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उत्तराखण्ड: हिन्दुत्व की नयी प्रयोगशाला

आरएसएस का मुखपत्र ‘पाञ्जन्य’ रोज़ कहीं न कहीं से “लैण्ड जिहाद”, “लव जिहाद” और उत्तराखण्ड में “मुसलमानों की आबादी में बेतहाशा बढ़ोत्तरी” की ख़बरें लाता रहता है। इन झूठे प्रचार अभियानों की निरन्तरता और तेज़ी इस कारण से भी ज़्यादा बढ़ी है क्योंकि राज्य का मुख्यमन्त्री तक “लव जिहाद” और “लैण्ड जिहाद” पर लगातार भाषणबाजी करता रहता है। ऐसा लगता है कि जबसे यह संविधान और धर्मनिरपेक्षता की शपथ खाकर कुर्सी पर बैठा है, तबसे इसने संघी कुत्सा प्रचारों को प्रमाणित और उन्हें सिद्ध करने का ठेका ले लिया है!

ओलम्पिक में भारत की स्थिति: खेल और पूँजीवाद के अन्तरसम्बन्धों का वृहत्तर परिप्रेक्ष्य

वर्ग समाज में उत्पादन के साधनों पर जिस वर्ग का प्रभुत्व होता है वह वर्ग आर्थिक-राजनीतिक-सामाजिक-सांस्कृतिक स्तर पर वर्चस्वकारी भूमिका में होता है। खेल और उससे जुड़े हुए आयोजन भी वर्ग निरपेक्ष नहीं है बल्कि वे भी किसी न किसी रूप में शासक वर्ग के हितों की ही सेवा करने का काम करते हैं। ओलम्पिक से लेकर एशियाड व कॉमन वेल्थ गेम्स तक और क्रिकेट वर्ल्ड कप से लेकर फीफा वर्ल्ड कप तक तमाम अन्तरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के दौरान जो अन्धराष्ट्रवादी उन्माद पैदा किया जाता है वह वर्ग संघर्ष की धार को कुन्द करने का ही काम करता है। एक तरफ़ खेलों की राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के दौरान पूँजीपति वर्ग को खेल, मनोरंजन और विज्ञापन उद्योग से अकूत मुनाफ़ा कमाने की ज़मीन मुहैय्या होती है, तो वहीं इन आयोजनों में जो अन्धराष्ट्रवादी उन्माद पैदा किया जाता है वह वर्ग संघर्ष की आँच पर छीटें मारने का काम ही करता है।

‘पहाड़ों में जवानी ठहर सकती है’, बशर्ते…

कहते हैं कि ‘पहाड़ों में पानी और जवानी ठहर नहीं सकती’। यह कहावत पहाड़ के दर्द को बताती है। इसी ‘दर्द’ ने पहाड़ की जनता को अलग राज्य बनाने के संघर्ष के लिए उकसाया। लेकिन राज्य बनने के बाद भी जिन कारणों से पहाड़ की जनता की सारी उम्मीदें, आकांक्षाएँ टूटी हैं उन कारणों की पड़ताल किये बिना उत्तराखण्ड राज्य में किसी भी समस्या का समाधान सम्भव नहीं है। अलग राज्य बनने के सत्रह वर्षों के दौरान जिस तरह पूँजी का प्रवेश, कॉरपोरेटों, भू-खनन माफियाओं की पहुँच बढ़ी है, उसने पूरे पहाड़ की जैव विविधता, पर्यावरण, नदियों, खेतों, वनों-बगीचों को तबाह कर दिया है।