उत्तराखण्ड: हिन्दुत्व की नयी प्रयोगशाला
अपूर्व मालवीय
एक झूठ को अगर सौ बार बोलो तो उसे सच समझा जाता है- गोएबल्स
हिटलर के प्रचार मन्त्री गोएबल्स की इस उक्ति को भारत के फ़ासिस्ट अच्छी तरीक़े से लागू करने की कला में माहिर हो चुके हैं! 1925 से ही आरएसएस की शाखाओं और प्रचार अभियानों में मुसलमानों, ईसाइयों और कम्युनिस्टों के ख़िलाफ़ झूठ, मनगढ़न्त तथ्यों और मिथ्या प्रचारों का जो प्रोपेगेण्डा चलाया गया है उसे आज हिन्दू आबादी का बड़ा हिस्सा सत्य समझने लगा है। इनके प्रचार अभियानों में अन्धराष्ट्रवाद, हिन्दूगर्व का मिथ्याभिमान, मुसलमानों, इसाईयों और कम्युनिस्टों को “हिन्दू धर्म व देश के लिए ख़तरा” जैसे मिथ्या विचारों को बहुत ही कुशलता के साथ प्रचारित किया जाता है। उनके इस प्रचार अभियान से निम्न मध्यवर्ग और मज़दूर वर्ग की वह आबादी ज़्यादा प्रभावित होती है, जो भविष्य की अनिश्चितताओं, धार्मिक पोंगापन्थ, पाखण्ड और अन्धविश्वास में डूबी व अतार्किक होती है। ये वो आबादी है जो ज़िन्दगी की वास्तविक समस्याओं, मसलन रोज़ी-रोटी, आर्थिक तंगी, ग़रीबी-बदहाली जैसी समस्याओं को पूँजीवादी व्यवस्था की समस्या न मानकर किसी छद्म दुश्मन या कारक को इसका मुख्य कारण मानने लगती है। इसी आबादी के बीच संघ का दुष्प्रचार रूपी पौधा फलता-फूलता है और बरगद का आकार लेता जाता है। इसके अतार्किक, अन्धविश्वासी और मिथ्याभिमान की बंजर भूमि पर हिन्दुत्व की खेती की जाती है और सही समय आने पर उसकी फ़सल काटी जाती है।
आजकल इस फसल की बुवाई, रोपाई, सिंचाई का प्रयोग उत्तराखण्ड में ज़ोर-शोर से चल रहा है। मुसलमानों को निशाना बनाकर यहाँ तथाकथित “लव जिहाद”, “लैण्ड जिहाद”, “व्यापार जिहाद” के साथ ही “जनसंख्या जिहाद” का मामला ख़ूब उछाला जा रहा है। संघियों के इस झूठे प्रचारों को हवा देने में गोदी मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक के प्लेटफार्म लगे हुए हैं। यहाँ पुष्कर सिंह धामी की भाजपा सरकार मुसलमानों के ख़िलाफ़ लगातार कोई न कोई अभियान छेड़े हुए है। कभी मुस्लिम बस्तियों को निशाना बनाकर उसे अवैध ठहराने की कोशिश की जाती है, कभी “पहचान सत्यापन” और “सन्दिग्ध व्यक्तियों” की तलाश में मुस्लिम बस्तियों और गाँवों में छापे मारे जाते हैं! इसके साथ ही आरएसएस का मुखपत्र ‘पाञ्जन्य’ रोज़ कहीं न कहीं से “लैण्ड जिहाद”, “लव जिहाद” और उत्तराखण्ड में “मुसलमानों की आबादी में बेतहाशा बढ़ोत्तरी” की ख़बरें लाता रहता है। इन झूठे प्रचार अभियानों की निरन्तरता और तेज़ी इस कारण से भी ज़्यादा बढ़ी है क्योंकि राज्य का मुख्यमन्त्री तक “लव जिहाद” और “लैण्ड जिहाद” पर लगातार भाषणबाजी करता रहता है। ऐसा लगता है कि जबसे यह संविधान और धर्मनिरपेक्षता की शपथ खाकर कुर्सी पर बैठा है, तबसे इसने संघी कुत्सा प्रचारों को प्रमाणित और उन्हें सिद्ध करने का ठेका ले लिया है!
क्या है ये कुत्सा प्रचार और क्या है उसकी हक़ीक़त?
सबसे पहले संघियों के इस झूठे कुत्सा प्रचार के पिटारे को एक साथ खोलकर रख देते हैं, उसके बाद विस्तार से इस पर बात करते हैं। इस पिटारे में “जिहाद” जैसे शब्दों का भण्डार है। जिसमें हिन्दू आबादी के बीच मुस्लिम आबादी के अप्रत्याशित रूप से बढ़ने (“जनसंख्या जिहाद”), हिन्दुओं के धार्मिक स्थलों के अपवित्र होने, हिन्दुओं के रोज़गार और जगह-ज़मीन (“व्यापार जिहाद” और “भूमि जिहाद”) छिन जाने के “भय” को बढ़ावा देना है। इस “भय” को बरक़रार रखने के लिए क्या-क्या तथ्य गढ़े जा रहे हैं, इसकी बानगी देखिये –
“पछुवा दून सहित हिन्दुओं की धर्मनगरी हरिद्वार के चारों ओर मुस्लिम आबादी बढ़ रही है!”
“उत्तराखण्ड के चार जिलों देहरादून, हरिद्वार, उधमसिंह नगर और नैनीताल में मुस्लिम आबादी एक प्रतिशत से बढ़कर अठारह प्रतिशत तक हो गयी है।”
“उत्तराखण्ड के वन क्षेत्रों और गंगा जैसी पवित्र नदी के किनारों पर मुस्लिम क़ब्ज़ा करके अपनी बस्तियाँ बना रहे हैं। वहाँ मस्जिदें, मज़ार और मदरसे बना रहे हैं।”
“चारधाम यात्रा के मुख्यमार्गों पर मुस्लिम दुकानदारों की संख्या बढ़ रही है।”
“पहाड़ों से हिन्दू आबादी पलायन करके जा रही है। वहाँ मुस्लिम उनके मकानों और खेतों को सस्ते दामों में ख़रीद रहे हैं।”
यानी, “भूमि जिहाद”, “व्यापार जिहाद” और “जनसंख्या जिहाद” का “आतंक” पूरे उत्तराखण्ड में छाया हुआ है! इसके साथ ही संघियों का चिर परिचित “लव जिहाद” तो चलता ही रहता है! इन सब झूठे तथ्यों और अफ़वाहों से अलग वास्तविकता कुछ और ही है। सबसे पहले इनके “जनसंख्या जिहाद” पर बात करते हैं-
वास्तविकता यह है कि पछुवा दून सहित हरिद्वार के दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र से लगे दर्जनों गाँवों में मुस्लिम आबादी कई पीढ़ियों से रहती चली आ रही है। वहाँ रहने वाली आबादी के बीच जब प्रत्यक्षतः जाँच-पड़ताल की गयी तो पता चला कि इन इलाक़ों में मुस्लिम आबादी की संख्या में न तो कोई अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी हुई है और न ही कमी! हाँ यह ज़रूर है कि कोरोना महामारी के बाद बहुत से परिवारों का रोजी-रोज़गार कमाने का ज़रिया बदला है। यह हिन्दुओं में भी हुआ है। जिनकी दुकान थी वो उजड़ कर कोई छोटा-मोटा धन्धा करने, ठेला-खोमचा लगाने या दूसरे तरह के मेहनत-मज़दूरी के काम में लग गये! दूसरे, पूँजीवादी व्यवस्था की अनिश्चतताओं ने पूरे देश में ही ग़रीब मेहनतकशों की आबादी को एक जगह से उजाड़ कर दूसरी जगह जाने के लिए मजबूर किया है। इन्हीं अनिश्चिताओं ने ग़रीब मुस्लिम मेहनतकशों को भी अपनी रोज़ी-रोटी की तलाश में इधर-उधर भटकाया है।
जहाँ तक उत्तराखण्ड के चार जिलों में मुस्लिम आबादी के एक प्रतिशत से बढ़कर अठारह प्रतिशत होने की बात है तो ये भी एक कुत्सा प्रचार ही है। 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तराखण्ड राज्य में 82.97 प्रतिशत हिन्दू और 13.95 प्रतिशत मुस्लिम हैं। जहाँ तक चार जिलों में हिन्दू-मुस्लिम की जनसंख्या का मामला है तो 2001 से लेकर 2011 तक की जनगणना के आँकड़े नीचे दिये जा रहे हैं। उन पर एक नज़र मारते ही संघियों के इस झूठ का पर्दाफाश हो जाता है कि मुसलमानों की आबादी में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई है।
जनगणना 2001 | हिन्दू | मुस्लिम |
देहरादून | 1086094 | 139197 |
नैनीताल | 655290 | 86532 |
हरिद्वार | 944927 | 478274 |
ऊधम सिंह नगर | 832811 | 254457 |
जनगणना 2021 | हिन्दू | मुस्लिम |
देहरादून | 1424916 | 202057 |
नैनीताल | 809717 | 120742 |
हरिद्वार | 1214935 | 648119 |
ऊधम सिंह नगर | 1104452 | 372267 |
2021 की जनगणना अभी प्रकिया में है। लेकिन इन आँकड़ों से ये साफ़ हो जाता है कि मुस्लिम आबादी की संख्या में कहीं भी कोई अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी नहीं है।
संघियों के दूसरे कुत्सा प्रचार “भूमि जिहाद या लैण्ड जिहाद” की हक़ीक़त
हिन्दुत्ववादी दक्षिणपन्थी संगठनों और कुछ धर्म के ठेकेदारों के अनुसार पहाड़ों से हिन्दू आबादी का पलायन हो रहा है और उनके ख़ाली पड़े गाँवों पर मुसलमान क़ब्ज़ा कर रहे हैं। इसका भी वास्तविकता से दूर-दूर तक का कोई सम्बन्ध नहीं है। आप ख़ुद सोचिये कि जब एक आबादी अपने रोज़गाार, शिक्षा, चिकित्सा के अभाव और बेहतर जीवन की तलाश में पहाड़ों से पलायन कर रही है तो वहीं दूसरी आबादी इन सबके बिना पहाड़ों के गाँवों में कैसे रह सकती है! जहाँ न तो रोज़गार के साधन हैं, न ही सड़कें, बिजली और पानी की सुविधा! शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सुविधाओं का भी जहाँ अभाव है! इन अफ़वाहों की सबसे मज़ेदार बात यह है कि इनमें कोई ठोस तथ्य या आँकड़े नहीं दिये जाते हैं।
इसके साथ ही जिस “लैण्ड जिहाद” के नाम पर मज़ारों को ध्वस्त करने का धामी सरकार का बुलडोज़र अभियान लगातार चल रहा है उसकी हकीक़त भी कुछ और है। संघियों का दावा है कि मुस्लिम उत्तराखण्ड के वन और नदी क्षेत्र की भूमि पर अवैध क़ब्ज़ा कर रहे हैं। वहाँ बस्तियाँ बसाने के साथ मस्जिद और मज़ार बना रहे हैं। जबकि वास्तविकता कुछ और है। वन विभाग के एक सर्वेक्षण के अनुसार उसकी 11 हज़ार हेक्टेयर की भूमि पर अवैध क़ब्ज़ा है। लेकिन ज़्यादातर अवैध क़ब्ज़ा मस्जिदों या मज़ारों का नहीं बल्कि मन्दिरों, आश्रमों और बड़े-बड़े रिजॉर्ट का है। ‘टाइम्स ऑफ इण्डिया’ के एक हालिया सर्वे के अनुसार उत्तराखण्ड की वनभूमि पर मज़ारों से 10 गुना ज़्यादा मन्दिरों और आश्रमों का क़ब्ज़ा है। यही कारण है कि ग्यारह हज़ार हेक्टेयर अवैध क़ब्ज़े की भूमि से मात्र बाइस सौ हेक्टेयर भूमि को क़ब्ज़ा मुक्त करके इस बुलडोज़र अभियान को अभी फ़िलहाल रोक दिया गया है।
संघी फ़ासीवादियों के “लव जिहाद” की हक़ीक़त
उत्तराखण्ड में “लव जिहाद” के शोर की वास्तविकता यह है कि अभी तक एक भी घटना “लव जिहाद” के रूप में पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज़ नहीं है। राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) भी पहले ही कह चुकी है कि देश में “लव जिहाद” का कोई मामला नहीं मिला है। लेकिन इसके बावजूद उत्तराखण्ड के पुरोला में इसके ख़िलाफ़ हज़ारों की संख्या में जुलूस निकाला गया! मुस्लिम दुकानदारों को अपनी दुकान और मकान ख़ाली करके जाने की चेतावनी दी गयी! इसके ख़िलाफ़ ऐसा माहौल बनाया गया है कि ज़्यादातर हिन्दू आबादी इस फ़ासिस्ट प्रोपोगेण्डा को सच समझने लगी है। भले ही इसका सच्चाई से ‘दूर- दूर तक का रिश्ता न हो! पुरोला में जिस नाबालिग़ लड़की के साथ यह घटना घटी, उसके परिवार का ही कहना है कि यह मामला “लव जिहाद” का नहीं है। वह ख़ुद भी इसे साम्प्रदायिक रंग देने के ख़िलाफ़ हैं। लड़की के मामा ने मीडिया को बताया कि इस घटना के बाद से ही अनेक हिन्दुत्ववादी संगठन के नेताओं के उनके पास फ़ोन आते रहे और वे उनके ऊपर इसे “लव जिहाद” का रूप देने के लिए दबाव डालते रहे! जब उन्होंने इंकार कर दिया तो नेताओं ने ख़ुद ही इसे “लव जिहाद” के रूप के प्रचारित कर दिया।
जहाँ तक “लव जिहाद” जैसे शब्द और अवधारणा की बात है तो ये हिन्दुत्ववादी दक्षिणपन्थी संगठनों की तरफ़ से मुस्लिमों के ख़िलाफ़ फैलाया गया एक मिथ्या प्रचार है। इसकी पूरी अवधारणा ही साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देने वाली, घोर स्त्री-विरोधी और हिन्दुत्व की जाति व्यवस्था की पोषक अवधारणा है। इसके अनुसार मुस्लिम युवक अपना नाम और पहचान बदलकर हिन्दू लड़की को बरगलाकर, बहला-फुसलाकर अपने जाल में फँसाता है और उसके बाद जबरन हिन्दू लड़की का धर्म परिवर्तन करवाता है! यानी इस अवधारणा के अनुसार स्त्री का कोई स्वतन्त्र व्यक्तित्व और विचार ही नहीं होता! स्त्रियों को कोई भी बहला- फुसलाकर अपने जाल में फँसा सकता है! “लव जिहाद” के अनुसार मुस्लिम युवक जानबूझकर अपना “नाम” बदलते हैं ताकि “हिन्दू लड़कियों को फँसा सकें। यानी प्यार “नाम” पर टिका है। जैसे दो व्यक्तियों का कोई व्यक्तित्व ही न हो! उनकी अपनी पसन्दगी-नापसन्दगी ही न हो! “नाम” अगर मुस्लिम होगा तो प्यार नहीं होगा! हिन्दू होगा तो हो जायेगा !
इस पूरी अवधारणा का इस्तेमाल हिन्दुत्ववादी संगठन लगातार करते आ रहे हैं। इसे इन्होंने अपने लगातार झूठे प्रचार से व्यापक हिन्दू आबादी में स्थापित भी कर दिया है। हालाँकि यह शब्द अपने आप में ग़ैर-संवैधानिक और अमान्य है। जहाँ तक किसी स्त्री- पुरुष के प्रेम का मामला है तो भारतीय संविधान किसी भी जाति-धर्म के स्त्री-पुरुष को आपस में प्रेम करने और उसे अपना जीवनसाथी चुनने की पूरी आज़ादी देता है। अलग-अलग धर्मों-जातियों-संस्कृतियों के लोगों के बीच प्रेम-सम्बन्ध तो किसी भी समाज को ज़्यादा स्वस्थ और सुन्दर बनाते हैं। हमारे देश में भी तमाम पूर्वाग्रहों के बावजूद लाखों लोग जाति-धर्म के बन्धनों को तोड़कर प्यार और शादी करते रहे हैं और थोड़े-बहुत विरोध के बाद उन्हें स्वीकार कर लिया जाता रहा है। लेकिन पिछले एक दशक के दौरान संघ और भाजपा ने इस ख़ूबसूरत बात को भी ज़हर और नफ़रत फैलाने का ज़रिया बना डाला है।
सवाल यह उठता है कि इस तरह के मुद्दे से भाजपा और संघ को क्या मिलने वाला है?
आज देश के किसी भी हिस्से में हिन्दुत्व की राजनीति को पोषित करने वाली कोई भी घटना घटती है तो उसका देश-व्यापी फ़ायदा भाजपा को होता है। 1925 से ही संघ ने बहुसंख्यक हिन्दुओं के बीच अल्पसंख्यक मुसलमानों का जो “भय” पैदा किया है उसकी राजनीति के लिए एक छोटी सी घटना ही काफ़ी है। झूठे प्रचारों और अफ़वाहों को मिलाकर मुसलमानों की जिस मिथ्या छवि को संघ पेश करना चाहता है वो छवि अगर कहीं भी दिखती है तो इससे हिन्दुत्व की राजनीति को अपने आपको सही व जायज़ ठहराने का मौका मिलता है। उत्तराखण्ड में मुसलमानों के ख़िलाफ़ जिस “लैण्ड जिहाद” या “लव जिहाद” पर धामी सरकार कार्रवाई कर रही है, उसकी सच्चाई चाहे जो हो, लेकिन गोदी मीडिया से लेकर सोशल मीडिया द्वारा पूरे देश के पैमाने पर मुसलमानों को “भूमि जिहादी” और “लव जिहादी” बनाकर पेश किया गया है और इसमें वे एक हद तक सफल भी हुए हैं।
उत्तराखण्ड को हिन्दुत्व की प्रयोगशाला बनाने की मुफ़ीद ज़मीन भी मौजूद है। यह हिन्दुओं का धार्मिक स्थल होने के साथ ही यहाँ की बहुसंख्यक हिन्दू आबादी सवर्ण जाति से ताल्लुक रखती है। आरएसएस यहाँ हिन्दू धर्म और हिन्दुत्व की राजनीति का एक दूसरे से घालमेल करते हुए मिथकों को यथार्थ बनाते हुए सवर्ण जाति के धार्मिक और जातिगत पूर्वाग्रहों को बढ़ावा देते हुए उनके बीच अपना आधार बनाता है। यहाँ जातिगत पूर्वाग्रह की जड़ें बहुत ही गहरी हैं। यहाँ तक कि इस राज्य आन्दोलन की शुरुआत ही आरक्षण विरोध से हुई थी! ऐसे में सहज ही समझा जा सकता है कि यहाँ हिदुत्व की राजनीति के लिए कितनी मुफ़ीद ज़मीन मौजूद है।
दरअसल, ये मुद्दे व्यापक हिन्दू आबादी के बीच संघ द्वारा फैलाये गये उस “डर” को स्थापित करने का काम करते हैं जिसके मुताबिक़ अगर भाजपा या संघ न हों तो “हिन्दुओं का जीना तक मुश्किल” हो जायेगा! इन मुद्दों को उछालकर और साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करके भाजपा अपना वोट बैंक बढ़ाने और उसे सुदृढ़ करने में कामयाब होती है। दूसरे, आज जब पूरे देश में ही शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार, महँगाई जैसे सबसे ज़रूरी मसलों पर भाजपा सरकार नाकाम हो चुकी है, तो ये मुद्दे जनता की एकता को तोड़ने और लोगों का ध्यान भटकाने के लिए सबसे कारगर हथियार भी हैं।
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(मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, सितम्बर-अक्टूबर 2023)
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