लखविन्दर की तीन कविताएँ
(1)
मकसद का चुनाव
कुछ भी कहने को कहा
तो क्या कहा,
कुछ भी पढ़ने को पढ़ा
तो क्या पढ़ा,
कुछ भी लिखने को लिखा
तो क्या लिखा,
कुछ भी करने को किया
तो क्या किया?
आओ चुनें
दुनिया बदलने का मकसद,
और इस ख़ातिर
कुछ कहें।
कुछ पढ़ें।
कुछ लिखें।
कुछ करें।
(2)
हमें भी होना है
पर्वत की तरह-
ऊँचा है
छूता है आकाश
लेकिन
ज़मीन नहीं छोड़ी है।
हमें उठना है
बादल की तरह
और बरसना है,
बीजों को देनी है नमी
नये जीवन में
अपना भी कुछ हिस्सा देना है।
(3)
हम सीख लेंगे
हम सीख लेंगे
जीवन जीने का ढंग
सबके सो जाने पर भी
जागना हमेशा
जीवन से भागकर जीने की
इच्छाओं के आगे दीवार बनना,
जनता के लिए जीना
और मरना,
उसका अपना बनना।
हम सीख लेंगे
बदलाव के नियम,
सतह को भेदना
गहराइयों में उतरना
मायूसियों से निकलना
कामयाबियों में सम्भलना,
‘दुनिया बदलते हुए
खुद को बदलना’।
हम सीख लेंगे
वो सबकुछ
जो ज़रूरी है
और जो सीखा जा सकता है
ताकि जान लें सभी
यह दृढ़ता तर्कसंगत है,
कि हमारी ‘उम्मीद
महज एक भावना नहीं है’।
हम सीख लेंगे
मौलिकता की अति से दूर रहना,
करना
अध्ययन, संघर्ष और सृजन।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, अप्रैल-जून 2009
'आह्वान' की सदस्यता लें!
आर्थिक सहयोग भी करें!