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जनवरी-फ़रवरी 2023

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चन्द्रशेखर आज़ाद के जन्मदिवस (23 जुलाई) के अवसर पर

चन्द्रशेखर आज़ाद के जन्मदिवस (23 जुलाई) के अवसर पर दिशा छात्र संगठन और नौजवान भारत सभा – इलाहाबाद इकाई की ओर से ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ के कमाण्डर-इन-चीफ़ अमर शहीद…

उत्तर प्रदेश जनसंख्या विधेयक – 2021 : जनता के जनवादी अधिकारों पर फ़ासीवादी हमला!

वास्तव में योगी सरकार द्वारा लाया गया यह बिल जनता के जनवादी अधिकारों पर एक फ़ासीवादी हमला है। ग़ौरतलब है कि पूँजीवादी व्यवस्था के पैरोकारों द्वारा व्यवस्था जनित संकटों, जैसे ग़रीबी, बेरोज़गारी, भुखमरी आदि के लिए जनता को ही ज़िम्मेदार ठहराये जाने के लिए जनसंख्या में वृद्धि को एक हथकण्डे के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। साथ ही फ़ासीवादी भाजपा और संघ परिवार पिछले लम्बे समय से जनसंख्या में वृद्धि और मुस्लिम आबादी की जनसंख्या बढ़ने के मिथक का प्रचार करके साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति करते रहे हैं।

जुलाई-अगस्त 2021

जुलाई -अगस्त 2021   जुलाई-अगस्त 2021 का पूरा अंक डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें अपनी ओर से यूएपीए : जनप्रतिरोध को कुचलने का औज़ार सामयिकी ओलम्पिक में भारत…

ओलम्पिक में भारत की स्थिति: खेल और पूँजीवाद के अन्तरसम्बन्धों का वृहत्तर परिप्रेक्ष्य

वर्ग समाज में उत्पादन के साधनों पर जिस वर्ग का प्रभुत्व होता है वह वर्ग आर्थिक-राजनीतिक-सामाजिक-सांस्कृतिक स्तर पर वर्चस्वकारी भूमिका में होता है। खेल और उससे जुड़े हुए आयोजन भी वर्ग निरपेक्ष नहीं है बल्कि वे भी किसी न किसी रूप में शासक वर्ग के हितों की ही सेवा करने का काम करते हैं। ओलम्पिक से लेकर एशियाड व कॉमन वेल्थ गेम्स तक और क्रिकेट वर्ल्ड कप से लेकर फीफा वर्ल्ड कप तक तमाम अन्तरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के दौरान जो अन्धराष्ट्रवादी उन्माद पैदा किया जाता है वह वर्ग संघर्ष की धार को कुन्द करने का ही काम करता है। एक तरफ़ खेलों की राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के दौरान पूँजीपति वर्ग को खेल, मनोरंजन और विज्ञापन उद्योग से अकूत मुनाफ़ा कमाने की ज़मीन मुहैय्या होती है, तो वहीं इन आयोजनों में जो अन्धराष्ट्रवादी उन्माद पैदा किया जाता है वह वर्ग संघर्ष की आँच पर छीटें मारने का काम ही करता है।

एकसमान सार्वभौमिक और निःशुल्क स्वास्थ्य सुविधा के लिए ‘जन स्वास्थ्य अधिकार मुहिम’

एकसमान सार्वभौमिक और निःशुल्क स्वास्थ्य सुविधा के लिए ‘जन स्वास्थ्य अधिकार मुहिम’ आह्वान डेस्क कोरोना महामारी और फ़ासीवादी सत्ता की आपराधिक लापरवाही का खामियाजा देश की आम आबादी को चुकाना…

आह्वान – नवम्बर 2020-फ़रवरी 2021

  • धनी किसान आन्दोलन का वर्ग चरित्र अब खुलकर सामने आ रहा है
  • बेरोज़गारी की मार झेलती युवा आबादी
  • भारत में महिला श्रमबल भागीदारी दर में चिन्ताजनक गिराव
  • मेडिकल की पढ़ाई पर फ़ीस बढ़ोत्तरी के रूप में हरियाणा सरकार का बड़ा हमला
  • सरकारी शिक्षा पर चौतरफ़ा संकट के बादल
  • कश्मीर के छात्रों का चौपट होता भविष्य
  • मौजूदा धनी किसान आन्‍दोलन और कृषि प्रश्‍न पर कम्‍युनिस्‍ट आन्‍दोलन में मौजूद अज्ञानतापूर्ण और अवसरवादी लोकरंजकतावाद के एक दरिद्र संस्‍करण की समालोचना
  • साम्प्रदायिक-फ़ासीवादियों ने “लव जिहाद” के नाम पर फैलाये जा रहे झूठ को पहुँचाया क़ानून निर्माण तक
  • जनता को गाय के नाम पर कुत्सित राजनीति नहीं बल्कि शिक्षा-स्‍वास्थ्य और रोज़गार चाहिए!
  • क्या भारत में धर्मनिरपेक्षता अब सिर्फ़ काग़ज़ पर ही है?
  • मौजूदा किसान आन्दोलन में भागीदारी को लेकर ग्राम पंचायतों और जातीय पंचायतों का ग़ैर-जनवादी रवैया
  • ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव के नतीजे : तेलंगाना व आन्ध्र में संघी फ़ासीवादी राजनीति की छलाँग के संकेत
  • क्या हिरासत में होने वाली यातनाओं को रोकने के लिए सीसीटीवी कैमरे पर्याप्त हैं?
  • साम्राज्यवादी ताकतों की छाया में अज़रबैजान और आर्मेनिया का युद्ध
  • कोविड-19 के षड्यंत्र सिद्धान्तों का संकीर्ण अनुभववाद और रहस्यवाद
    की परछाई
  • अवसाद के अँधेरे में भटकते युवा
  • आधुनिक भारत की प्रथम शिक्षिका और महान सुधारक सावित्रीबाई फुले की विरासत को आगे बढ़ाओ!
  • अमर शहीदों का पैगाम! जारी रखना है संग्राम!!

    नौजवान भारत सभा की नरवाना व कलायत इकाइयों द्वारा काकोरी काण्ड के शहीदों के 88 वें शहादत दिवस के अवसर पर शहीदों को याद करते हुए जनसभा, नुक्कड़ नाटक व अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। 19 दिसम्बर को काकोरी काण्ड के शहीदों रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाकउल्ला खां और रोशनसिंह का 88वाँ शहादत दिवस था, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी का शहादत दिवस 17 दिसम्बर को था। इसी मौके पर नौजवान भारत सभा के द्वारा हमारे इन शहीदों के विचारों को जनता तक भी पहुँचाया गया।

    विज्ञान के विकास का विज्ञान

    औज़ार का इस्तेमाल, ख़तरे को भाँपना, कन्द-मूल की पहचान, शिकार की पद्धति से लेकर जादुई परिकल्पना को भी आने वाली पीढ़ी को सिखाया जाता है। इंसान ने औज़ारों और अपने उन्नत दिमाग से ज़िन्दा रहने की बेहतर पद्धति का ईजाद की। इसकी निरन्तरता मनुष्य संस्कृति के ज़रिए बरकरार रखता है। यह इतिहास मानव की संस्कृति का इतिहास है न कि उसके शरीर का! विज्ञान औज़ारों और जादुई परिकल्पना और संस्कृति में गुँथी इंसान की अनन्त कहानी में प्रकृति के नियमों का ज्ञान है। कला, संगीत और भाषा भी निश्चित ही यही रास्ता तय करते हैं। विज्ञान और कला व संगीत सामाजिकता का उत्पाद होते हुए भी अलग होते हैं। लेकिन हर दौर के कला व संगीत पर विज्ञान की छाप होती है। बुनियादी तौर पर देखा जाए तो ये इतिहास की ही छाप होती है।