आज के भारत में अलगाव का सवाल
छात्र-युवा वर्ग ही इस अलगाव का शिकार नहीं है और न ही यह केवल महानगरीय जीवन का यथार्थ है। यह ग्रामीण जीवन को भी अपनी चपेट में ले चुका है। औद्योगिक मजदूर वर्ग के साथ-साथ ग्रामीण मेहनतकश आबादी तक आत्मघाती अलगाव पसर चुका है। गांवों का रससिक्त रागात्मक जीवन व किसानी सामुदायिकता, की तमाम संस्थाएं तेजी से अतीत की चीजें बनती जा रही हैं।