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सोप ऑपेरा या तुच्छता और कूपमण्डूकता के अपरिमित भण्डार

ये तमाम सोप ऑपेरा वास्तव में पूँजीवादी समाज की संस्कृति, विचारधारा और मूल्यों का सतत पुनरुत्पादन करने का काम करते हैं; लोगों के विश्व दृष्टिकोण को तुच्छ, स्वार्थी, कूपमण्डूक, दुनियादार और असंवेदनशील बनाते हैं; हर प्रकार की व्यापकता और उदात्तता की हत्या कर दी जाती है। और इस प्रकार भारत के अजीबो-ग़रीब मध्यवर्ग पर मानसिक और मनोवैज्ञानिक नियन्त्रण क़ायम किया जाता है।