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पाठक मंच, जनवरी-फरवरी 2018 – पत्रिका को नियमित कीजिये – केशव, पटना

हमारी कलम जब जब उठती है ,
बगावत लिखती है
बगावत, इंसान का इंसान के शोषण के खिलाफ़,
अमीरों का गरीबों के दोहन के खिलाफ,
झुग्गियों में दहाड़ती
भुखमरी के खिलाफ़,
भीड़ में मँडराती
बेरोज़गारी के खिलाफ़

सावित्रीबाई फुले की चार शीषर्कविहीन कविताएँ

“ज्ञान के बिना सब खो जाता है
ज्ञान के बिना हम जानवर बन जाते हैं
इसलिए खाली न बैठो और जा कर शिक्षा लो
तुम्हारे पास सीखने का सुनहरा मौका है
इसलिए सीखो और जाति के बन्धन तोड़ो”

कविता : कवि का दायित्व / पाब्लो नेरुदा Poem : The Poet’s Duty / Pablo Neruda

उसके लिये जो कोई भी इस शुक्रवार की सुबह
समुद्र को नहीं सुन रहा है, उसके लिये जो भी घर या दफ्तर के
दड़बे में कैद है, कारखाने या स्त्री में
या गली या खदान में या सख्त जेल की कोठरी में:
उसके लिये मैं आता हूँ, और, बिना कुछ कहे या देखे,
मैं पहुँचता हूँ और खोलता हूँ उसके कैदखाने के दरवाज़े,
और शुरू होता है एक कम्पन, अनिश्चित और जिद्दी,
शुरू होता है बिजली का कड़कना

कविता : जब फ़ासिस्ट मज़बूत हो रहे थे / बेर्टोल्ट ब्रेष्ट Poem : When the Fascists kept getting stronger / Bertolt Brecht

फैक्टरियों और खैरातों की लाइन में
हमने देखा है मजदूरों को
जो लड़ने के लिए तैयार हैं
बर्लिन के पूर्वी जिले में
सोशल डेमोक्रेट जो अपने को लाल मोरचा कहते हैं
जो फासिस्ट विरोधी आंदोलन का बैज लगाते हैं
लड़ने के लिए तैयार रहते हैं
और चायखाने की रातें बदले में गुंजार रहती हैं

शीषर्कविहीन कविता l बेबी

जहाँ रोज एक मलकानगिरी है
एक बस्तर है, एक गुजरात है
एक मुज़फ्फ़रनगर है
इन सब के बीच भी-
जब
रोज देखे जाते हैं सपने
बच्चे बड़े हो रहे हैं रोज
लोगों को बताना होगा रोज
कि
‘हँसने’ और ‘रोने’ के मायने
इस बात से भी तय होते हैं
कि कौन ‘रो’ और ‘हँस’ रहा है…

कविता : राजा ने आदेश दिया / देवी प्रसाद मिश्र

राजा ने आदेश दिया : हँसना बन्द
क्योंकि लोग हँसते हैं तो राजा के विरुद्ध हँसते हैं
राजा ने आदेश दिया : होना बन्द
क्योंकि लोग होते हैं तो राजा के विरुद्ध होते हैं
इस तरह राजा के आदेशों ने लोगों को
उनकी छोटी-छोटी क्रियाओं का महत्त्व बताया

अमर शहीद राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ को याद करते हुए

बिस्मिल-अशफ़ाक की दोस्ती आज भी हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे और साझे संघर्ष का प्रतीक है। ज्ञात हो एच.आर.ए. की धारा ही आगे चलकर एच.एस.आर.ए. में विकसित हुई जिससे भगतसिंह, बटुकेश्वर दत्त, सुखदेव, भगवती चरण वोहरा, दुर्गावती और राजगुरू आदि जैसे क्रान्तिकारी जुड़े व चन्द्रशेखर ‘आज़ाद’ इसके कमाण्डर-इन-चीफ़ थे। हमारे इन शहीदों ने एक समता मूलक समाज का सपना देखा था। भरी जवानी में फाँसी का फ़न्दा चूमने वाले इन शहीदों को देश की खातिर कुर्बान हुए लम्बा समय बीत चुका है। अग्रेजी राज भी अब नहीं है लेकिन बेरोजगारी, भुखमरी, ग़रीबी और अमीर-ग़रीब की बढ़ती खाई से हम आज भी आज़िज हैं।

कविता – मैं सज़ा की माँग करता हूँ / पाब्लो नेरूदा Poem – I ask for punishment / Pablo Neruda

मैं नहीं चाहता हर तरफ़ हाथ मिलाना और भूल जाना,
मैं उनके ख़ून सने हाथ नहीं छूना चाहता।
मैं सज़ा की माँग करता हूँ।

कविता – हमारे समय के दो पहलू / सत्‍यव्रत

यह एक बेहतर समय है,
या शायद, इतिहास का एक दुर्लभ समय।
बेजोड़ है यह समय
जीवन-मरण का एक नया,
महाभीषण संघर्ष रचने की तैयारी के लिए,
अभूतपूर्व अनुकूल है
धारा के प्रतिकूल चलने के लिए।

कवितांश – ‘तुम्हारे हाथ और उनके झूठ’ / नाज़िम हिक़मत

दुनिया गाय-बैलों के सींगों पर नहीं टिकी है
दुनिया को ढोते हैं तुम्हारे हाथ।