पूँजीवाद का नया तोहफा : खाद्यान्न संकट
खाद्यान्न संकट एक व्यवस्था–जनित संकट है । मुनाफे पर टिकी पूँजीवादी व्यवस्था इस दुनिया के लोगों को और कुछ दे भी नहीं सकती । इसका इलाज ‘‘कल्याणकारी’’ राज्य नहीं है । उसका युग बीत गया । इतिहास पीछे नहीं जाता । आज विश्व पूँजीवाद की मजबूरी है कि वह एक–एक करके सारे कल्याणकारी आवरण उतारकर फेंक दे । इन आवरणों का खर्च उठाने की औकात अब उसके पास नहीं रही । मौजूदा पूँजीवादी व्यवस्था का कोई इलाज नहीं है । हमें इसका विकल्प प्रस्तुत करना ही होगा । नहीं तो इसी तरह हज़ारों निर्दोष स्त्री–पुरुष भुखमरी और कुपोषण की भेंट चढ़ते रहेंगे ।