शहीदेआज़म भगतसिंह की 104वीं जयन्ती पर अनुराग पुस्तकालय में कार्यक्रम
लखनऊ में स्थित अनुराग पुस्तकालय में 28 सितम्बर 2011 को शहीदेआज़म भगतसिंह के जन्मदिन पर कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। भगतसिंह के चित्र पर ‘अनुराग ट्रस्ट’ की अध्यक्ष एवं वयोवृद्ध सामाजिक कार्यकर्ता सुश्री कमला पाण्डेय द्वारा माल्यार्पण किया गया, इसके साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई। अनुराग ट्रस्ट की अध्यक्ष ने कहा कि आज जब बच्चे-बच्चे की ज़ुबान पर फिल्मी नायकों की जन्म कुण्डली तक रटी रहती है, ऐसे में भगतसिंह की जयन्ती मनाने के लिए बीसों नौजवान इक्ट्ठा हुए हैं यह मेरे लिए खुशी की बात है। आज युवा वर्ग से ही आशा है कि वह भगतसिंह के अधूरे सपनों को पूरा करने के लिए आगे आये और जिम्मेदारी लें। उन्होंने आगे कहा कि आज़ादी से पहले तमाम छात्र-युवा स्वतन्त्रता संघर्ष में बढ़-चढ़कर भाग लेते थे और उनमें से कई देश के बेहतर कल के लिए अपना पूरा जीवन लगाते थे। उस दौर की पत्र-पत्रिकाएँ लोगों को अन्याय, लूट, दमन के ख़िलाफ़ जागृत एवं संगठित करने के साथ ही उन्हें हर तरह की रुढ़िवादिता, पाखण्ड के ख़िलाफ़ भी जागरूक करती थी। आज के दौर में प्रिण्ट मीडिया व इलेक्ट्रानिक मीडिया बाज़ार की शक्तियों के क़ब्ज़े में हैं और वे जनता के मस्तिष्क को नियन्त्रित-निर्देशित करने का भी काम कर रही हैं और जनता को अपनी क्रान्तिकारी विरासत से दूर ले जा रही हैं। पूरा संचार तन्त्र पूँजीवादी, उपभोक्तावादी संस्कृति का प्रचार करके युवाओं को आत्मकेन्द्रित बना रही हैं। ऐसे में क्रान्तिकारी भावना वाले युवाओं की जिम्मेदारी काफ़ी बढ़ जाती है। कार्यक्रम में उसके बाद लालचन्द्र ने अपनी बात में भगतसिंह की संक्षिप्त जीवन चर्चा की। उन्होंने कहा कि किसी भी व्यक्ति की जीवन दिशा एवं विचार पैदाइशी नहीं होते। वह उन परिस्थितियों एवं परिवेश में निर्मित होते हैं जिसमें व्यक्ति जीवन जीता है। आगे उन्होंने कहा कि देश के पैमाने पर क्रूर ब्रिटिश हुकूमत की चूलें हिलाने के लिए हर तबके के छात्र व नौजवान संघर्ष में खड़े हो चुके थे। उसमें भगतसिंह का परिवार भी शामिल था। गाँधी के असहयोग आन्दोलन में भगतसिंह भी शामिल हुए थे, परन्तु आन्दोलन वापस लिये जाने से वह बहुत निराश हुए। इसके बाद उन्होंने बदलाव के लिए क्रान्तिकारी रास्ता अपनाया। भगतसिंह पंजाब से कानपुर आकर गणेशशंकर विद्यार्थी के साथ ‘प्रताप’ अख़बार में काम करने लगे। यहीं पर वह एच-आर-ए- से जुड़े और बाद में भगतसिंह ने उसका नाम एच-एस-आर-ए- यानी हिन्दुस्तान सोश्लिस्ट रिपब्लिकन एसोशिएसन रखा, जिसमें समाजवाद का लक्ष्य जुड़ गया था। उसके बाद पंजाब में उन्होंने ‘नौजवान भारत सभा’ नामक जन संगठन भी बनाया। भगतसिंह ने ब्रिटिश हुकूमत से लड़ते हुए अपने प्राणों की आहुति दी परन्तु उन्होंने अपने उद्देश्यों एवं आदर्शों से कभी समझौता नहीं किया। आज उनसे हमें बहुत कुछ सीखना है। इसके उपरान्त विश्वविद्यालय के छात्र व अनुराग पुस्तकालय के सदस्य अभिषेक ने ‘नई सदी में भगतसिंह की स्मृति’ कविता का पाठ किया। विश्वविद्यालय के ही बी-ए- द्वितीय वर्ष के छात्र सूरज ने भगतसिंह और उनके साथियों द्वारा अपनी फाँसी के तीन दिन पूर्व पंजाब के गवर्नर को लिखे पत्र ‘युद्ध अभी जारी है—-’ का पाठ किया। इसके बाद पुस्तकालय के सदस्य शिवार्थ ने भगतसिंह की विचारधारा और आज के समय पर बात रखी। उन्होंने कहा कि भगतसिंह को एक बहादुर क्रान्तिकारी के तौर पर पेश किया जाता है परन्तु वे एक प्रखर विचारक व लेखक भी थे इसे बहुत कम लोग जानते हैं। उनके इस गुण का पता उनके द्वारा लिखे गये लेखों, पत्रों तथा उनकी लिखी जेल नोटबुक से चलता है। वे विभिन्न पुस्तकालयों से देशी-विदेशी क्रान्तिकारी उपन्यास, राजनीतिक विचारकों की पुस्तकें, दर्शन, इतिहास का गहराई से अध्ययन करते थे। उनका कहना था कि हर क्रान्तिकारी को स्वतन्त्र चिन्तन एवं मनन को अपना आवश्यक काम बना लेना चाहिए। भारतीय क्रान्ति का यह पक्ष बहुत कमजोर रहा है।
जेल में अपने अन्तिम समय तक वे भारतीय क्रान्ति को लेकर गहराई से सोचते रहे और उसे अपने महत्वपूर्ण लेख ‘क्रान्तिकारी कार्यक्रम का मसविदा’ में लिखा भी। इसके साथ ही भगतसिंह ने सामाजिक समस्याओं जैसे छुआ-छूत, साम्प्रदायिक दंगे, धर्म और स्वतन्त्रता संघर्ष पर महत्वपूर्ण लेख लिखे। शिवार्थ ने अपनी बात रखते हुए आगे कहा कि भगतसिंह ने विद्यार्थियों के नाम लिखे अपने सन्देश में कहा है कि विद्यार्थियों को पढ़ाई के साथ ही साथ राजनीति का भी ज्ञान हासिल करना चाहिए। जिससे समय आने पर वे उसमें कूद पड़े। भगतसिंह का यहाँ क्रान्तिकारी राजनीति से मतलब है न कि बुर्जुआ राजनीति से। भगतसिंह ने कहा था कि हम लार्ड इरविन की जगह पर पुरुषोत्तम दास टण्डन या तेज प्रकाश सप्रू को नहीं लाना चाहते, बल्कि मेहनतकशों का शासन चाहते हैं जिसमें सत्ता की सम्पूर्ण बागडोर मेहनतकशों के हाथों में हो। आज हमें भगतसिंह के उस अधूरे सपने को पूरा करने का संकल्प लेना होगा। एक बात और, आज देश में बहुतेरे ऐसे संगठन हैं जो भगतसिंह को अपना आदर्श मानते हैं परन्तु वे भगतसिंह के विचार सूत्र को पकड़ने में असफल हैं और वे वैचारिक कमजोरी के कारण लकीर की फकीरी कर रहे हैं। आज का समय भगतसिंह के समय से काफ़ी आगे आ चुका है। आज की ठोस परिस्थितियों का वैज्ञानिक विश्लेषण करते हुए क्रान्ति का मार्ग तय करना है। भगतसिंह की स्मृतियों से हमें हमेशा ऊर्जा एवं प्रेरणा मिलती रहेगी। इसके बाद कार्यक्रम का औपचारिक समापन किया गया। अनौपचारिक बातचीत का दौर काफ़ी देर तक चला, जिसमें कई मुद्दों पर बातचीत हुई।
कार्यक्रम में लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राएँ व लखनऊ के अन्य हिस्सों से आये लोग शामिल हुए। जिसमें प्रमुख रूप से अभिषेक, सूरज, विनय भाष्कर, विजय, विजय कुमार, सृजन, अजय, वन्दना, शिवा, पंकज, आशुतोष, आलोक थे। कार्यक्रम का संचालन लालचन्द्र ने किया।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, सितम्बर-अक्टूबर 2011
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