उन्नीस सौ सत्रह, सात नवम्बर
मर रहा है रूसी साम्राज्य
शीत प्रसाद में सुनायी नहीं देती लहँगों की रेशमी सरसराहट
और न ही ज़ार की ईस्टर की प्रार्थनाएँ,
न ही साइबेरिया की ओर जाती सड़कों पर ज़ंजीरों का क्रन्दन…
मर रहा है, रूसी साम्राज्य मर रहा है…
मर रहा है रूसी साम्राज्य
शीत प्रसाद में सुनायी नहीं देती लहँगों की रेशमी सरसराहट
और न ही ज़ार की ईस्टर की प्रार्थनाएँ,
न ही साइबेरिया की ओर जाती सड़कों पर ज़ंजीरों का क्रन्दन…
मर रहा है, रूसी साम्राज्य मर रहा है…
हाथ मिलाओ साथी, देखो
अभी हथेलियों में गर्मी है ।
पंजों का कस बना हुआ है ।
पीठ अभी सीधी है,
सिर भी तना हुआ है ।
अन्धकार तो घना हुआ है
मगर गोलियथ से डेविड का
द्वंद्व अभी भी ठना हुआ है ।
उन दुखी माओं के नाम
रात में जिनके बच्चे बिलखते हैं और
नींद की मार खाए हुए ब़ाजुओं से संभलते नहीं
दुख बताते नहीं
मिन्नतों ज़ारियों11 से बहलते नहीं
ह्यूज की कविताओं का विषय मुख्य रूप से मेहनतकश आदमी है, चाहे वह किसी भी नस्ल का हो। उनकी कविताओं में अमेरिका की सारी शोषित-पीड़ित और श्रमजीवी जनता की कथा-व्यथा का अनुभव किया जा सकता है। ह्यूज का अमेरिका इन सब लोगों का है – वह मेहनतकशों का अमेरिका है, वही असली अमेरिका है, जो दुनिया में अमन-चैन और बराबरी चाहता है, और तमाम तरह के भेदभाव को मिटा देना चाहता है। ह्यूज की इसी सोच ने उन्हें अन्तरराष्ट्रीय कवि बना दिया और दुनिया-भर के मुक्तिसंघर्षों के लिए वे प्रेरणा के स्रोत बन गये।
हम सीख लेंगे
वो सबकुछ
जो ज़रूरी है
और जो सीखा जा सकता है
ताकि जान लें सभी
यह दृढ़ता तर्कसंगत है,
कि हमारी ‘उम्मीद
महज एक भावना नहीं है’।
दूसरों के लिए प्रकाश की एक किरण बनना, दूसरों के जीवन को देदीप्यमान करना, यह सबसे बड़ा सुख है जो मानव प्राप्त कर सकता है । इसके बाद कष्टों अथवा पीड़ा से, दुर्भाग्य अथवा अभाव से मानव नहीं डरता । फिर मृत्यु का भय उसके अन्दर से मिट जाता है, यद्यपि, वास्तव में जीवन को प्यार करना वह तभी सीखता है । और, केवल तभी पृथ्वी पर आँखें खोलकर वह इस तरह चल पाता है कि जिससे कि वह सब कुछ देख, सुन और समझ सके; केवल तभी अपने संकुचित घोंघे से निकलकर वह बाहर प्रकाश में आ सकता है और समस्त मानवजाति के सुखों और दु:खों का अनुभव कर सकता है । और केवल तभी वह वास्तविक मानव बन सकता है ।
महमूद दरवेश की कविता दरअसल फलस्तीनी सपनों की कविता है । उनकी कविता अपने लोगों की आवाज़ है जो बेइंतहा तकलीफ़, निर्वासन, दहशत और उम्मीद और सपनों से रची गयी है । फलस्तीनी कविता के बारे में उनका कहना था कि इसका महत्व हमारी धरती के कण–कण से इसके घनिष्ठ सम्बन्ध में निहित है-इसके पहाड़ों, घाटियों, पत्थरों, खण्डहरों और यहाँ के लोगों के सम्बन्ध में जो अपने कंधों पर भारी बोझ और अपनी कलाइयों तथा आकांक्षाओं पर कसी जंज़ीरों के बावजूद सिर उठाकर आगे बढ़ रहे हैं । यही प्रतिरोध का तत्व फलस्तीनी जनता की पहचान है, महमूद दरवेश की कविता की पहचान है ।
त्रिलोचन की कविताएँ जीवन, संघर्ष और सृजन के प्रति अगाध आस्था की, बुर्जुआ समाज के रेशे-रेश में व्यक्त अलगाव (एलियनेशन) के निषेध की और प्रकृति और जीवन के व्यापक एंव सूक्ष्म सौन्दर्य की भावसंवेदी सहज कविताएँ हैं। सहजता उनकी कविताओं का प्राण है। वे जितने मानव-संघर्ष के कवि हैं, उतने ही प्रकृति के सौन्दर्य के भी। पर रीतकालीन, छायावादी और नवरूपवादी रुझानों के विपरीत प्रकृति के सन्दर्भ में भी त्रिलोचन की सौन्दर्याभिरुचि उनकी भौतिकवादी विश्वदृष्टि के अनुरूप है जो सहजता-नैसर्गिकता-स्वाभाविकता के प्रति उद्दाम आग्रह पैदा करती है और अलगाव की चेतना के विरुद्ध खड़ी होती है जिसके चलते मनुष्य-मनुष्य से कट गया है, और प्रकृति से भी।
मनुष्य का सही काम है जीना, न कि सिर्फ जीवित रहना।
अपने दिन मैं बर्बाद नहीं करूँगा
उन्हें लम्बा बनाने की कोशिश मैं।
मैं अपने समय का इस्तेमाल करूँगा।