शोकगीत
लोग मेरे दोस्त के बारे में
बहुत बातें करते हैं
कैसे वह गया और फ़िर नहीं लौटा
कैसे उसने अपनी जवानी खो दी
गोलियों की बौछारों ने
उसके चेहरे और छाती को बींध डाला
बस और मत कहना
मैंने उसका घाव देखा है
लोग मेरे दोस्त के बारे में
बहुत बातें करते हैं
कैसे वह गया और फ़िर नहीं लौटा
कैसे उसने अपनी जवानी खो दी
गोलियों की बौछारों ने
उसके चेहरे और छाती को बींध डाला
बस और मत कहना
मैंने उसका घाव देखा है
अगर मुझे अपनी रोटी छोड़नी पड़े
अगर मुझे अपनी कमीज और अपना बिछौना
बेचना पड़े
अगर मुझे पत्थर तोड़ने का काम करना पड़े
या कुली का
या मेहतर का
अगर मुझे तुम्हारा गोदाम साफ करना पड़े
या गोबर से खाना ढूंढ़ना पड़े
या भूखे रहना पड़े
और खामोश
इनसानियत के दुश्मन
मैं समझौता नहीं करूंगा
आखिर तक मैं लड़ूंगा
महमूद दरवेश की कविता दरअसल फलस्तीनी सपनों की कविता है । उनकी कविता अपने लोगों की आवाज़ है जो बेइंतहा तकलीफ़, निर्वासन, दहशत और उम्मीद और सपनों से रची गयी है । फलस्तीनी कविता के बारे में उनका कहना था कि इसका महत्व हमारी धरती के कण–कण से इसके घनिष्ठ सम्बन्ध में निहित है-इसके पहाड़ों, घाटियों, पत्थरों, खण्डहरों और यहाँ के लोगों के सम्बन्ध में जो अपने कंधों पर भारी बोझ और अपनी कलाइयों तथा आकांक्षाओं पर कसी जंज़ीरों के बावजूद सिर उठाकर आगे बढ़ रहे हैं । यही प्रतिरोध का तत्व फलस्तीनी जनता की पहचान है, महमूद दरवेश की कविता की पहचान है ।