…और दार्शनिक बोल पड़े!
वाह! बिल गेट्स साहब आप ने खूब कहा! पहले तो लोगों का शोषण करो, लूटो और फ़िर उनके असन्तोष और नफ़रत की ज्वाला पूँजीवाद को तबाह न कर दे उसके लिए लूट के धन से थोड़ा खैरात बाँटों! तो ये रहा श्री गेट्स का सृजनात्मक पूँजीवाद।
वाह! बिल गेट्स साहब आप ने खूब कहा! पहले तो लोगों का शोषण करो, लूटो और फ़िर उनके असन्तोष और नफ़रत की ज्वाला पूँजीवाद को तबाह न कर दे उसके लिए लूट के धन से थोड़ा खैरात बाँटों! तो ये रहा श्री गेट्स का सृजनात्मक पूँजीवाद।
बाल मजदूरों को आज होटलों, एक्सपोर्ट घरों, भट्ठों, घरेलू नौकरी एवं अनेक ऐसे ही कामों से मुक्त करवाना इसका हल नहीं है । इसका प्रमुख कारण है आर्थिक असमानता, श्रम का शोषण, मजदूरों के सम्मुख कार्यों की ऐसी उपस्थिति जिसमें वह चयन नहीं करते बल्कि वह बेचने के लिए खुद को प्रस्तुत करते है । । शोषण ने श्रमिकों से शिक्षा, चिकित्सा, आवास सभी कुछ छीन लिया है, उनके सामने हमेशा एक यक्ष प्रश्न होता है, जिन्दा रहने की न्यूनतम शर्त, भोजन और वह भी उतना ही जिससे वह काम करने लायक बने रह सके । यह प्रमुख प्रश्न पूँजीवादी शोषणकारी व्यवस्था की देन है और इसकी नियति भी । अत: आज अगर बाल मजदूरों को महज इन कामों से हटा दिया जाये तो ये पुन: उसी तरह के किसी काम में वापस आयेंगे क्योंकि इनके पास जीवित रहने के लिए और कोई विकल्प ही नहीं है ।
जब श्री सेन यह कह रहे थे कि एक प्रजातांत्रिक सरकार को जनता के लिए नीति एवं न्याय की रक्षा करनी चाहिये तो वह लुटेरों को परोक्षत: सब कुछ खुल्लम–खुल्ला न करने की बजाये मुखौटे के भीतर रहकर करने की बात कह रहे थे । क्योंकि शासन के जिस चरित्र और व्यवहार की कलई देश की हर मेहनतकश जनता के सामने खुल चुकी है, जिसमें कैंसर लग चुका है उसी व्यवस्था में पैबन्द लगाकर न्याय की बात करने का और क्या अर्थ हो सकता है जब श्री सेन बाल कुपोषण, प्राथमिक शिक्षा की कमी, चिकित्सा का अभाव एवं गरीबी को दूर करने के लिए सामाजिक न्याय की बात कर रहे थे तो क्या वे भूल गये थे कि इस सबके पीछे आम मेहनतकशों का शोषण एवं वही पूँजीवादी व्यवस्था है जिससे वह सामाजिक न्याय की गुहार लगा रहे हैं । अपने भाषण को समेटते हुए श्री अमर्त्य सेन यह कह रहे थे कि कानून बनाने वाले लोग अर्थात नेता और मंत्री को अधिक स्पष्ट रूप से जागरूक होना चाहिये तो वस्तुत: वे पूँजीवाद के ऊपर आने वाले ख़तरे से आगाह कर रहे थे जो मुखौटा–विहीन शोषण से पैदा हो रहा है । क्योंकि अगर सेन में थोड़ी भी दृष्टि होती तो वे देख सकते कि जिनसे वह समानता की स्थापना, गरीबी कुपोषण एवं अशिक्षा को मिटाने के लिए कानून बनाने एवं अमल में लाने के लिए सामाजिक न्याय की बात कर रहे हैं उस अन्याय के ज़िम्मेदार वही लोग हैं वरन इसके पैदा होने के स्रोत वे ही हैं । ऐसी समस्याओं के हल की विश्वदृष्टि जिस वर्गीय पक्षधरता एवं धरातल की मांग करती है वह श्री सेन के पास नहीं है ।
देश की सम्पूर्ण आबादी को भोजन उपलब्ध कराने वाली आम मेहनतकश ग़रीब किसान आबादी कालाहाण्डी और विदर्भ में आत्महत्याएँ करने को मजबूर है, देश के कारखानों में काम करने वाला मज़दूर जो ऐशो-आराम के सारे साज़ो-सामान बनाता है, सड़कें और इमारतें बनाता है, वह जीवन की बुनियादी शर्तों से क्यों वंचित है? क्योंकि इस शासन व्यवस्था के पैरोकारों के दिमाग़ पर लूट की हवस सवार है, जो शोषण की मशीनरी को चाक-चौबन्द करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।