एस.ए.* सैनिक का गीत
बेर्टोल्ट ब्रेष्ट
अनुवादः सत्यम
भूख से बेहाल मैं सो गया
लिये पेट में दर्द।
कि तभी सुनाई पड़ी आवाज़ें
उठ, जर्मनी जाग!
फिर दिखी लोगों की भीड़ मार्च करते हुएः
थर्ड राइख़** की ओर, उन्हें कहते सुना मैंने।
मैंने सोचा मेरे पास जीने को कुछ है नहीं
तो मैं भी क्यों न चल दूँ इनके साथ।
और मार्च करते हुए मेरे साथ था शामिल
जो था उनमें सबसे मोटा
और जब मैं चिल्लाया ‘रोटी दो काम दो’
तो मोटा भी चिल्लाया।
टुकड़ी के नेता के पैरों पर थे बूट
जबकि मेरे पैर थे गीले
मगर हम दोनों मार्च कर रहे थे
कदम मिलाकर जोशीले।
मैंने सोचा बायाँ रास्ता ले जायेगा आगे
उसने कहा मैं था ग़लत
मैंने माना उसका आदेश
और आँखें मूँदे चलता रहा पीछे।
और जो थे भूख से कमज़ोर
पीले-ज़र्द चेहरे लिये चलते रहे
भरे पेटवालों से क़दम मिलाकर
थर्ड राइख़ की ओर।
अब मैं जानता हूँ वहाँ खड़ा है मेरा भाई
भूख ही है जो हमें जोड़ती है
जबकि मैं मार्च करता हूँ उनके साथ
जो दुश्मन हैं मेरे और मेरे भाई के भी।
और अब मर रहा है मेरा भाई
मेरे ही हाथों ने मारा उसे
गोकि जानता हूँ मैं कि गर कुचला गया है वो
तो नहीं बचूँगा मैं भी।
*एस.ए. – जर्मनी में नाज़ी पार्टी द्वारा खड़ी किये गये फासिस्ट बल का संक्षिप्त नाम। उग्र फासिस्ट प्रचार के ज़रिये इसमें काफ़ी संख्या में बेरोज़गार नौजवानों और मज़दूरों को भर्ती किया गया था। इसका मुख्य काम था यहूदियों और विरोधी पार्टियों, ख़ासकर कम्युनिस्टों पर हमले करना और आतंक फैलाना।
**थर्ड राइख़ – 1933 से 1945 के बीच नाज़ी पार्टी शासित जर्मनी को ही थर्ड राइख़ कहा जाता था।
Song of the S.A. Man
Bertolt Brecht
My hunger made me fall asleep
With a belly ache.
Then I heard voices crying
Hey, Germany awake!
Then I saw crowds of men marching:
To the Third Reich, I heard them say.
I thought as I’d nothing to live for
I might as well march their way.
And as I marched, there marched beside me
The fattest of that crew
And when I shouted ‘We want bread and work’
The fat man shouted too.
The chief of staff wore boots
My feet meanwhile were wet
But both of us were marching
Wholeheartedly in step.
I thought that the left road led forward
He told me that I was wrong.
I went the way that he ordered
And blindly tagged along.
And those who were weak from hunger
Kept marching, pale and taut
Together with the well-fed
To some Third Reich of a sort.
They told me which enemy to shoot at
So I took their gun and aimed
And, when I had shot, saw my brother
Was the enemy they had named.
Now I know: over there stands my brother
It’s hunger that makes us one
While I march with the enemy
My brother’s and my own.
So now my brother is dying
By my own hand he fell
Yet I know that if he’s defeated
I shall be lost as well.
* S.A. Man: member of the brown-shirted Nazi militia
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सचमुच बहुत उम्दा कविता. ब्रेख्त हमारे समय के बहुत अजीब संकटों को बहुत बढ़िया पकड़ते हैं. द्वितीय महायुद्ध में एलाईज़ की रणनीति थी, जर्मनी को भूखा मारना–the starvation of Germany—और उसका नतीजा दिखा concentration camps के भीतर। वह नस्लवाद की भी चरम सीमा थी. SA यानि स्तुरम्टाइलुन्ग नाज़ी पुलिस के उस रूप की शुरुआत थी, जिसके निर्देशन में हज़ारों निहत्थे सिविलियन्स, यहुदिओं की जान ली गयी. सवाल है कि क्या हम इस किस्म के नसलवादिय अत्याचार से बाहर निकल आये हैं? क्या अब भी जो कोई भी ताकतवर स्थान पर है, कमज़ोर को मार नहीं रहा? सत्यम जी का अनुवाद ब्रेख्त को हमारे बहुत करीब लाता है.