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साथी अरविन्द की याद में….
शहीदों के लिए
शशिप्रकाश
ज़िन्दगी लड़ती रहेगी-गाती रहेगी
नदियाँ बहती रहेंगी
कारवाँ चलता रहेगा, चलता रहेगा, बढ़ता रहेगा
मुक्ति की राह पर
छोड़कर साथियो, तुमको धरती की गोद में ।
खो गये तुम हवा बनकर वतन की हर साँस में
बिक चुकी इन वादियों में गन्ध बनकर घुल गये
भूख से लड़ते हुए बच्चों की घायल आस में
कर्ज़ में डूबी हुई फसलों की रंगत बन गये
ख़्वाबों के साथ तेरे चलता रहेगा…
हो गये कुर्बान जिस मिट्टी की खातिर साथियो
सो रहो अब आज उस ममतामयी की गोद में
मुक्ति के दिन तक फिजाँ में खो चुकेंगे नाम तेरे
देश के हर नाम में ज़िन्दा रहोगे साथियो
यादों के साथ तेरे चलता रहेगा….
जब कभी भी लौटकर इन राहों से गुज़रेंगे हम
जीत के सब गीत कई–कई बार हम फिर गायेंगे
खोज कैसे पायेंगे मिट्टी तुम्हारी साथियो
ज़र्रे–ज़र्रे को तुम्हारी ही समाधि पायेंगे
लेकर ये अरमाँ दिल में चलता रहेगा…
जीवन लक्ष्य
कार्ल मार्क्स
कठिनाइयों से रीता जीवन
मेरे लिए नहीं,
नहीं, मेरे तूफानी मन को यह स्वीकार नहीं ।
मुझे तो चाहिए एक महान ऊँचा लक्ष्य
और, उसके लिए उम्रभर संघर्षों का अटूट क्रम ।
ओ कला! तू खोल
मानवता की धरोहर, अपने अमूल्य कोषों के द्वार
मेरे लिए खोल!
अपनी प्रज्ञा और संवेगों के आलिंगन में
अखिल विश्व को बाँध लूँगा मैं!
आओ,
हम बीहड़ और कठिन सुदूर यात्रा पर चलें
आओ, क्योंकि –
छिछला, निरुद्देश्य जीवन
हमें स्वीकार नहीं ।
हम, ऊँघते, कलम घिसते हुए
उत्पीड़न और लाचारी में नहीं जियेंगे ।
हम – आकांक्षा, आक्रोश, आवेग और
अभिमान में जियेंगे!
असली इन्सान की तरह जियेंगे ।
वज़न हटा लो
माओ त्से तुङ
पीली पड़ गयी घास पर से हटा लो वज़न
दो रातें ज़रा उसे ताज़ा हवा, ओस
की छुअन पाने दो
घास फिर हरी हो जायेगी ।
शंघाई से अभी–अभी आया जो
ताज़ा हवा का झोंका
उसे ज़रा घास के ऊपर बहने दो –
घास लहरा–लहराकर
गीत गाने लगेगी, देखना ।
पा जाएगी फिर,
बाधाओं में घिरकर, वज़न सहकर,
मार खाकर भी न मरने का मिजाज़ ।
सब ठीक हो जायेगा
ह्वांग्हो फिर गाने लगेगा ।
ख़ुशी के गीत ।
ऐसा होना ही है
जान से भी प्यारे कामरेडों को
दफनाते हुए
इतने आँसू, इतना खून,
इतना पसीना बहाते हुए
इस रपटीले पथ पर महीनों पर महीने
किसी अरुणाभ सुबह के लिए
हमारा चलना, चलते जाना
बेकार नहीं होगा ।
मृत कॉमरेड के लिए
माओ त्से तुङ
पलकें बन्द कर आँसू रोकने की
कोशिश की थी हमने
आँसू माने नहीं
सामने पड़ी है कॉमरेड लिङ की लाश ।
दुश्मनों के सीनों पर गोली बनकर
बिंधने से पहले
मरना नहीं चाह रहे थे कॉमरेड लिङ ।
उनकी लाश की तरफ भीगी
आँखों से खड़े हम ।
साढ़े तीन हाथ ज़मीन पर
मुझे लिटाकर
आगे निकल जाओ तुम सब
रुके कि जंगल के किस कोने से
कब किस रूप में मौत
तुम्हें दबोच लेगी, पता नहीं ।
यही समझाना चाह रहे हैं
कॉमरेड लिङ के खामोश होंठ
खामोश बिगुल की शोकधुन के साथ
हम आगे बढ़ जायेंगे
पीछे मुड़कर नहीं देखेंगे
रातभर खाई–खन्दक लाँघते हुए
बढ़ते रहेंगे लक्ष्य की ओर
तब तक लाखों–लाख जुगनू
कॉमरेड लिङ की देह में रोशनी
बनकर बसे रहेंगे ।
रात से
पाश
उदास बाज़रा, सिर झुकाये खड़ा है
तारे भी बात नहीं करते
रात को क्या हुआ है…
ऐ रात, तू मेरे लिए उदास न हो
तू मेरी देनदार नहीं
रहने दे, इस तरह न सोच
जुगाली करते पशु कितने चुप हैं
और गाँव की स्निग्ध फिज़ा कितनी शान्त है
रहने दे, रात, तू ऐसे न सोच, तू मेरी आँखों में झाँक
ये उस बाँके यार को अब कभी न देखेंगी
जिसकी आज अख़बारों ने बात की है….
रात! तेरा उस दिन का वह रंग कहाँ है ?
जब वह पहाड़ी चो के जल की तरह
जल्द–जल्द आया था
चाँदनी की लौ में पहले हम पढ़े
फिर चोरों की तरह बहस की
और फिर झगड़ पड़े थे
रात! तू तब तो खुश थी
जब हम लड़ते थे
तू अब क्यों उदास है
जब हम बिछड़ गये हैं
रात, तुझे जानेवाले की कसम
तेरा यों उदास होना बनता नहीं है
मैं तेरा देनदार हूँ
तू मेरी देनदार नहीं
रात, तू मुझे बधाई दे
मैं इन खेतों को बधाई देता हूँ
खेतों को सब पता है
आदमी का लहू कहाँ गिरता है
और लहू का मोल क्या होता
ये खेत सब जानते हैं
इसलिए ऐ रात!
तू मेरी आँखों में देख
और मैं भविष्य की आँखों में देखता हूँ ।
ज़िन्दगी/मौत
पाश
जीने का एक और भी ढंग होता है
भरी ट्रैफिक के बीचो–बोच लेट जाना और जाम कर देना
वक़्त का बोझिल पहिया ।
मरने का एक और भी ढंग होता है
मौत के चेहरे से उलट देना नव़़ाम
और ज़िन्दगी की चार सौ बीसी को
सरेआम बेपर्द कर देना ।
लहू है कि तब भी गाता है
पाश
हमारे लहू को आदत है
मौसम नहीं देखता, महफिल नहीं देखता
ज़िन्दगी के जश्न शुरू कर देता है
सूली के गीत छेड़ देता है
शब्द हैं कि पत्थरों पर बह–बहकर घिस जाते हैं
लहू है कि तब भी गाता है
ज़रा सोचें कि रूठी सर्द रातों को कौन मनाये ?
निर्मोही पलों को हथेलियों पर कौन खिलाये ?
लहू ही है जो रोज़ धाराओं के होंठ चूमता है
लहू तारीख़ की दीवारों को उलाँघ आता है
यह जश्न यह गीत किसी को बहुत हैं –
जो कल तक हमारे लहू की खामोश नदी में
तैरने का अभ्यास करते थे ।
जिन्होंने उम्रभर तलवार का गीत गाया है
उनके शब्द लहू के होते हैं
लहू लोहे का होता हे
जो मौत के किनारे जीते हैं
उनकी मौत से ज़िन्दगी का सफर शुरू होता है
जिनका लहू और पसीना मिट्टी में गिर जाता है
वे मिट्टी में दबकर उग आते हैं ।
सबसे खूबसूरत
नाज़िम हिकमत
सबसे खूबसूरत है वह समुद्र
जिसे अब तक देखा नहीं हमने
सबसे खूबसूरत बच्चा
अब तक बड़ा नहीं हुआ
सबसे खूबसूरत हैं वे दिन
जिन्हें अभी तक जिया नहीं हमने
सबसे खूबसूरत हैं वे बातें
जो अभी कही जानी हैं
हम देखेंगे
नाज़िम हिकमत
हम खूबसूरत दिन देखेंगे, बच्चो,
हम देखेंगे धूप के उजले दिन
हम दौड़ायेंगे, बच्चो,
अपने तेज़ रफ़्तार नावें खुले समन्दर में
हम दौड़ायेंगे,
उन्हें चमकीले–नीले–खुले समन्दर में–––
ज़रा सोचो तो, पूरी रफ़्तार से जाती
पहलू बदलती हुई मोटर
घरघराती हुई मोटर!
धूल की जगह राख
जैक लण्डन
धूल की जगह राख होना चाहूँगा मैं
मै चाहूँगा कि एक देदीप्यमान ज्वाला बन जाये
भड़ककर मेरी चिनगारी
बजाय इसके कि सड़े काठ में उसका दम घुट जाये ।
एक ऊँघते हुए स्थायी ग्रह के बजाय
मैं होना चाहूँगा एक शानदार उल्का
मेरा प्रत्येक अणु उद्दीप्त हो भव्यता के साथ ।
मनुष्य का सही काम है जीना,
न कि सिर्फ जीवित रहना ।
अपने दिन मैं बर्बाद नहीं करूँगा
उन्हें लम्बा बनाने की कोशिश में ।
मैं अपने समय का इस्तेमाल करूँगा ।
कार्ल मार्क्स
इतिहास उन्हें ही महान मनुष्य मानता है, जो सामान्य लक्ष्य के लिए काम करके, स्वयं उदात्त बन जाते हैं; अनुभव सर्वाधिक सुखी मनुष्य के रूप में उसी व्यक्ति की स्तुति करता है जिसने लोगों की अधिक से अधिक संख्या के लिए सुख की सृष्टि की है ।
‘‘पेशे का चुनाव करने के सम्बन्ध में एक नौजवान के विचार’’
युवा कार्ल मार्क्स
(‘पेशे का चुनाव करने के सम्बन्ध में एक नौजवान के विचार’ नामक रचना से)
हमने यदि ऐसा पेशा चुना है जिसके माध्यम से मानवता की हम अधिक सेवा कर सकते हैं तो उसके नीचे हम दबेंगे नहीं-क्योंकि यह ऐसा होता है जो सबके हित में किया जाता है । ऐसी स्थिति में हमें किसी तुच्छ, सीमित अहम्वादी उल्लास की अनुभूति नहीं होगी, वरन तब हमारा व्यक्तिगत सुख जनगण का भी सुख होगा, हमारे कार्य तब एक शान्तिमय किन्तु सतत् रूप से सक्रिय जीवन का रूप धारण कर लेंगे, और जिस दिन हमारी अर्थी उठेगी, उस दिन भले लोगों की आँखों में हमारे लिए गर्म आँसू होंगे ।
माओ त्से तुङ
हर आदमी एक न एक दिन ज़रूर मरता है, लेकिन हर आदमी की मौत की अहमियत अलग–अलग होती है ।–––जनता के लिए प्राण निछावर करना थाई पर्वत से भी ज़्यादा भारी अहमियत रखता है, जबकि फासिस्टों के लिए तथा शोषकों व उत्पीड़कों के लिए जान देना पंख से भी ज़्यादा हल्की अहमियत रखता है ।
एफ. ज़र्जि़न्स्की
दूसरों के लिए प्रकाश की एक किरण बनना, दूसरों के जीवन को देदीप्यमान करना, यह सबसे बड़ा सुख है जो मानव प्राप्त कर सकता है । इसके बाद कष्टों अथवा पीड़ा से, दुर्भाग्य अथवा अभाव से मानव नहीं डरता । फिर मृत्यु का भय उसके अन्दर से मिट जाता है, यद्यपि, वास्तव में जीवन को प्यार करना वह तभी सीखता है । और, केवल तभी पृथ्वी पर आँखें खोलकर वह इस तरह चल पाता है कि जिससे कि वह सब कुछ देख, सुन और समझ सके; केवल तभी अपने संकुचित घोंघे से निकलकर वह बाहर प्रकाश में आ सकता है और समस्त मानवजाति के सुखों और दु:खों का अनुभव कर सकता है । और केवल तभी वह वास्तविक मानव बन सकता है ।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, अक्टूबर-दिसम्बर 2008
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