Category Archives: स्‍मृति शेष

हमारे स्वप्नों, संकल्पों और संघर्षों में जीवित रहेंगे अरविन्द हमेशा–हमेशा!

साथी अरविन्द ऐसे क्रान्तिकारी थे, जो मेहनतकश जनता की अन्तिम विजय में अडिग विश्वास के साथ हमेशा धारा के विरुद्ध तैरते रहे । दुनियादारी और मौकापरस्ती से उन्हें गहरी नफरत थी । घोंसलावादी कुर्सीतोड़ “क्रान्तिकारियों,” भगोड़ों–गद्दारों और कैरियरवादियों के विरुद्ध वे समझौताहीन संघर्ष के हिमायती थे । वे एक ऐसे क्रान्तिकारी बुद्धिजीवी थे, जो सच्चे अर्थों में अपनी मध्यवर्गीय पृष्ठभूमि एवं संस्कारों से निर्णायक विच्छेद करके बहुसंख्यक मेहनतकश जनता के जीवन और संघर्ष को दिल से अपना बना चुका थे।

साथी अरविन्द की याद में….

दूसरों के लिए प्रकाश की एक किरण बनना, दूसरों के जीवन को देदीप्यमान करना, यह सबसे बड़ा सुख है जो मानव प्राप्त कर सकता है । इसके बाद कष्टों अथवा पीड़ा से, दुर्भाग्य अथवा अभाव से मानव नहीं डरता । फिर मृत्यु का भय उसके अन्दर से मिट जाता है, यद्यपि, वास्तव में जीवन को प्यार करना वह तभी सीखता है । और, केवल तभी पृथ्वी पर आँखें खोलकर वह इस तरह चल पाता है कि जिससे कि वह सब कुछ देख, सुन और समझ सके; केवल तभी अपने संकुचित घोंघे से निकलकर वह बाहर प्रकाश में आ सकता है और समस्त मानवजाति के सुखों और दु:खों का अनुभव कर सकता है । और केवल तभी वह वास्तविक मानव बन सकता है ।

फलस्तीनी मुक्ति संघर्ष के अमर गायक महमूद दरवेश नहीं रहे

महमूद दरवेश की कविता दरअसल फलस्तीनी सपनों की कविता है । उनकी कविता अपने लोगों की आवाज़ है जो बेइंतहा तकलीफ़, निर्वासन, दहशत और उम्मीद और सपनों से रची गयी है । फलस्तीनी कविता के बारे में उनका कहना था कि इसका महत्व हमारी धरती के कण–कण से इसके घनिष्ठ सम्बन्ध में निहित है-इसके पहाड़ों, घाटियों, पत्थरों, खण्डहरों और यहाँ के लोगों के सम्बन्ध में जो अपने कंधों पर भारी बोझ और अपनी कलाइयों तथा आकांक्षाओं पर कसी जंज़ीरों के बावजूद सिर उठाकर आगे बढ़ रहे हैं । यही प्रतिरोध का तत्व फलस्तीनी जनता की पहचान है, महमूद दरवेश की कविता की पहचान है ।

मानव-संघर्ष और प्रकृति के सौन्दर्य के शब्दशिल्पी त्रिलोचन सदा हमारे बीच रहेंगे!

त्रिलोचन की कविताएँ जीवन, संघर्ष और सृजन के प्रति अगाध आस्था की, बुर्जुआ समाज के रेशे-रेश में व्यक्त अलगाव (एलियनेशन) के निषेध की और प्रकृति और जीवन के व्यापक एंव सूक्ष्म सौन्दर्य की भावसंवेदी सहज कविताएँ हैं। सहजता उनकी कविताओं का प्राण है। वे जितने मानव-संघर्ष के कवि हैं, उतने ही प्रकृति के सौन्दर्य के भी। पर रीतकालीन, छायावादी और नवरूपवादी रुझानों के विपरीत प्रकृति के सन्दर्भ में भी त्रिलोचन की सौन्दर्याभिरुचि उनकी भौतिकवादी विश्वदृष्टि के अनुरूप है जो सहजता-नैसर्गिकता-स्वाभाविकता के प्रति उद्दाम आग्रह पैदा करती है और अलगाव की चेतना के विरुद्ध खड़ी होती है जिसके चलते मनुष्य-मनुष्य से कट गया है, और प्रकृति से भी।

विज्ञान और तर्क के उत्कट योद्धा – एच. नरसिम्हैया (1920–2005)

आज के समय एच. नरसिम्हैया की जो बात उनके प्रति हर युवा हृदय को सम्मान और आभार से भर देती है वह है धर्मांधता, अंधविश्वास, ढकोसलों, और पाखण्ड के विरुद्ध उनके द्वारा लड़ी गई लड़ाई। आज जब किस्म-किस्म के बाबाओं, संतों और अम्माओं का घटाटोप छाया हुआ है, धर्मांध शक्तियाँ तर्क की हत्या कर डालने को आमादा हैं और आज के युवा तक भटककर इन ढकोसलों और पाखण्डियों के चक्कर में फ़ँस रहे हैं, तो नरसिम्हैया की महानता उभरकर सामने आती है। उन्होंने तमाम धार्मिक पाखण्डियों और ओझाओं का पदार्फ़ाश किया था। बंगलोर विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में 1976 में उन्होंने चमत्कार व अंधविश्वास जाँच समिति बनाई और इसके सामने अपने चमत्कारों को साबित करने के लिए साईं बाबा को बुलाया था, जिसे साईं बाबा ने अस्वीकार कर दिया, जिसके कारण को समझा जा सकता है। 1967 में उन्होंने बंगलोर साइंस फ़ोरम की स्थापना की। वह हमेशा छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टि और तार्किकता को प्रोत्साहित करते रहे। उन्होंने अगणित छात्रों को अंधविश्वासों से मुक्त कराकर वास्तव में एक पीढ़ी निर्माता का काम किया।