शोकगीत
महमूद दरवेश
हमारे देश में
लोग दुखों की कहानी सुनाते हैं
मेरे दोस्त की
जो चला गया
और फ़िर कभी नहीं लौटा
उसका नाम………
नहीं उसका नाम मत लो
उसे हमारे दिलों में ही रहने दो
राख की तरह हवा उसे बिखेर न दे
उसे हमारे दिलों में ही रहने दो
यह एक ऐसा घाव है जो कभी भर नही सकता
मेरे प्यारो, मेरे प्यारे यतीमों
मुझे चिंता है कि कहीं
उसका नाम हम भूल न जायें
नामों की इस भीड़ में
मुझे भय है कि कहीं हम भूल न जायें
जाड़े की इस बरसात और आंधी में
हमारे दिल के घाव कहीं सो न जायें
मुझे भय है
उसकी उम्र…
एक कली जिसे बरसात की याद तक नहीं
चाँदनी रात में किसी महबूबा को
प्रेम का गीत भी नहीं सुनाया
अपनी प्रेमिका के इंतजार में
घड़ी की सुईयां तक नहीं रोकी
असफल रहे उसके हाथ दीवारों के पास
उसके लिए
उसकी आँखें उद्दाम इच्छायों में कभी नही डूबीं
वह किसी लड़की को चूम नहीं पाया
वह किसी के साथ नहीं कर पाया इश्क
अपनी ज़िन्दगी में सिर्फ़ दो बार उसने आहें भरी
एक लड़की के लिए
पर उसने कभी कोई खास ध्यान ही नहीं दिया
उस पर
वह बहुत छोटा था
उसने उसका रास्ता छोड़ दिया
जैसे उम्मीद का
हमारे देश में
लोग उसकी कहानी सुनाते हैं
जब वह दूर चला गया
उसने माँ से विदा नही ली
अपने दोस्तों से नहीं मिला
किसी से कुछ कह नहीं गया
एक शब्द तक नहीं बोल गया
ताकि कोई भयभीत न हो
ताकि उसकी मुन्तजिर मां की
लम्बी राते कुछ आसान हो जायें
जो आजकल आसमान से बातें करती रहती है
और उसकी चीज़ों से
उसके तकिये से, उसके सूटकेस से
बेचैन हो-होकर वह कहती रहती है
अरी ओ रात, ओ सितारो, ओ खुदा, ओ बादल
क्या तुमने मेरी उड़ती चिडिया को देखा है
उसकी आँखें चमकते सितारों सी हैं
उसके हाथ फूलों की डाली की तरह हैं
उसके दिल में चाँद और सितारे भरे हैं
उसके बाल हवायों और फूलों के झूले हैं
क्या तुमने उस मुसाफिर को देखा है
जो अभी सफर के लिए तैयार ही नहीं था
वह अपना खाना लिए बगैर चला गया
कौन खिलायेगा उसे जब उसे भूख लगेगी
कौन उसका साथ देगा रास्ते में
अजनबियों और खतरों के बीच
मेरे लाल, मेरे लाल
अरी ओ रात, ओ सितारे, ओ गलियां, ओ बादल
कोई उसे कहो
हमारे पास जबाब नहीं है
बहुत बड़ा है यह घाव
आंसुओं से, दुखों से और यातना से
नहीं बर्दाश्त नहीं कर पाओगी तुम सच्चाई
क्योंकि तुम्हारा बच्चा मर चुका है
माँ,
ऐसे आंसू मत बहाओ
क्योंकि आंसुओं का एक स्रोत होता है
उन्हें बचा कर रखो शाम के लिए
जब सड़कों पर मौत ही मौत होगी
जब ये भर जाएँगी
तुम्हारे बेटे जैसे मुसाफिरों से
तुम अपने आंसू पोंछ डालो
और स्मृतिचिन्ह की तरह संभाल कर रखो
कुछ आंसुओं को
अपने उन प्रियजनों के स्मृतिचिन्ह की तरह
जो पहले ही मर चुके हैं
माँ अपने आंसू मत बहाओ
कुछ आंसू बचा कर रखो
कल के लिए
शायद उसके पिता के लिए
शायद उसके भाई के लिए
शायद मेरे लिए जो उसका दोस्त है
आंसुओं की दो बूंदे बचाकर रखो
कल के लिए
हमारे लिए
हमारे देश में
लोग मेरे दोस्त के बारे में
बहुत बातें करते हैं
कैसे वह गया और फ़िर नहीं लौटा
कैसे उसने अपनी जवानी खो दी
गोलियों की बौछारों ने
उसके चेहरे और छाती को बींध डाला
बस और मत कहना
मैंने उसका घाव देखा है
मैंने उसका असर देखा है
कितना बड़ा था वह घाव
मैं हमारे दूसरे बच्चों के बारे में सोच रहा हूँ
और हर उस औरत के बारे में
जो बच्चा गाड़ी लेकर चल रही है
दोस्तों, यह मत पूछो वह कब आयेगा
बस यही पूछो
कि लोग कब उठेंगे
(रामकृष्ण्ा पाण्डेय द्वारा अनूदित फिलीस्तीनी कविताओं के संकलन ‘इन्तिफ़ादा’ से)
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, मई-जून 2014
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