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आइंस्टीन होने का मतलब

आखिर क्या कारण था जो आइन्स्टीन को लगातार धारा के विरुद्ध खड़े होकर और अधिकारी-सत्ताधारी जमातों के बीच अलोकप्रिय बनकर भी अपनी मान्यताओं पर डटे रहने और निर्भीकतापूर्वक न्याय और जनता के पक्ष में आवाज़ उठाते रहने के लिए प्रेरित करता था? शायद उनकी वैज्ञानिक स्पिरिट का मानवीय दायरों तक विस्तार ही वह मूल कारण था, जैसा कि बीसवीं शताब्दी में विज्ञान के अन्य शिखिर पुरुष नील्स बोर ने उनके निधन पर श्रद्धांजलि देते हुए कहा था: ‘‘आइन्स्टीन के अवदान केवल विज्ञान के दायरे तक ही सीमित नहीं हैं। हमारे सबसे बुनियादी और अभ्यस्त अभिधारणाओं तक में से अब तक अदृष्ट अभिधारणाओं को देख लेने की उनकी प्रवृत्ति सभी लोगों को प्रत्येक राष्ट्रीय संस्कृति में अन्तर्निहित, गहराई से जड़ जमाए पूर्वाग्रहों और आत्म सन्तुष्टियों की शिनाख़्त करने और उनके विरुद्ध संघर्ष करने के लिए एक नया प्रोत्साहन देती है।’’ आज भारत के युवाओं को भी इस नए प्रोत्साहन की सख़्त ज़रूरत है और शायद सबसे अधिक ज़रूरत है।