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पत्रिका को नियमित कीजिये

केशव, पटना

आदरणीय संपादक महोदय, मैं आह्वान का नियमित पाठक हूँ। मैं इस पत्रिका को काफ़ी पसंद करता हूँ। इसमें छपने वाले प्रत्येक लेख मुझे प्रेरित करते हैं। आज पूँजीवादी व्यवस्था में मीडिया, जो पूरी तरह से पूँजीपतियों के हाथों बिक चुकी है खुल कर इन बड़ी चुनावबाज पार्टियों के पक्ष में खड़ी होती है। जो आज देशभक्ति को सरकार भक्ति से जोड़ने का काम कर रही है। ऐसे समय में आह्वान जनता का पक्ष लेते हुए इस सड़ती व्यवस्था का आलोचनात्मक विश्लेषण करता है एवं इसके आमूलचूल परिवर्तन की बात करता है।
लेकिन, काफी खेद के साथ, कहना पड़ रहा है कि आह्वान पिछले एक वर्ष से प्रकाशित नहीं हुआ है। मुझे इसका बेसब्री से इंतज़ार है। आपसे निवेदन है कि अगले अंक को जल्द से जल्द प्रकाशित करें। इस ख़त के साथ मैं आह्वान को समर्पित अपनी लिखी एक कविता भी भेज रहा हूँ।
बगावत
हमारी कलम जब जब उठती है ,
बगावत लिखती है
बगावत, इंसान का इंसान के शोषण के खिलाफ़,
अमीरों का गरीबों के दोहन के खिलाफ,
झुग्गियों में दहाड़ती
भुखमरी के खिलाफ़,
भीड़ में मँडराती
बेरोज़गारी के खिलाफ़
मजदूरों और किसानो में आग भड़काती है।
क्योंकि हमारी कलम जब-जब उठती है
बगावत लिखती है।
गुम हुई भीड़ में
आवाजें बरसाती है।
बुझ गए दिलों में
शोलें भड़काती है
सोयी हुई जनता की
आँखें खुजाती है।
खोये हुए लोगों में
उम्मीदें जगाती है।
कि जीने के लिए पहले मरना पड़ता है।
कि अपने हक़ के लिए पहले लड़ना पड़ता है।
कि आँखें बंद करने से , आँसू नहीं रुकते।
कि पत्थरों को पूजने से, पेट नहीं भरते।
भूख की आग से,
विद्रोह दहकता है।
क्योंकि हमारी कलम जब जब उठती है
बगावत लिखती है।
धन्यवाद सहित, केशव, पटना

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान,जनवरी-फरवरी 2018

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