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साम्प्रदायिक दंगों का निर्माण

साफ़ है कि यह दंगे कोई स्वत:स्फूर्त रूप से दो समुदायों के बीच नहीं हुए। इन्हें योजनाबद्ध ढंग से संघी फासीवादियों ने अंजाम दिया। अफवाहों और झूठों के जरिये नफ़रत फैलायी गयी और दोनों समुदायों को आपस में लड़ा दिया गया। पुलिस के एक आला अधिकारी ने बताया कि बरेली पारम्परिक तौर पर साम्प्रदायिक तनाव से मुक्त शहर है। लेकिन पिछले तीन–चार सालों के दौरान साम्प्रदायिक तनाव की घटनाएँ सुनने में आने लगी हैं। बरेली में सबसे अधिक बिकने वाले हिन्दी दैनिक अमर उजाला के एक भूतपूर्व सम्पादक ने बताया कि रोहिलखण्ड के पूरे क्षेत्र से ही हाल में साम्प्रदायिक तनाव की ख़बरें आने लगी हैं। वरुण गाँधी ने पिछले साल पड़ोस के पीलीभीत जिले में एक भड़काऊ भाषण दिया था। आरएसएस ने पूरे रोहिलखण्ड इलाके में जगह–जगह सरस्वती शिशु मन्दिर खोलने शुरू कर दिये हैं।

गुजरात : पूँजीवादी इंसाफ का रास्ता बेइन्तहा लम्बा, टेढ़ा–मेढ़ा और थकाऊ है

आज गुजरात में हुआ, कल कहीं और होगा। आज मोदी ने किया, कल कोई और करेगा। क्या आज़ादी के बाद के 63 वर्ष इस बात की गवाही नहीं देते ? अगर इस कुचक्र से मुक्ति पानी है तो पूरी पूँजीवादी व्यवस्था, सभ्यता और समाज के ही विकल्प के बारे में सोचना होगा। हर इंसाफ़पसन्द नौजवान का आज यही फ़र्ज़ बनता है।

भगवा ब्रिगेड का फ़रमान वरुण गांधी की जुबान

सफ़ेद झूठों की सूची को और लम्बा करने काम वरुण गांधी ने किया है और अपनी बात को सही साबत करने के लिए अपने पक्ष में कहा कि मैं एक ऐसे माहौल में बोल रहा हूँ जब हिन्दू दबा हुआ महसूस कर रहे थे और मुझे उनमें ‘हिम्मत’ भरनी है। कई हिन्दू लड़कियों का बलात्कार किया गया था। वहाँ क्या मैं एक नर्म भाषण देता? जिसमें यह बात अन्तर्निहित है कि हिन्दू लड़कियों का बलात्कार भला हिन्दू थोड़े ही करेंगे! ‘इण्डियन एक्सप्रेस’ ने इसमें अपनी रिपोर्ट छापी कि कई नहीं, तीन बलात्कारों की सूचना थी और सबमें जो अपराधी नामजद थे, वे हिन्दू ही थे। 2002 के गुजरात के अखबारों में ख़बर छपी कि हिन्दू औरतों के क्षत-विक्षत शरीर पाए गए हैं। ऐसी सारी खबरें गलत पाई गई, लेकिन किसी ने इसके लिए माफ़ी नहीं माँगी। इसी तकनीक का इस्तेमाल वरुण गाँधी ने किया जो संघ परिवार की बार-बार अपनाई गई तकनीक है।

माया कोडनानी और जयदीप पटेल की गिरफ्तारी और गुजरात नरसंहार पीड़ितों को इंसाफ़!

जिस तरह से जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड के बाद जनरल डायर को जुल्मी अंग्रेज सरकार ने सम्मानित करने का काम किया था उसी तरह से मोदी ने भी चुन–चुनकर गुजरात कत्लेआम में शामिल लोगों को सम्मानित करने का काम किया। लेकिन जनरल डायर जैसे हत्यारों का क्या अंजाम हुआ, वो तो जगज़ाहिर हैं। लेकिन इसके साथ कुछ ऐसे सवाल भी हैं जिसपर बात किये बिना इस मामले को समझा नहीं जा सकता।

संघी फासीवादियों का अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर नया हमला

संघ परिवार के गुण्डों की इस जघन्य हरक़त ने एक बार फ़िर साबित कर दिया है कि ये साम्प्रदायिक फ़ासीवादी हिटलर, मुसोलिनी, जनरल फ्रांकों और सालाज़ार जैसे तानाशाहों के असली मानस-पुत्र हैं। इनके गुरुओं ने इन्हें यही सिखाया है! इनसे और कोई उम्मीद रखना भी व्यर्थ है। यह जनवाद के उस बुनियादी सिद्धान्‍त से नफ़रत करते हैं कि हर किसी को अपनी बात कहने का हक़ है। आप उससे सहमत हों या असहमत, आपमें उसे बोलने देने का जनवादी विवेक और भावना होनी चाहिए। जब रूसो की किताबों को चर्च जलवा रहा था तो वाल्तेयर ने रूसो से कहा था कि “मैं तुम्हारी बात से असहमत हूँ। लेकिन तुम अपनी बात कह सको, इसके लिए मैं अपनी जान भी दे सकता हूँ।“ यह है वह जनवादी चेतना जिससे संघी ब्रिगेड के गुण्डे वाकि़फ़ नहीं हैं।

हिन्दुत्व की नयी प्रयोगशाला : उड़ीसा

सच्चाई तो यह है कि ग़रीबी के कारण ही अधिकांश धर्मांतरित लोग ईसाइयत की तरफ़ आकर्षित हुए हैं । लेकिन सबसे बड़ी समस्या हिन्दुत्व की लहर पर सवार होकर सत्ता पाने की इच्छुक साम्प्रदायिक फासीवादी भगवा ब्रिगेड है । सच्चाई यह है कि वोटों का खेल करीब आ रहा है और अपनी गोटियाँ लाल करने की ख़ातिर एक बार फिर कफनखसोट–मुर्दाखोर चुनावी पार्टियाँ ग़रीबों की लाशों पर रोटियाँ सेंकने से बाज़ नहीं आएँगी । यही उड़ीसा में हो रहा है । हमें इसकी सच्चाई को समझने की ज़रूरत है ।

बजरंग दल : हिन्दु आतंकवाद

चाहे दिसम्बर 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस का मामला हो या 2002 में गुजरात काण्ड हो या अभी उड़ीसा के कंधमाल की घटना हो सभी जगहों पर पूरे योजनाबद्ध तरीके से बजरंगदलियों ने अपनी नपुंसक मर्दानगी का नंगा नाच किया । यही नहीं इन मानवद्रोही घटनाओं को अंजाम देने में राज्य सरकारें पूरा सहयोग देती दिखायी दीं । 2002 में गुजरात काण्ड इसका जीता जागता नमूना है । इस घृणित योजना को अमली जामा पहनाने में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का मुख्य योगदान था । तहलका काण्ड के माध्यम से लोगों को यह भी पता चला कि इनका आनुषंगिक संगठन भाजपा भी इन नृशंस जनसंहारों में अपनी पूरी भूमिका निभा रहा है ।

संघ परिवार शाखाओं में बूढ़ो के बचे रह जाने पर चिन्तित!

अखबार में छपी एक ख़बर के मुताबिक, पिछले कुछ वर्षों में संघ परिवार की शाखाओं की संख्या 60 हज़ार से घटकर 20 हज़ार के करीब रह गयी है। पहले हर जगह संघ की दो शाखाएँ लगा करती थीं-तरुण और प्रौढ़। शाखाओं में युवा वर्ग की अरूचि के चलते दोनों वर्ग की शाखाओं को मिला दिया गया है! इसके बावजूद, एक तिहाई शाखाएँ बंद हो गयी हैं।

राजस्थान और मध्य प्रदेश:‘हिन्दुत्व’ की नयी प्रयोगशालाएँ

गुज़रात के बाद राजस्थान और मध्यप्रदेश के रूप में इन दो नयी प्रयोगशालाओं में का लगातार आगे बढ़ता प्रयोग सभी प्रगतिशील, जनवादी और धर्मनिरपेक्ष लोगों के सामने गम्भीर चुनौती के रूप में खड़ा है। साम्प्रदायिक फ़ासीवादी ताकतों के मंसूबों को अगर चकनाचूर करना है तो देशभर में अपनी गोलबन्दी तेज़ करनी होगी। बहादुर, इंसाफ़पसन्द और प्रगतिचेता युवाओं को अँधेरे की इन काली ताक़तों के खिलाफ़ आने वाले दिनों में सड़कों पर मोर्चा लेने के लिए कटिबद्ध हो जाना होगा।

गुजरात के हत्यारों के पर्दाफ़ाश के बाद नौजवान भारत सभा और दिशा छात्र संगठन का वर्ग एकजुटता अभियान

तहलका द्वारा गुजरात नरसंहार के हत्यारों के पर्दाफ़ाश के बाद नौजवान भारत सभा और दिशा छात्र संगठन के कार्यकर्ताओं ने एक वर्ग एकजुटता अभियान चलाया। इस अभियान के तहत एक पर्चा निकाला गया जिसे विशाल पैमाने पर मजदूर बस्तियों और निम्न मध्यमवर्गीय कालोनियों में बाँटा गया। इस पर्चे में साम्प्रदायिक फ़ासीवाद के ज़हर को नेस्तनाबूद करने के लिए आम मेहनतकश जनता का आह्वान किया गया था। इस पर्चे को दिल्ली के शिव विहार, शहीद भगतसिंह कालोनी, मुकुन्द विहार, मुस्तफ़ाबाद, अंकुर इन्क्लेव, करावलनगर, भजनपुरा, बादली, वज़ीरपुर, रोहिणी, आदि इलाकों में हज़ारों की संख्या में बाँटा गया।