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फिलिस्तीन: कुछ कविताएँ
सभी कविताओं को अनुवाद – रामकृष्ण पाण्डेय
महमूद दरवेश
गाज़ा शहर
एक चौकी पर
जिस पर एक भूरा कम्बल बिछा होता है
इंतजार करता हूं मुअज्जिन का
कि खड़ा हो सकूं
नमाज पढ़ने के लिए
अजान की आवाज
मेरी खिड़की से आती है
और मैं उन सभी लोगों के बारे में
सोचने लगता हूं
जो नमाज में झुक रहे होंगे
हर बार कम हो रहा होगा
उनके मन का भय
हर बार एक नई उदासी
घर कर रही होगी
उनकी आत्मा में
क्योंकि उनके बच्चे
गलियों में खड़े हैं
पंक्तिबद्ध
कैदियों की तरह
मौत के शिविर के
मैं अपनी टूटी हुई खिड़की की ओर बढ़ता हूं
और एक झलक लेने की कोशिश करता है
भूतों के इस शहर की
जो मारे गये हैं
अपनी कब्र के संकरे दरवाजे से
आते-जाते हैं
ठण्डी दीवार से सटा है
मेरे चेहरे का दाहिना हिस्सा
और मेरा हाथ
मैं छुप जाता हूं फूहड़ की तरह
शर्मिन्दा
मैं अपने हल्के नीले चोगे का कालर
इतनी जोर से खींचता हूं
कि वह फट जाता है
और एक ओर झूल जाता है
जैसे हम सबकी
जिन्दगियाँ झूल रही हैं
मेरे नाखून
मेरे ही मांस में धंस जाते हैं
और मैं अपने को ही भींच लेता हूं
मेरी छाती पर नाखून के
तीन निशान बन जाते हैं
तीन बातें मेरे दिमाग में आती हैं
मैं सोचता हूं
कि क्या इस मलबे में खुदा दब गया है
हर घर एक कैदखाना है
और हर कमरा एक पिंजरा
देबके अब जिन्दगी में शामिल नहीं है
सिर्फ शवयात्राएं हैं
गाजा यह नगरी
गर्भवती है लोगों से
और कोई उसके दर्द में मदद नहीं करता
कहीं सड़क नहीं है
अस्पताल नहीं है, स्कूल नहीं है
हवाई अड्डा नहीं है
सांस लेने को हवा तक नहीं है
और मैं यहां एक कमरे में बंद हूं
खिड़की पर खड़ा
असहाय, अनुपयोगी
अमेरिका में मैं
टेलीविजन देख रहा होता
सीएनएन को सुन रहा होता
कि इजरायल मांग कर रहा है
कि आतंकवाद खत्म होना चाहिए
यहां मैं जो कुछ देख रहा हूं
वह पीड़ा का आतंक है
और बच्चे हैं जो नहीं जानते कि वे बच्चे हैं
मिलोसेविच को कुचल दिया गया
पर शैरोन का क्या होगा
अंततः मैं कपड़े पहनकर तैयार होता हूं
खिड़की के सामने तनकर खड़ा हो जाता हूं
और गले में थूक अटकने लगता है
जैसे ही गोली बारी शुरू होती है
एफ-16 विमान
रोज की तरह वहां से गुजरते हैं
समीह अल-कासिम
एक दिवालिये की रिपोर्ट
अगर मुझे अपनी कमीज और अपना बिछौना
बेचना पड़े
अगर मुझे पत्थर तोड़ने का काम करना पड़े
या कुली का
या मेहतर का
अगर मुझे तुम्हारा गोदाम साफ करना पड़े
या गोबर से खाना ढूंढ़ना पड़े
या भूखे रहना पड़े
और खामोश
इनसानियत के दुश्मन
मैं समझौता नहीं करूंगा
आखिर तक मैं लड़ूंगा
जाओ मेरी जमीन का
आखिरी टुकड़ा भी चुरा लो
जेल की कोठरी में
मेरी जवानी झोंक दो
मेरी विरासत लूट लो
मेरी किताबें जला दो
मेरी थाली में अपने कुत्तों को खिलाओ
जाओ मेरे गांव की छतों पर
अपने आतंक के जाल फैला दो
इंसानियत के दुश्मन
मैं समझौता नहीं करूंगा
और आखिर तक मैं लड़ूंगा
अगर तुम मेरी आंखों में
सारी मोमबत्तियाँ पिघला दो
अगर तुम मेरे होंठों के
हर बोसे को जमा दो
अगर तुम मेरे माहौल को
गालियों से भर दो
या मेरे दुखों को दबा दो
मेरे साथ जालसाजी करो
मेरे बच्चों के चेहरे से हंसी उड़ा दो
और मेरी आंखों में अपमान की पीड़ा भर दो
इंसानियत के दुश्मन
मैं समझौता नहीं करूंगा
और आखिर तक मैं लड़ूंगा
मैं लड़ूंगा
इंसानियत के दुश्मन
बंदरगाहों पर सिगनल उठा दिये गये हैं
वातावरण में संकेत ही संकेत हैं
मैं उन्हें हर जगह देख रहा हूं
क्षितिज पर नौकाओं के पाल नजर आ रहे हैं
वे आ रहे हैं
विरोध करते हुए
यूलिसिस की नौकाएं लौट रही हैं
खोये हुए लोगों के समुद्र से
सूर्योदय हो रहा है
आदमी आगे बढ़ रहा है
और इसके लिए
मैं कसम खाता हूं
मैं समझौता नहीं करूंगा
और आखिर तक मैं लड़ूंगा
मैं लडूंगा
अब्दुलकरीम अल-करामी (अबु सलमा)
हम लोग लौटेंगे
मैं कैसे सो सकता हूं
मेरी आंखों में यातना की परछाईं है
तेरे नाम से मैं अपनी दुनिया संवारता हूं
और अगर तेरे प्रेम ने मुझे पागल नहीं बना दिया होता
तो मैं अपनी भावनाओं को
छुपाकर ही रखता
दिनों के काफिले गुजरते हैं
और बातें करते हैं
दुश्मनों और दोस्तों की साजिशों की
प्यारे फलस्तीन
मैं कैसे जी सकता हूं
तेरे टीलों और मैदानों से दूर
खून से रंगे
पहाड़ों की तलहटी
मुझे बुला रही है
और क्षितिज पर वह रंग फैल रहा है
हमारे समुद्र तट रो रहे हैं
और मुझे बुला रहे हैं
और हमारा रोना समय के कानों में गूंजता है
भागते हुए झरने मुझे बुला रहे हैं
वे अपने ही देश में परदेसी हो गये हैं
तेरे यतीम शहर मुझे बुला रहे हैं
और तेरे गांव और गुंबद
मेरे दोस्त पूछते हैं
‘क्या हम फिर मिलेंगे?’
‘हम लोग लौटेंगे?’
हां, हम लोग उस सजल आत्मा को चूमेंगे
और हमारी जीवन्त इच्छाएं
हमारे होंठों पर हैं
कल हम लोग लौटेंगे
और पीढ़ियाँ सुनेंगी
हमारे कदमों की आवाज
हम लौटेंगे आंधियों के साथ
बिजलियों और उल्काओं के साथ
हम लौटेंगे
अपनी आशा और गीतों के साथ
उठते हुए बाज के साथ
पौ फटने के साथ
जो रेगिस्तानों पर मुस्कुराती है
समुद्र की लहरों पर नाचती सुबह के साथ
खून से सने झण्डों के साथ
और चमकती तलवारों के साथ
और लपकते बरछों के साथ
हम लौटेंगे
मोईन बेसिस्सो
तीसरी दुनिया
मुकम्मल बात है फतह
एक गोली रात की खामोशी को
तोड़ देती है
खून का फव्वारा फूट पड़ता है
हमारा खून बलबला कर निकलता है
हम खून का रंग पहचान लेते हैं
उन्होंने हमें खून का रंग
भूलने को मजबूर कर दिया था
उन्होंने हमें संदेह करने को
मजबूर कर दिया था
कि हमारी नसों में
खून बहता है या पानी
फिर भी सारे रंग
हम आज भी पहचानते हैं
पासपोर्ट अधिकारियों की आंखों के रंग
पैसों के रंग
काली सूची के रंग
सबको पहचानते थे
खून के रंग के अलावा
पर अब वह खून बह रहा है
उसने हमारे रास्ते को सींच दिया है
आओ हम अपना खून बहायें, फतह
क्योंकि हम मारे जायेंगे
अगर हमने अपने घावों का इलाज किया
हमारे खून को
दुनिया की खिड़कियों के शीशों पर
पुत जाने दो
इसे दुनिया के चेहरे पर
पुत जाने दो
इस दुनिया के
आओ हम दुनिया के
तकिए के नीचे
डाइनामाइट की एक छड़ लगा दें
जब तक हम कांटेदार तारों पर
विश्राम करते हैं
फतह
यह दुनिया चैन से नहीं सोयेगी
बहुत दिनों से यह दुनिया
खा रही है
फलस्तीन का मांस
छुरी और कांटे से
दुनिया के कान
दुनिया की आंखें
दुनिया का दिल
दुनिया का गला
उबले हुए सेब हैं
चुराये हुए सेब हैं
विजेताओं की फलों की टोकरी में
दुनिया की औरतो
तुम्हारे बच्चों की गुड़ियों पर
हमारा खून पुता हुआ है
तुम्हारे कदमों के साथ-साथ हमारा खून बहता है
अब हमारे साथ हो लो
दुनिया के आदमियो
अब हमारे साथ हो लो
दुनिया के आदमी और औरतो
अब हमारे साथ हो लो
काली, गोरी, लाल, पीली
दुनिया की नस्लों
अब हमारे साथ हो लो
क्योंकि हम तुम्हें
मनुष्य की गरिमा प्रदान करेंगे
मनुष्य का जन्म प्रमाणपत्र देंगे
और मनुष्य का नाम
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, मई-जून 2014
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