‘पहाड़ों में जवानी ठहर सकती है’, बशर्ते…
कहते हैं कि ‘पहाड़ों में पानी और जवानी ठहर नहीं सकती’। यह कहावत पहाड़ के दर्द को बताती है। इसी ‘दर्द’ ने पहाड़ की जनता को अलग राज्य बनाने के संघर्ष के लिए उकसाया। लेकिन राज्य बनने के बाद भी जिन कारणों से पहाड़ की जनता की सारी उम्मीदें, आकांक्षाएँ टूटी हैं उन कारणों की पड़ताल किये बिना उत्तराखण्ड राज्य में किसी भी समस्या का समाधान सम्भव नहीं है। अलग राज्य बनने के सत्रह वर्षों के दौरान जिस तरह पूँजी का प्रवेश, कॉरपोरेटों, भू-खनन माफियाओं की पहुँच बढ़ी है, उसने पूरे पहाड़ की जैव विविधता, पर्यावरण, नदियों, खेतों, वनों-बगीचों को तबाह कर दिया है।