बेर्टोल्ट ब्रेष्ट के जन्मदिवस पर नौजवान भारत सभा द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन
10 फरवरी को जर्मनी के प्रसिद्ध नाटककार तथा संस्कृतिकर्मी बर्टोल्ट ब्रेष्ट के 114वें जन्मदिवस पर ‘नौजवान भारत सभा’ के द्वारा एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के अन्तर्गत ब्रेष्ट व कई अन्य क्रान्तिकारी धारा के अन्य कवियों की कविताओं का पाठ किया गया तथा गौहर रज़ा की प्रसिद्ध डॅाक्युमेण्टरी फिल्म ‘जुल्मतों के दौर में’ का प्रदर्शन भी किया गया।
कार्यक्रम का आयोजन दिल्ली में करावलनगर के शहीद भगतसिंह पुस्तकालय में किया गया। करीब 45 से 50 लोग लगातार कार्यक्रम में उपस्थित रहे। अध्यापकों, नागरिकों, छात्रों के साथ-साथ कर्ई वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी भी उपस्थित रहे। सबसे पहले जाने-माने चित्रकार हरिपाल त्यागी द्वारा बनाई ब्रेष्ट के तैल चित्र पर नन्ही साक्षी ने माल्र्यापण किया। कार्यक्रम का संचालन नौभास के योगेश ने किया। योगेश ने बताया कि कोई भी ऐसा व्यक्ति जिसने पूरी मानवता की मुक्ति का सपना देखा तथा संघर्ष किया वह पूरी मानवता की ही साझी विरासत हैं। उन्होंने बताया कि ब्रेष्ट वास्तव में ही कारणों की तलाश करने वाले कवि तथा नाटककार थे। शुरुआत करते हुए अरविन्द ने ‘ब्रेष्ट का जीवन तथा आज का समय’ विषय पर बोलते हुए बताया कि ब्रेष्ट अपने पूरे जीवन में अंधेरे से जूझते रहे, निर्वासन पर निर्वासन झेलते रहे लेकिन उन्होंने लगातार पूँजीवाद की अमानवीयता तथा कलाद्रोही प्रवृत्ति व अन्तर्वस्तु को उघाड़कर रख दिया। ब्रेष्ट की रचनाओं में फासीवाद व इसके कारणों की न केवल शिनाख़्त की गई बल्कि उन्होंने सिखाया की फासीवाद से क्यों घृणा की जानी चाहिए। ब्रेष्ट स्वयं ही फासीवाद तथा युद्ध के कहर के भुक्तभोगी थे। आज के समय में जिस प्रतिक्रिया के दौर से पूँजीवाद गुज़र रहा है, वह केवल पतित संस्कृति ही पैदा कर सकता है। जिस मन्दीग्रस्त पूँजीवाद के कारण जर्मनी में फासीवाद का उदय हुआ था वही जमीन भारत तथा विश्वभर में आज फिर से मौजूद है। धर्म, जाति तथा संस्कृति के झण्डाबदार बगुला भगत बनकर शिकार करते घूम रहे हैं। जनता को इनके खिलाफ लगातार जागरूक करने की ज़रूरत है।
इसके बाद युवा संस्कृतिकर्मी आशुतोष ने ब्रेष्ट की कई प्रसिद्ध कविताओं -‘सचमुच में अंधेरे दौर में जी रहा हूँ’, ‘जनरल तुम्हारा टैंक एक मजबूत वाहन है’ व ‘आने वाली पीढि़यों के लिए’ का पाठ किया। इसके बाद वरिष्ठ कवि व साहित्यकार सुरेन्द्र श्लेष ने भी साम्प्रदायिक दंगों को उजागर करती हुई अपनी कविता ‘जब से कर्फ्यू लगा शहर में-दहशत आ बैठी घर में’ तथा ‘कत्ल होता रहा-राम सोता रहा-इस तरह धर्म का काम होता रहा’ का पाठ किया।
अलाव पत्रिका के सम्पादक तथा वरिष्ठ कवि व साहित्यकार रामकुमार कृषक ने भी अपनी बात रखी तथा कविता पढ़ी जिसके बोल थे-‘साल आता रहा-साल जाता रहा’। उन्होंने बताया कि अंधेरे के इस दौर में सर्वहारा के ऐसे रचनाकारों को याद करना बेहद जरूरी है। प्रसिद्ध चित्रकार हरिपाल त्यागी ने भी कार्यक्रम की सराहना की। युवा साथियों के द्वारा भी कविताएं पढ़ी गर्ई। सनी ने ‘बेचारे बर्टोल्ट ब्रेष्ट के बारे में’ कविता पढ़ी। नवीन ने भी गोरख पाण्डेय की प्रसिद्ध कविता ‘सोचो तो’ का पाठ किया। इसके बाद फिल्म ‘जुल्मतों के दौर में’ का प्रदर्शन किया गया। यह फिल्म अपने आप में ही फासीवाद के उभार की एक ज्वलन्त तस्वीर पेश करती है। नौभास के सदस्य ज्ञानेन्द्र ने फिल्म के बारे में बताया; उन्होंने फिल्म के रूप व अन्र्तवस्तु दोनों पर चर्चा की। ज्ञानेन्द्र ने मनबहकी लाल द्वारा ब्रेष्ट की एक रूपान्तरित कविता ‘हम राज करें, तुम राम भजो!’ का पाठ किया। इसके नौभास के सदस्यों द्वारा ब्रेष्ट के ही गीत ‘वो सबकुछ करने को तैयार -सभी अफसर उनके’ का सामूहिक गान किया गया। कार्यक्रम की समाप्ति आशुतोष के गीत ‘हम लड़ेंगे साथी-हम लड़ेंगे साथी’ से की गई। इलाके के नागरिकों, अध्यापकों ने कार्यक्रम काफी सराहा।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, जनवरी-फरवरी 2012
'आह्वान' की सदस्यता लें!
आर्थिक सहयोग भी करें!