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25 मार्च की घटना के विरोध में देश के अलग-अलग हिस्सों में आम आदमी पार्टी के विरोध में प्रदर्शन

25 मार्च की घटना के विरोध दिल्ली, पटना, मुम्बई और लखनऊ में विरोध प्रदर्शन हुए। 1 अप्रैल को दिल्ली के वज़ीरपुर औद्योगिक क्षेत्र के मज़दूरों ने ‘दिल्ली इस्पात उद्योग मज़दूर यूनियन’ के नेतृत्व में सैंकड़ों की संख्या में मज़दूरों ने रैली निकाली और इलाके के आप विधायक राजेश गुप्ता का घेराव किया। राजेश गुप्ता मज़दूरों की रैली के पहुँचने के पहले ही पलायन कर गये। इसके बाद मज़दूरों ने उनके कार्यालय के बाहर पुतला दहन किया और फिर वज़ीरपुर औद्योगिक क्षेत्र में आम आदमी पार्टी के पूर्ण बहिष्कार का एलान किया।

भारतीय लोकतन्त्र और उसमें चुनाव की भूमिका पर चिन्तन विचार मंच, लखनऊ द्वारा परिसंवाद का आयोजन

20 फ़रवरी को, ‘भारतीय लोकतन्त्र और उसमें चुनाव की भूमिका’ पर परिसंवाद का आयोजन, ‘चिन्तन विचार मंच’ द्वारा अनुराग पुस्तकालय में किया गया। परिसंवाद का विषय प्रवर्तन करते हुए ‘नई दिशा छात्र मंच’ के लालचन्द्र ने कहा कि लोकतन्त्र कोई वर्गविहीन अवधारणा नहीं है। इसी के अनुसार यह देखना ज़रूरी है कि भारतीय लोकतन्त्र की वर्गीय पक्षधरता क्या है? और यह कि भारतीय लोकतन्त्र कितना लोकतान्त्रिक है? अभी पाँच राज्यों में विधान सभा चुनाव हो रहे हैं। 2014 में लोकसभा के चुनाव होने हैं। इसके पहले के भी 1952 से अभी तक जो चुनाव हो चुके हैं उन सभी चुनावों को हम देखें तो यह साफ हो जाता है कि भारतीय जनतन्त्र की चुनावी प्रणाली व्यापक जनता की जीवन स्थितियों में बुनियादी बदलाव लाने में सक्षम नहीं हुई है। ऐसे में क्या वर्तमान चुनाव जनता की जि़न्दगी में बदलाव का कोई समाधान दे सकते हैं, जबकि चुनाव आयोग चुनाव प्रणाली में कई सुधार कर रहा है? मसलन ‘राइट टू रिजेक्ट’ का प्रावधान, प्रत्याशियों पर कई तरह के अंकुश आदि। एक बात पर अभी बहस है जनता को चुने गये प्रत्याशियों को वापस बुलाने की शक्ति देने की जिस पर सभी राजनीतिक दल अपना पुरज़ोर विरोध दर्ज करा रहे हैं।

‘चिन्तन विचार मंच’ द्वारा मौजूदा पूँजीवाद-विरोधी आन्दोलनों की सीमाओं पर व्याख्यान का आयोजन

करीब दो घण्टे के अपने वक्तव्य में अभिनव ने कहा कि आज पूरा साम्राज्यवादी.पूँजीवादी विश्व एक भयंकर मन्दी की चपेट में है। इस मन्दी की कीमत जनता को अपने रोज़गार, स्वास्थ्य और शिक्षा की सुविधाएँ आदि खोकर चुकानी पड़ रही है। विकसित पूँजीवादी देशों में भी हालात ऐसे हो गये हैं कि जनता सड़कों पर है। यह एक बार फिर मार्क्स की पूँजीवाद के संकट के सिद्धान्त को सही साबित कर रहा है। अमेरिका से लेकर यूनान, इटली और स्पेन तक और ‘तीसरी दुनिया’ में मिस्र व अन्य अरब देशों में जनता साम्राज्यवाद और पूँजीवाद के खि़लाफ़ स्वतःस्फूर्त रूप से सड़कों पर उतर रही है। मौजूदा घटनाक्रम के एक द्वन्द्वात्मक विश्लेषण की ज़रूरत आज क्रान्तिकारी आन्दोलन के सामने है। हमें समझना होगा कि इन स्वतःस्फूर्त जनउभारों से क्या नतीजे निकालें और क्या नहीं।

लखनऊ में छात्रों-युवाओं ने चलाया क्रान्तिकारी जनजागृति अभियान

काकोरी काण्ड के चार शहीदों अशफ़ाक उल्ला खाँ, रामप्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्र लाहिड़ी और रोशन सिंह के 84वें शहादत दिवस के मौके पर ‘नयी दिशा छात्र मंच’ और ‘नौजवान भारत सभा’ के बैनर तले लखनऊ शहर के खदरा इलाके में छात्रों-युवाओं ने 17-19 दिसम्बर के बीच ‘क्रान्तिकारी जनजागृति अभियान’ चलाया। इस अभियान के अन्तर्गत 17 दिसम्बर को खदरा के बाबा के पुरवा व मशालची टोला में नुक्कड़ सभाओं के माध्यम से सघन पर्चा वितरण किया गया। 18 दिसम्बर को सुबह 10 बजे से सात सदस्यीय टीम द्वारा खदरा इलाके के रामलीला मैदान, बड़ी पकड़िया और मदेयगंज के इलाके में साईकिल अभियान चलाते हुए सघन पर्चा वितरण और नुक्कड़ सभाओं का आयोजन किया गया।

लखनऊ विश्वविद्यालय में छात्रों ने शुरू किया छात्र माँगपत्रक आन्दोलन

इस निरंकुशता और प्रशासकीय तानाशाही के खि़लाफ़ ‘नयी दिशा छात्र मंच’ के रूप में विश्वविद्यालय के कुछ छात्र एक नया विकल्प खड़ा करने का प्रयास कर रहे हैं। दिशा छात्र संगठन ने 2009 में एक बड़ा आन्दोलन कर लखनऊ विश्वविद्यालय प्रशासन को छात्रवास में मेस खुलवाने और छात्रों को साईकिल रखने की इजाज़त देने पर मजबूर कर दिया था। इसके बाद लखनऊ विश्वविद्यालय ने भयभीत होकर दिशा छात्र संगठन पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। संघर्ष की उसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए ‘नयी दिशा छात्र मंच’ ने छात्रों का एक माँगपत्रक तैयार किया है और इसे छात्रों के बीच ले जाया जा रहा है। इस माँगपत्रक की प्रमुख माँगें हैं. छात्र संघ को बहाल किया जाय;  विश्वविद्यालय में लगातार जारी बेतहाशा फीस वृद्धि को तत्काल रोका जाय; कैम्पस में छात्रों को परिचर्चा, विचार-विमर्श, इत्यादि कार्यक्रम करने हेतु एक कमरा उपलब्ध कराया जाय एवं कैम्पस में एक ‘वॉल ऑफ डेमोक्रेसी’ का निर्माण किया जाय, जहाँ छात्र अपनी स्वरचित रचनाएँ, पोस्टर, सूचना आदि लगा सकें;  विश्वविद्यालय के सबसे बड़े पुस्तकालय टैगोर पुस्तकालय की हालत दयनीय है, उसमें तत्काल सुधार किया जाय; छात्रवासों में ख़ाली पड़े कमरों को छात्रों को आबण्टित किया जाय;  विश्वविद्यालय के भीतर पुलिस बलों की उपस्थिति को तत्काल समाप्त किया जाय;  शोध छात्रों को फेलोशिप प्रदान की जाय;  विश्वविद्यालय प्रशासन वित्तीय पारदर्शिता का सिद्धान्त लागू करते हुए सभी छात्रों के समक्ष अपने बजट को सार्वजनिक करने की व्यवस्था करे।

लखनऊ के ख़दरा इलाके में नौजवान भारत सभा के नेतृत्व में जनता का शुल्क बन्दी अभियान

पिछले अंकों में हमने लखनऊ के ख़दरा इलाके में साफ़–सफ़ाई के मुद्दे को लेकर जारी आन्दोलन के बारे में लिखा था। नगर निगम ने कुछ समय से सफ़ाई का ठेका एक निजी कम्पनी ज्योति एनवायरोटेक लि. को दे दिया है। इसके लिए यह निजी ठेका कम्पनी ख़दरा के निवासियों से कूड़ा उठाने के नाम पर अतिरिक्त शुल्क की वसूली कर रही है। ज्ञात हो कि नगर निगम ने लम्बे समय से इस इलाके में साफ़.सफ़ाई के लिए कोई उपयुक्त इंतजाम नहीं किये हैं। न तो कूड़े के डिब्बे रखे गये हैं, और न ही निगम के कर्मचारी खाली प्लॉटों में पड़े कूड़े की सफ़ाई के लिए आते हैं। पिछले वर्ष गन्दगी और पानी जमा होने के कारण ही इस इलाके में डेंगू के कारण 63 मौतें हो गयी थीं। इसके बाद से ही नौजवान भारत सभा के नेतृतव में इलाके के आम नागरिक नगर निगम से साफ़–सफ़ाई और साफ़ पीने के पानी के अधिकार की लड़ाई लड़ रहे हैं।

लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र फिर से आन्दोलन की राह पर

पिछले लम्बे समय से लखनऊ विश्वविद्यालय में जारी फीस वृद्धि और शैक्षणिक व प्रशासनिक अनियमिततओं के खि़लाफ़ आम छात्रों में भारी गुस्सा पनप रहा है। इसी बीच लखनऊ विश्वविद्यालय ने इस सत्र में कोई भी पेपर दुबारा देने की फीस को बढ़ाकर 500 रुपये से 1200 रुपये कर दिया। विभिन्न छात्र संगठनों ने इसके खि़लाफ़ आवाज़ उठायी और प्रदर्शन करने शुरू किये। इसी क्रम में 8 नवम्बर को एक प्रदर्शन में आइसा के सुधांशु व एसएफआई के प्रवीण की प्रॉक्टर के इशारे पर पुलिस वालों ने पिटाई कर दी। इसके विरोध में सभी छात्र संगठन एक मंच पर आये और उन्होंने ‘फोरम फॉर डिफेंस ऑफ स्टूडेंट्स राइट्स’ के बैनर तले 12 नवम्बर 2011 को विश्वविद्यालय कैम्पस के भीतर आम छात्रों को जुटाकर एक विरोध जुलूस निकाला। इसके अन्तर्गत इस फोरम ने प्रमुखतः चार माँगें रखीं। पहला, दोषी चौकी इंचार्ज को निलम्बित किया जाये; दूसरा, प्रॉक्टर पूरे मामले की जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा दें; तीसरा, विश्वविद्यालय के भीतर पुलिस की मौजूदगी को समाप्त किया जाये; और लगातार जारी फीस वृद्धि पर अंकुश लगाया जाये। इस प्रदर्शन में नई दिशा छात्र मंच, आइसा, एसएफआई, एआईडीएसओ, समेत कई छात्र संगठनों ने हिस्सा लिया।

शहीदेआज़म भगतसिंह की 104वीं जयन्ती पर अनुराग पुस्तकालय में कार्यक्रम

लखनऊ में स्थित अनुराग पुस्तकालय में 28 सितम्बर 2011 को शहीदेआज़म भगतसिंह के जन्मदिन पर कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। भगतसिंह के चित्र पर ‘अनुराग ट्रस्ट’ की अध्यक्ष एवं वयोवृद्ध सामाजिक कार्यकर्ता सुश्री कमला पाण्डेय द्वारा माल्यार्पण किया गया, इसके साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई। अनुराग ट्रस्ट की अध्यक्ष ने कहा कि आज जब बच्चे-बच्चे की ज़ुबान पर फिल्मी नायकों की जन्म कुण्डली तक रटी रहती है, ऐसे में भगतसिंह की जयन्ती मनाने के लिए बीसों नौजवान इक्ट्ठा हुए हैं यह मेरे लिए खुशी की बात है। आज युवा वर्ग से ही आशा है कि वह भगतसिंह के अधूरे सपनों को पूरा करने के लिए आगे आये और जिम्मेदारी लें। उन्होंने आगे कहा कि आज़ादी से पहले तमाम छात्र-युवा स्वतन्त्रता संघर्ष में बढ़-चढ़कर भाग लेते थे और उनमें से कई देश के बेहतर कल के लिए अपना पूरा जीवन लगाते थे। उस दौर की पत्र-पत्रिकाएँ लोगों को अन्याय, लूट, दमन के ख़ि‍लाफ़ जागृत एवं संगठित करने के साथ ही उन्हें हर तरह की रुढ़िवादिता, पाखण्ड के ख़ि‍लाफ़ भी जागरूक करती थी। आज के दौर में प्रिण्ट मीडिया व इलेक्ट्रानिक मीडिया बाज़ार की शक्तियों के क़ब्ज़े में हैं और वे जनता के मस्तिष्क को नियन्त्रित-निर्देशित करने का भी काम कर रही हैं और जनता को अपनी क्रान्तिकारी विरासत से दूर ले जा रही हैं। पूरा संचार तन्त्र पूँजीवादी, उपभोक्तावादी संस्कृति का प्रचार करके युवाओं को आत्मकेन्द्रित बना रही हैं। ऐसे में क्रान्तिकारी भावना वाले युवाओं की जिम्मेदारी काफ़ी बढ़ जाती है।

‘नौजवान भारत सभा’ के बैनर तले खदरा इलाक़े के नागरिकों द्वारा धरना-प्रदर्शन

‘नौजवान भारत सभा’ ने पिछले साल ही इलाके के लोगों के साथ मिलकर यह संकल्प लिया था कि इस बरसात के मौसम में सरकारी उपेक्षा के चलते बेगुनाह बच्चों और नागरिको को मौत का शिकार नहीं होने देंगे। इसी के मद्देनज़र पिछले एक साल से चल रही लड़ाई को पिछले महीने अपने निर्णायक दौर में पहुँचाने के लिए गतिविधियाँ तेज़ कर दी गयीं। जून के महीने के पहले हफ्ते से ही पूरे खदरा (विशेषकर वे इलाके जहाँ पिछले वर्ष ज़्यादा लोग बीमार पड़े थे) में गली मीटिंगों का जाल बिछा दिया गया। हर रात 8.30 बजे दो से तीन गलियों के लोगो का जुटान किया जाता था और फिर समस्या के सन्दर्भ में पूरी बात रखते हुए, लोगों को एकजुट होकर प्रशासन के समक्ष अपनी माँगें रखने के लिए तैयार किया जाता था। बाबा का पुरवा, मशालची टोला और रामलीला मैदान के निवासियों की कुल आठ गली मीटिंगें आयोजित की गयीं। इन मीटिंगों में साझा तौर पर यह तय किया गया कि 20 जून, 2011 को नगर निगम कार्यालय पर धरना-प्रदर्शन किया जायेगा और नगर आयुक्त महोदय को एक छः सदस्यीय प्रतिनिधिमण्डल द्वारा अपना माँगपत्रक सौंपा जायेगा।

‘पंसारी की दुकान’ से ‘शॉपिंग मॉल’ बनने की ओर अग्रसर यह विश्वविद्यालय

वैसे यह फ़ीस वृद्धि कोई अप्रत्याशित घटना नहीं है। पिछले दो दशकों से जारी और भविष्य के लिए प्रस्तावित शिक्षा नीति का मूलमन्‍त्र ही है कि सरकार को उच्च शिक्षा की जि़म्मेदारी से पूरी तरह मुक्त करते हुए उसे स्ववित्तपोषित बनाया जाये। ताज़ा आँकड़ों के अनुसार आज केन्द्रीय सरकार सकल घरेलू अत्पाद (जीडीपी) का 1 फ़ीसदी से कम उच्च शिक्षा पर ख़र्च करता है और यह भविष्य में बढ़ेगा, इसकी उम्मीद कम ही है। मानव संसाधन मन्‍त्रालय के हालिया बयानों में यह बात प्रमुखता से आयी है, हर तीन साल बाद विश्वविद्यालय की फ़ीसों में बढ़ोत्तरी की जाये ताकि राज्य इस जि़म्मेदारी से मुक्त हो सकते। बिरला-अम्बानी-रिपोई से लेकर राष्ट्रीय ज्ञान आयोग और यशपाल समिति की सिफ़ारिशें भी इसी आशय की हैं।