बेर्टोल्ट ब्रेष्ट – दुख के कारणों की तलाश का कलाकार
एक अँधेरे समय की चुनौतियों और दायित्वों के रूबरू खड़े होकर हम बेर्टोल्ट ब्रेष्ट को याद कर रहे हैं। ब्रेष्ट वह कलाकार थे जो जीवनपर्यन्त अँधेरे की ताक़तों से जूझते रहे और अपनी रचनाओं को हथियार की शक्ल देकर उस अँधेरे वक़्त से लोहा लेते रहे। बेर्टोल्ट ब्रेष्ट का जन्म 10 फ़रवरी, 1898 को जर्मनी के बावेरिया प्रान्त के ऑग्सबुर्ग क़स्बे में हुआ था। पढ़ाई के दौरान ही इनका रुझान कविता और नाट्यलेखन की तरफ़ हो गया था। ब्रेष्ट ने जीवनभर रंगमंच के लिए काम किया। ‘जूतों से ज़्यादा मुल्क बदलते हुए’ इन्होंने जनता को बताया कि फ़ासीवाद व किसी भी प्रकार की कट्टरता से नफ़रत क्यों की जानी चाहिए। जब यूरोप और अमेरिका के कवियों ने कविता को केवल विलास का साधन मानते हुए इसे सुविधाभोगी व सम्पन्न वर्ग की थातीभर बना दिया था, तब ब्रेष्ट मुस्तैदी के साथ अपनी रचनाओं के द्वारा जनता के पक्षधर की हैसियत से लड़ते रहे। 14 अगस्त, 1956 के दिन दिल का दौरा पड़ने के कारण बीसवीं सदी के इस महान नाटककार का देहान्त हो गया। ब्रेष्ट ने अपने पीछे द थ्री पैनी ऑपेरा, मदर करेज एण्ड हर चिल्डरन, द गुड परसन ऑफ़ शेज़वान, लाइफ़ ऑफ़ गलीलीयो, द कॉकेशियन चॉक सर्किल, द डिसीजन, इन द जंगल ऑफ़ सिटीज़, मिस्टर पुन्तिला एण्ड हिज़ मैन माती, फ़ियर एण्ड मिज़री ऑफ़ थर्ड राइख आदि जैसे महान नाटकों की व कविताओं की यानी कालजयी साहित्य की एक शानदार विरासत रख छोड़ी है। इनकी रचनाएँ न केवल जर्मन बल्कि पूरे विश्व साहित्य की अमूल्य धरोहर के रूप में सहेजे जाने के योग्य हैं।
बेर्टोल्ट ब्रेष्ट की कला की मुख्य प्रवृत्ति पूँजीवादी नज़रिये पर तीखा प्रहार करना है। अपने नाटकों और कविताओं में इन्होंने शिक्षात्मक पहलू के साथ ही कलात्मकता के बेहतरीन मानदण्डों को बरकरार रखा। अपने नाटकों में ब्रेष्ट ने दुखों का केवल बख़ान करके ही नहीं छोड़ दिया, बल्कि उनके कारणों की गहराई तक शिनाख़्त भी की। ब्रेष्ट ने अपने नाटकों में रूप और अन्तर्वस्तु दोनों ही दृष्टियों से एक अलग सौन्दर्यशास्त्र का अनुपालन किया, जिसे इन्होंने ‘एपिक थिएटर’ का नाम दिया। जीवन के अन्तिम वर्षों में ब्रेष्ट अपने नाटकों की विचारधारा को ‘द्वन्द्वात्मक नाटक’ (डॉयलेक्टिकल थियेटर) की संज्ञा देने लगे थे। द्वन्द्वात्मक थियेटर वास्तव में एपिक थियेटर के ब्रेष्ट के सिद्धान्त का ही तार्किक विकास था। मार्क्सवाद के प्रति ब्रेष्ट की प्रतिबद्धता ने उन्हें लिखने की गहरी आकुलता दी और साथ ही एक ऐसा सशक्त विश्व दृष्टिकोण भी दिया, जिसके ज़रिये वे जो कुछ घट रहा था उसका वैज्ञानिक सर्वेक्षण-विश्लेषण साफ़-साफ़ करने में कामयाब रहे। ब्रेष्ट की कला के प्रति सत्यनिष्ठा, ईमानदारी, साफ़गोई और उनमें मानवीय संवेदना की ऊँची छलाँग उन्हें एक कवि और नाटककार के रूप में स्थापित कर गयी। नाटक के लिए एक अभीष्ट मार्क्सवादी सौन्दर्यशास्त्र रचने के प्रयास में ब्रेष्ट कहाँ तक कामयाब रहे, इस प्रश्न पर विद्वानों में यद्यपि आज भी मतभेद क़ायम है, किन्तु एक समर्थ नाटककार और एक सशक्त कवि के रूप में उनकी प्रतिष्ठा विश्व रंगमंच एवं कविता के फलक पर आज भी सन्देह से परे है।
प्रस्तुत हैं ब्रेष्ट की कुछ छोटी कविताएँ और उनके नाटकों से उद्धरण:-
किस चीज़ का इन्तज़ार है
किस चीज़ का इन्तज़ार है,
और कब तक?
दुनिया को तुम्हारी
ज़रूरत है।
आदर्श वाक्य
यदि वहाँ कोई हवा बह रही हो
मैं एक पाल फ़हरा सकता हूँ
यदि वहाँ कोई पाल नहीं हो
मैं लट्ठों और कपडों से बनाऊँगा।
आने वाले महान समय की रंगीन कहावत
जंगल पनपेंगे फिर भी
किसान पैदा करेंगे फिर भी
मौजूद रहेंगे शहर फिर भी
आदमी लेंगे साँस फिर भी।
एक चीनी शेर की नक्कासी को देखकर
तुम्हारे पंजे देखकर
डरते हैं बुरे आदमी
तुम्हारा सौष्ठव देखकर
ख़ुश होते हैं अच्छे आदमी
यही मैं चाहूँगा सुनना
अपनी कविता के बारे में।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, जनवरी-अप्रैल 2014
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