Category Archives: सुधारवाद

मौजूदा धनी किसान आन्‍दोलन और कृषि प्रश्‍न पर कम्‍युनिस्‍ट आन्‍दोलन में मौजूद अज्ञानतापूर्ण और अवसरवादी लोकरंजकतावाद के एक दरिद्र संस्‍करण की समालोचना

कुतर्क की आड़ में पीआरसी सीपीआई (एमएल) की मज़दूर वर्ग-विरोधी अवस्थिति छिप नहीं सकी है! सच यह है कि पीआरसी सीपीआई (एमएल) का नेतृत्‍व मौजूदा धनी किसान-कुलक आन्‍दोलन की गोद में बैठने की ख़ातिर तरह-तरह के राजनीतिक द्रविड़ प्राणायाम कर रहा है, तथ्‍यों को तोड़-मरोड़ रहा है, गोलमोल बातें कर रहा है, समाजवाद के सिद्धान्‍त और इतिहास का विकृतिकरण कर रहा है और अवसरवादी लोकरंजकतावाद में बह रहा है। लेकिन इस क़वायद के बावजूद, वह कोई सुसंगत तर्क नहीं पेश कर पा रहा है और लाभकारी मूल्‍य के सवाल पर गोलमोल अवस्थिति अपनाने और उसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली से जोड़ने से लेकर “सामान्‍य पूँजीवादी खेती” और “कॉरपोरेट पूँजीवादी खेती” की छद्म श्रेणियाँ बनाकर मार्क्‍सवाद-लेनिनवाद का विकृतिकरण करने तक, सोवियत समाजवाद के बारे में झूठ बोलने और “उचित दाम” का भ्रामक नारा उठाने से लेकर तमाम झूठों और मूर्खताओं का अम्‍बार लगा रहा है।

एनजीओ : देशी-विदेशी पूँजी की फ़ण्डिंग से जन-असन्तोष के दबाव को कम करने वाले सेफ़्टी वॉल्व

‘एनजीओ ब्राण्‍ड सुधारवाद’ आम सुधारवाद से भी बहुत अधिक खतरनाक होता है, उसे देशी-विदेशी पूँजी ने अपनी तथा पूरी बुर्जुआ व्यवस्था की सेवा के लिए ही संगठित किया है—इस बात को समझना आज बहुत ज़रूरी है। एनजीओ सेक्टर के शीर्ष थिंक टैंक अक्सर पुराने रिटायर्ड क्रान्तिकारी, अनुभवी, घुटे हुए सोशल डेमोक्रेट और घाघ-दुनियादार बुर्जुआ लिबरल होते हैं जो देशी-विदेशी पूँजी की फ़ण्डिंग से जन-असन्तोष के दबाव को कम करने वाले सेफ़्टी वॉल्व का, एक क़िस्म के स्पीड-ब्रेकर का निर्माण करते हैं। साथ ही यह रोज़गार के लिए भटकते संवेदनशील युवाओं को “वेतनभोगी समाज-सुधारक” बनाकर इसी व्यवस्था का प्रहरी बना देने वाला एक ट्रैप भी है। यूँ तो एनजीओ नेटवर्क पूरे देश में फैला है, लेकिन झारखण्ड, छत्तीसगढ़ जैसे पिछड़े इलाकों के साथ ही उत्तराखण्ड के पहाड़ों के नाके-नाके तक ये फैल गये हैं और रैडिकल राजनीतिक चेतना को भ्रष्ट और दिग्भ्रमित करने का काम भयंकर रूप में कर रहे हैं।