उद्धरण
“जिसे ‘क़ानून की रूह’ और ‘परंपरा’ कहते हैं वह सभी जड़़मतियों के भेजे में घड़ी की तरह का एक ऐसा सादा यन्त्र पैदा कर देती है जिसकी कमानी के हिलने-डुलने से ही जड़तापूर्ण विचारों के पहिये घूमने लगते हैं। हर एक जड़मति का नारा होता है- जैसा जो अब तक रहा है वैसा ही हमेशा बना रहेगा। मरी मछली की ही तरह जड़मति भी दिमाग की तरफ़ से नीचे की ओर सड़ना शुरू करते हैं।”