्धियों और इतिहास के रूप में प्रस्तुत करने के अपने फासीवादी ऐजण्डे पर ज़ोर—शोर से काम कर रहे हैं। हमें भूलना नहीं चाहिए कि फासीवादियों का सबसे पहला हमला जनता की तर्कशक्ति और इतिहासबोध पर ही होता है। तर्कणा और इतिहासबोध से रिक्त जनमानस को फासीवादी ऐजण्डे पर संगठित करना हमेशा से ही आसान रहा है। यह महज़ इत्तिफाक नहीं है कि जर्मनी में हिटलर ने स्कूली पाठ्य पुस्तकों को नये सिरे से लिखवाया था। उसने जर्मन समाज की खोई हुई प्रतिष्ठा को वापस दिलाने का आश्वासन दिया था और जर्मनी को विश्व का सबसे ताकतवर देश बनाने का सपना दिखलाया था। आज हम अपने चारों ओर ऐसी कई चीज़ों को होते हुए देख सकते हैं।

पाकिस्तान का वर्तमान संकट और शासक वर्ग के गहराते अन्तरविरोध

शायद पाठकों के लिए अब कल्पना करना सम्भव हो सके कि पाकिस्तान की जनता किन भीषण परिस्थितियों का शिकार है। एक ओर वह आर्थिक संकटों से जूझ रही है तो दूसरी ओर कट्टरपंथियों और आतंकियों का दंश भी बर्दाश्त कर रही है। वह अपने सैन्य तन्त्र के ज़ुल्मों को तो बर्दाश्त करती रही है, अब उसे अमेरिकी हमलों का भी निशाना बनाया जा रहा है। आतंक के ख़िलाफ़ युद्ध के पिछले 13 वर्षों की आर्थिक लागत 102 अरब डॉलर है। यह रक़म पाकिस्तान के कुल विदेशी क़र्ज़ के बराबर है। एक बात स्पष्ट है कि पाकिस्तानी जनता के जीवन में तब तक कोई बुनियादी परिवर्तन नहीं होने वाला है जब तक कि वह स्वयं अपने समाज के भीतर से नयी परिवर्तनकामी शक्तियों को संगठित कर वर्तमान पूँजीपरस्त जनविरोधी तन्त्र को ही नष्ट करने और एक नये समतामूलक समाज को बनाने की दिशा में आगे नहीं बढ़ती।

वैश्विक मन्दी के दबाव में डगमगाती भारतीय अर्थव्यवस्था

अगर आँकड़ों को देखें तो पता चल जाता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक मन्दी के समय में उदारीकरण और भूमण्डलीकरण की नीतियों के कारण बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है। बीमा सेक्टर में 2007 के मुकाबले 2008 में वृद्धि दर 24 प्रतिशत से घटकर 17 प्रतिशत रह गयी। इसके कुछ समय बाद ही देश के सबसे बड़े कार–निर्माता मारूति ने घोषणा की कि उसकी बिक्री में नवम्बर माह में 24 प्रतिशत की गिरावट आई और अगर यह रुझान जारी रहा तो वह उत्पादन में कटौती कर सकता है। भारतीय सरकार ने छमाही आर्थिक समीक्षा में कहा कि मैन्युफ़ैक्चरिंग सेक्टर पर मन्दी का भारी प्रभाव पड़ सकता है। केरल की सरकार के आँकड़ों से पता चलता है कि मन्दी का उसकी अर्थव्यवस्था पर गहरी चोट पड़ी है। उसका पर्यटन उद्योग गिरावट दर्ज़ कर रहा है। नारियल उद्योग में 32,000 लोग अपनी नौकरियों से हाथ धोने की कगार पर हैं। हथकरघा उद्योग में 20 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है, काजू उद्योग में 18,000 लोग अपनी नौकरियाँ गवाँ चुके हैं।

हिन्दुत्व की नयी प्रयोगशाला : उड़ीसा

सच्चाई तो यह है कि ग़रीबी के कारण ही अधिकांश धर्मांतरित लोग ईसाइयत की तरफ़ आकर्षित हुए हैं । लेकिन सबसे बड़ी समस्या हिन्दुत्व की लहर पर सवार होकर सत्ता पाने की इच्छुक साम्प्रदायिक फासीवादी भगवा ब्रिगेड है । सच्चाई यह है कि वोटों का खेल करीब आ रहा है और अपनी गोटियाँ लाल करने की ख़ातिर एक बार फिर कफनखसोट–मुर्दाखोर चुनावी पार्टियाँ ग़रीबों की लाशों पर रोटियाँ सेंकने से बाज़ नहीं आएँगी । यही उड़ीसा में हो रहा है । हमें इसकी सच्चाई को समझने की ज़रूरत है ।

पूँजीवाद की नई गुलामी

आज अगर दिल्ली, बंगलोर, कोलकाता और मुम्बई जैसे महानगरों के मध्यवर्गीय नौजवानों का साक्षात्कार लिया जाय तो उनमें कइयों का सपना होगा कि वे अमेरिका जाएँ। वैश्विक मीडिया और हॉलीवुड की फ़िल्मों ने अमेरिका की छवि एक स्वर्ग जैसे ऐश्वर्यपूर्ण, तमाम सुख-सुविधाओं से लैस देश की बनाई है, जहाँ कोई “ग़रीब” नहीं, और अगर है, तो वो भी कार में चलता है। नतीजतन, अमेरिका तीसरी दुनिया के देशों के मध्यवर्ग का स्वप्नदेश बन गया है-‘एवरीबाडी वॉण्ट्स टू फ्लाई टू अमेरिका’।