Category Archives: महान व्‍यक्तित्‍व

आइंस्टीन होने का मतलब

आखिर क्या कारण था जो आइन्स्टीन को लगातार धारा के विरुद्ध खड़े होकर और अधिकारी-सत्ताधारी जमातों के बीच अलोकप्रिय बनकर भी अपनी मान्यताओं पर डटे रहने और निर्भीकतापूर्वक न्याय और जनता के पक्ष में आवाज़ उठाते रहने के लिए प्रेरित करता था? शायद उनकी वैज्ञानिक स्पिरिट का मानवीय दायरों तक विस्तार ही वह मूल कारण था, जैसा कि बीसवीं शताब्दी में विज्ञान के अन्य शिखिर पुरुष नील्स बोर ने उनके निधन पर श्रद्धांजलि देते हुए कहा था: ‘‘आइन्स्टीन के अवदान केवल विज्ञान के दायरे तक ही सीमित नहीं हैं। हमारे सबसे बुनियादी और अभ्यस्त अभिधारणाओं तक में से अब तक अदृष्ट अभिधारणाओं को देख लेने की उनकी प्रवृत्ति सभी लोगों को प्रत्येक राष्ट्रीय संस्कृति में अन्तर्निहित, गहराई से जड़ जमाए पूर्वाग्रहों और आत्म सन्तुष्टियों की शिनाख़्त करने और उनके विरुद्ध संघर्ष करने के लिए एक नया प्रोत्साहन देती है।’’ आज भारत के युवाओं को भी इस नए प्रोत्साहन की सख़्त ज़रूरत है और शायद सबसे अधिक ज़रूरत है।

विज्ञान और तर्क के उत्कट योद्धा – एच. नरसिम्हैया (1920–2005)

आज के समय एच. नरसिम्हैया की जो बात उनके प्रति हर युवा हृदय को सम्मान और आभार से भर देती है वह है धर्मांधता, अंधविश्वास, ढकोसलों, और पाखण्ड के विरुद्ध उनके द्वारा लड़ी गई लड़ाई। आज जब किस्म-किस्म के बाबाओं, संतों और अम्माओं का घटाटोप छाया हुआ है, धर्मांध शक्तियाँ तर्क की हत्या कर डालने को आमादा हैं और आज के युवा तक भटककर इन ढकोसलों और पाखण्डियों के चक्कर में फ़ँस रहे हैं, तो नरसिम्हैया की महानता उभरकर सामने आती है। उन्होंने तमाम धार्मिक पाखण्डियों और ओझाओं का पदार्फ़ाश किया था। बंगलोर विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में 1976 में उन्होंने चमत्कार व अंधविश्वास जाँच समिति बनाई और इसके सामने अपने चमत्कारों को साबित करने के लिए साईं बाबा को बुलाया था, जिसे साईं बाबा ने अस्वीकार कर दिया, जिसके कारण को समझा जा सकता है। 1967 में उन्होंने बंगलोर साइंस फ़ोरम की स्थापना की। वह हमेशा छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टि और तार्किकता को प्रोत्साहित करते रहे। उन्होंने अगणित छात्रों को अंधविश्वासों से मुक्त कराकर वास्तव में एक पीढ़ी निर्माता का काम किया।

‘इंकलाब-ज़ि‍न्दाबाद’ का अर्थ

क्रान्ति की इस भावना से मनुष्य जाति की आत्मा स्थायी तौर ओत-प्रोत रहनी चाहिए, जिससे कि रूढ़िवादी शक्तियाँ मानव समाज की प्रगति की दौड़ में बाधा डालने को संगठित न हो सकें। यह आवश्यक है कि पुरानी व्यवस्था सदैव बदलती रहे और वह नयी व्यवस्था के लिए स्थान रिक्त करती रहे, जिससे कि यह आदर्श व्यवस्था संसार को बिगड़ने से रोक सके। यह है हमारा वह अभिप्राय जिसको हृदय में रखकर हम ‘इंक़लाब जिन्दाबाद’ का नारा बुलंद करते हैं।

होसे मारिया सिसों की पाँच कविताएँ

दफ़्न कर देना चाहता है दुश्मन हमें
जेलख़ाने की अँधेरी गहराइयों में
लेकिन धरती के अँधेरे गर्भ से ही
दमकता सोना खोद निकाला जाता है
गोता मारकर बाहर लाया जाता है
झिलमिलाता मोती
सागर की अतल गहराइयों से।
हम झेलते हैं यंत्रणा और अविचल रहते हैं
और निकालते हैं सोना और मोती
चरित्र की गहराइयों से
ढला है जो लम्बे संघर्ष के दौरान।

भगतसिंह की स्मृति के निहितार्थ

अपने कई पत्रों, लेखों और कोर्ट में दिये गये बयानों में भगतसिंह ने यह स्पष्ट किया था कि वह और उनके साथी मात्र औपनिवेशिक दासता से मुक्ति के लिए नहीं लड़ रहे थे, बल्कि उनकी लड़ाई हर किस्म के पूँजीवादी शोषण के ख़िलाफ़ और एक न्यायपूर्ण, समतामूलक सामाजिक व्यवस्था की स्थापना के लिए जारी दीर्घकालिक महासमर की एक कड़ी थी। हमारे लिए भगतसिंह को याद करने का मतलब सिर्फ़ उनकी वीरता और कुर्बानी को ही नहीं बल्कि उनके लक्ष्य और विचारों को याद करना होना चाहिए।