…और दार्शनिक बोल पड़े!
प्रेम प्रकाश, दिल्ली
पिछले कुछ समय से जब से पूँजीवादी वैश्विक शोषण ने अपने चेहरे से मुखौटे हटाकर अपने रक्त सने दाँत को लोगों के सामने और अधिक नग्न रूप में उजागर किया है तब से इसके सिद्धान्तकारों की नींद गायब हो गयी है। उनके सामने पूँजीवाद के कल्याणकारी रूप के मुखौटे को फ़िर से लगाने का संकट खड़ा है। वे बार-बार अपने बुद्धि-चातुर्य से मुखौटा लगाने की कोशिश करते हैं और लुटेरों की जमात अर्थात समग्र पूँजीवादी बिरादरी का कृत्य उसे उतार फ़ेंकता है। वर्ष 2008 के मध्य में दुनिया भर की लूट से धनी बने विश्व के नम्बर एक धनी बिल गेट्स काफ़ी चिन्तित दिखे। और उनके चिन्तन ने पूँजीवाद को संकट से निकालने के लिए ‘सृजनात्मक पूँजीवाद’ की एक दवा की बात की। बिल एण्ड मेलिण्डा गेट्स फ़ाउण्डेशन में अपने भाषण के दौरान उन्होंने कहा कि ‘‘मैं राजनेताओं से बात करूंगा कि कैसे उनकी सरकारें गरीब व्यक्तियों की अधिक से अधिक मदद कर सकती है कैसे सृजनात्मक पूँजीवाद के नये प्रयोगों से इसे अधिक से अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है।”
बिल गेट्स ने अपने भाषण में विश्व पूँजीवाद को लूट के जाने-पहचाने ट्रैक से हटकर अलग क्षेत्रों में लूट की माइक्रो तकनीक विकसित करने की बात कही। उन्होंने कहा कि सृजनात्मक पूँजीवाद के द्वारा पूरी दुनिया में और मुख्यतः विकासशील विश्व में ऐसे अनेक क्षेत्र आज भी उजागर किये जा सकते हैं जो अनछुए रह गये हैं, जिनमें पूँजीवाद अपने बाजार का विकास कर अपार सम्भावना सम्पन्न लूट क्षेत्र तलाश सकता है। श्री गेट्स ने कहा कि कम्पनियों के अनुसंधानकर्ता और रणनीतिकार गरीबों की जरूरतों को समझने वाले विशेषज्ञों के साथ नियमित बातचीत करें। इसके पीछे का उद्देश्य स्पष्ट है वे गरीबों की जिन्दगी को जगमगाना नहीं चाहते बल्कि वे उनकी जिन्दगी से जुड़े हर पहलू को अपने मुनाफ़े के दृष्टिकोण से विश्लेषित करना चाहते हैं। बाजारवाद में नये क्षेत्रों का अनुसंधान इनका लक्ष्य है। बिल गेट्स ने अपने सृजनात्मक पूँजीवाद के सिद्धान्त के लिए उदाहरण भी बेजोड़ प्रस्तुत करते हैं वे कहते हैं कि वर्ष 2000 में वोडाफ़ोन ने एक केन्याई कम्पनी में हिस्सेदारी खरीदी थी तब उसके पास केन्या में 4 लाख उपभोक्ता थे। आज उस कम्पनी सफ़ारीकाम के पास 1 करोड़ उपभोक्ता है। कम्पनी ने कम आमदनी वाले केन्याई लोगों तक पहुँचने के सृजनात्मक तरीके इजाद किये मसलन वह अपने ग्राहकों से मिनट के बजाये सेकेण्ड में चार्ज करती है। लेकिन मि.गेट्स ये भूल जाते हैं कि कम्पनी का उद्देश्य लोगों को सुविधाएँ देना नहीं बल्कि अपने लाभ के दायरे को व्यापक कर ऐसे इंजेक्शन का विकास करना था जो समाज के सबसे पतली शिराओं से उनके लिए खून चूस सके।
दूसरी तरफ़ श्री गेट्स ने कहा कि सृजनात्मक पूँजीवाद द्वारा लाभ का एक हिस्सा समाज के बड़े वर्ग तक प्रभावी ढंग तक कैसे पहुँचाया जा सकता है। उदाहरण में उन्होंने कहा कि गैप, हालमार्क और डेल जैसी कम्पनियाँ रेड ब्राण्डेड उत्पाद बेचकर उससे होने वाली कमाई का एक हिस्सा एड्स से लड़ने के लिए अभियान में दान करती है और माइक्रोसॉफ्ट भी हाल में इस अभियान से जुड़ी है। उन्होंने बताया कि ‘रेड’ ने टी.बी. और ऐसी ही अन्य बीमारियों से लड़ने के लिए 10 करोड़ डालर जुटाये हैं। प्रथम दृष्टया श्री गेटस की यह बात काफ़ी आकर्षक लग सकती है लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि टी.बी. अथवा ऐसी ही तमाम बीमारियाँ जो मुख्यतः कुपोषण एवं अस्वास्थ्यकर जीवन स्थितियों की देन हैं मूलतः पूँजीवादी शोषण द्वारा ही जन्म लेती है। वाह! बिल गेट्स साहब आप ने खूब कहा! पहले तो लोगों का शोषण करो, लूटो और फ़िर उनके असन्तोष और नफ़रत की ज्वाला पूँजीवाद को तबाह न कर दे उसके लिए लूट के धन से थोड़ा खैरात बाँटों! तो ये रहा श्री गेट्स का सृजनात्मक पूँजीवाद।
सी. के. प्रहलाद अपनी किताब द फ़ॉर्चून एट द बाटम आफ़ द पिरामिड में बताते हैं कि दुनिया भर में ऐसे बाज़ार हैं जो व्यवसायियों से छूट गये हैं। एक अध्ययन से पता चला है कि दुनिया कि सबसे ग़रीब दो-तिहाई गरीब आबादी के पास 5 ट्रिलियन डालर की खरीद क्षमता है। बिल गेट्स के सृजनात्मक पूँजीवाद की गिद्ध दृष्टि इसी पर है।
अर्थशास्त्री और भूतपूर्व मुख्य अर्थशास्त्री अन्तराष्ट्रीय मुद्राकोष श्री रघुराम राजन भी आजकल काफ़ी चिन्तित हैं। आई.आई.टी. मद्रास में पैन आई.आई.टी. में बोलते हुए उन्होंने कहा कि वर्तमान वैश्विक आर्थिक समस्या पूँजीवाद की स्वयं की समस्या नहीं है बल्कि यह समस्या पूँजीपतियों द्वारा पूँजीवाद के ढाँचे की चिन्ता किये बिना अनावश्यक खींचातानी से पैदा हुई है। डा. राजन इस बात का कोई जवाब नहीं देते कि क्या कोई ऐसा भी पूँजीवाद है जिसमें पूँजीपति न हो और अगर यह समस्या पूँजीवाद की नहीं बल्कि पूँजीपतियों की है तो इनका क्या किया जाये? वैसे रोग का सही इलाज तो यही होगा कि रोग की जड़ को ही खत्म कर दिया जाये। लेकिन नहीं! डा. रघुराम राजन ऐसे नहीं कहेंगे क्योंकि वे भारतीय पूँजीवाद को बचाने वाले मुख्य दार्शनिक डा. मनमोहन सिंह के आर्थिक सलाहकार जो ठहरे। डा. राजन कहते हैं कि वर्तमान समस्या आर्थिक औजारों के अति-स्वार्थपरक उपयोग के कारण पैदा हुई है। वे वृद्धि के लाभ को समाज के सभी वर्गों में ले जाने की बात करते हैं लेकिन तब श्रम के अधिशेष को हड़पने से सृजित आर्थिक असमानता के समूल नाश के कार्यक्रम पर चुप्पी साधते हुए नज़र क्यों आते हैं? आज जब पूँजीवाद का संकट गहराता जा रहा है तो बुर्जुआ दार्शनिकों के साथ-साथ संसदीय वामपंथी संशोधनवादियों का असली मकसद भी स्पष्ट रूप से उजागर होता जा रहा है। यह अनायास ही नहीं कि सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री और केरल राज्य योजना बोर्ड के उपाध्यक्ष श्री प्रभात पटनायक को संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा नियुक्त एक उच्चस्तरीय कमेटी का सदस्य नियुक्त किया गया है। यह कमेटी वैश्विक वित्तीय व्यवस्था में सुधार के लिए सुझाव देगी। चार सदस्यीय इस कमेटी के अध्यक्ष श्री जोसफ़े ई. स्टिगलिट्ज है। आज तक श्री पटनायक जिस पूँजीवाद को कोसते नजर आ रहे थे जिसे सम्पूर्ण विश्व के लिए ख़तरनाक बता रहे थे आज वही पटनायक पूँजीवाद के लिए मरहम बनाने वाली टीम के सदस्य हैं, संकट में घिरी पूँजीवादी व्यवस्था को बचाने का रास्ता तलाश रहे हैं!
नोबल पुरस्कार प्राप्त अर्थशास्त्री जोसफ़े ई. स्टिगलिट्ज जो नवकीन्सीयाई अर्थशास्त्री हैं। वे भी पूँजीवाद की उम्र को बढ़ाने का अलग नुस्खा देते हैं। ये वर्तमान संकट का प्रमुख कारण वित्तीय संस्थाओं की असफ़लता मानते हैं। इसका कारण ये विनियामक संस्थाओं की दोषपूर्ण संरचना को मानते हैं। इनका कहना है कि वित्तीय संस्थाओं के विफलता के तीन सम्बद्ध कारण है-खराब प्रलोभन संरचना, दोषपूर्ण प्रतियोगिता और दोषपूर्ण पारदर्शिता। मि. स्टिगलिट्ज क्लिंटन प्रशासन में आर्थिक सलाहकार थे। इनके विचार का केन्द्रीय बिन्दु बाजार अर्थशास्त्र और राजनीतिक अर्थव्यवस्था में सूचना अर्थशास्त्र के अनुसार सन्तुलन कायम करते हुए वर्तमान आर्थिक तन्त्र अर्थात पूँजीवाद की हिफ़ाजत है। जिन वित्तीय संस्थाओं की असफ़लता को मि. जोसेफ़ वर्तमान संकट का कारण मानते हैं और विनियामक संस्थाओं के हाथ से बाहर चले जाना उनके चिन्तन का बिन्दु है वे यह भूल जाते हैं कि मुनाफ़े और लूट की प्रकृति ही खुल्लमखुल्ले खेल की माँग करती है। पूँजीवाद की प्रकृति एकाधिकारी पूँजीवाद की तरफ़ बढ़ती है और साम्राज्यवादी पूँजी अपने मार्ग में बाधक हर विनियामकों की धज्जियाँ उड़ा देती है। मि. स्टिगलिट्ज यह भूल जाते हैं कि उनके जैसे पूँजीवादी दार्शनिक और स्वयं पूँजीपतियों की मैनेजिंग कमेटी पूँजीवाद के शोषण को पर्दे के अन्दर करने और शोषण को सुनियोजित कर पूँजीवाद को बचाने की चाहे जितनी भी कोशिश करें उसको आत्मघाती संकटों से बचाया नहीं जा सकता।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, जनवरी-मार्च 2009
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