हिन्दुत्व की नयी प्रयोगशाला : उड़ीसा
तपीश
पिछले लगभग एक महीने से उड़ीसा में जो कुछ हो रहा है उसने हर तर्कसंगत और सोचने वाले इंसान को अन्दर से झिंझोड़ कर रख दिया है । 17 सितम्बर को विश्व हिन्दु परिषद के स्वामी लक्ष्मनानंद की हत्या के बाद से बजरंग दल और वि.हि.प. की गुण्डा वाहिनियों ने राज्य के ईसाइयों पर जुल्म जारी कर रखा है । तब से दर्जनों चर्च जलाए जा चुके हैं, दर्जनों जानें जा चुकी हैं और ईसाई दलित महिलाओं पर जघन्यतम अत्याचार किये जा रहे हैं । एक नन के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया, बड़ी संख्या में चर्चों से ईसाई दलितों को निकालकर उन्हें नंगा करके परेड कराई गई, उनकी हत्याएँ की गईं, उन्हें लूटा गया और उनका बलात्कार किया गया । यह सबकुछ लगातार चल रहा है और राज्य सरकार कोई कदम नहीं उठा रही है । पुलिस इन सारे अपराधों की मूक दर्शक बनी हुई है और उड़ीसा के दलित ईसाई अजीब असहायता की स्थिति में हैं । आख़िर वे किसके पास जाएँ ? कहाँ रपट लिखाएँ ? नवीन पटनायक सरकार ने तय कर लिया है कि वह इस पूरे घटनाक्रम से आँख मूँदकर बैठी रहेगी । केन्द्र सरकार ने तय कर लिया है कि वह इस पर उड़ीसा की सरकार को चेतावनियाँ, धमकियाँ और गीदड़भभकियाँ देती रहेगी लेकिन कुछ भी नहीं करेगी ।
इन सबके पीछे कई कारण काम कर रहे हैं । पहले तो लक्ष्मणानंद की हत्या के पीछे की सच्चाई जान लेने की ज़रूरत है । लक्ष्मणानंद पिछले लगभग तीन दशक से कंधमाल और उड़ीसा के कई इलाकों में हिन्दुत्व की प्रयोगशाला तैयार करने में लगा हुआ था । आदिवासियों के बीच वह तमाम स्कूल व संस्थान चला रहा था और उन्हें हिन्दू बनाने की मुहिम में लगा हुआ था । ईसाई मिशनरियाँ दूसरी ओर आदिवासियों की ग़रीबी का लाभ उठाकर उन्हें कंबल, दवाइयाँ आदि बाँटकर और आत्मसहायता समूह बनवाकर उन्हें रोज़गार देने में मदद करके उन्हें ईसाई बनाने में लगी हुई थीं । लक्ष्मणानंद का काम यह था कि वह ईसाई मिशनरियों के प्रभाव को फैलने से रोके, आदिवासियों के मानस का हिन्दूकरण करे और गुजरात की तर्ज़ पर आदिवासियों को हिन्दू फासीवाद के पक्ष में खड़ा करके उड़ीसा को साम्प्रदायिक फासीवाद की नयी प्रयोगशाला बनाने का काम करे । लक्ष्मणानंद इस काम को बखूबी अंजाम दे रहा था । उस पर पहले भी हमला हुआ था और पुलिस तब भी असली हमलावरों की तलाश में असफल रही थी । तब भी इस हमले का बहाना बनाकर खूब बड़े पैमाने पर ईसाइयों के ख़िलाफ़ हिंसा की गई थी । इस बार भी पुलिस उसपर हमला करने वालों का सुराग लगाने में असफल रही है और इस बार भी इसको बहाना बनाकर ईसाइयों को निशाना बनाया जा रहा है । ज्ञात हो कि हमले के शिकार लोगों में अधिकांश बेहद ग़रीब मज़दूर आबादी है । बजरंगदलियों के इन कुकर्मों पर भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह का कहना है कि यह हिन्दुओं का आक्रोश है जिसके कारण हिंसा हो रही है! लालकृष्ण आडवाणी ने भर्त्सना का पुराना राग गाकर इतिश्री कर ली है । ऐसे में ग़ौरतलब बात यह भी है कि माओवादियों ने लक्ष्मणानंद की हत्या की ज़िम्मेदारी ले ली है । फिर भी बजरंगदलियों ने ईसाई अल्पसंख्यकों पर हमला जारी रखा है । धर्मांतरण के ख़िलाफ़ आक्रोश के नाम पर हो रही इस साम्प्रदायिक हिंसा के मूल कारण कहीं और हैं । भाजपा एक बार फिर हिन्दुत्व की लहर पर सवार होकर सत्ता में आना चाहती है । इसीलिए कर्नाटक से लेकर उड़ीसा और मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ तक में खोए हुए पौरुष को पुन:प्राप्त करने के लिए हिन्दुत्व के ‘प्रयोग’ किये जा रहे हैं । लोकसभा चुनाव भी 2009 में हैं और 2009 की शुरुआत में ही उड़ीसा के भी चुनाव हैं । ऐसे में हिन्दु वोटों के ध्रुवीकरण की भाजपा को सख़्त ज़रूरत है ।
दूसरी बात यह कि उड़ीसा देश के निर्धनतम प्रान्तों में से एक है और इसके कुछ इलाके तो निस्सन्देह रूप से निर्धनतम हैं । बढ़ती महँगाई और बेरोज़गारी की उड़ीसा की ग़रीब जनता पर अभूतपूर्व चोट पड़ रही है और इस आबादी में व्यवस्था और सरकार के प्रति गुस्से का लावा उफन रहा है । इससे निपटने के लिए साम्प्रदायिकता का खेल खेला गया है ताकि असल मुद्दों से जनता का ध्यान भटक जाए और वे धर्मांतरण के मुद्दे को लेकर आपस में मार–काट करें । सच्चाई तो यह है कि ग़रीबी के कारण ही अधिकांश धर्मांतरित लोग ईसाइयत की तरफ़ आकर्षित हुए हैं । लेकिन सबसे बड़ी समस्या हिन्दुत्व की लहर पर सवार होकर सत्ता पाने की इच्छुक साम्प्रदायिक फासीवादी भगवा ब्रिगेड है । सच्चाई यह है कि वोटों का खेल करीब आ रहा है और अपनी गोटियाँ लाल करने की ख़ातिर एक बार फिर कफनखसोट–मुर्दाखोर चुनावी पार्टियाँ ग़रीबों की लाशों पर रोटियाँ सेंकने से बाज़ नहीं आएँगी । यही उड़ीसा में हो रहा है । हमें इसकी सच्चाई को समझने की ज़रूरत है ।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, अक्टूबर-दिसम्बर 2008
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