यतीन्द्रनाथ दास के शहादत दिवस के अवसर (13 सितंबर) पर विशेष
‘इंकलाब-ज़िन्दाबाद’ का अर्थ
हम ‘यतींद्रनाथ जिन्दाबाद’ का नारा लगाते हैं। इससे हमारा अभिप्राय यह होता है कि उनके जीवन के महान आदर्शों तथा उस अथक उत्साह को सदा-सदा के लिए बनाए रखें जिसने इस महानतम बलिदानी को उस आदर्श के लिए अकथनीय कष्ट झेलने एवं असीम बलिदान करने की प्रेरणा दी। यह नारा लगाने से हमारी यह लालसा प्रकट होती है कि हम भी अपने आदर्शों के लिए ऐसे ही अचूक उत्साह को अपनाएँ और यही वह भावना है जिसकी हम प्रशंसा करते हैं। इसी प्रकार हमें ‘इंकलाब’ शब्द का अर्थ भी कोरे शाब्दिक रूप में नहीं लगाना चाहिए। …क्रान्ति शब्द का अर्थ प्रगति के लिए परिवर्तन की एक भावना एवं आकांक्षा है। लोग साधारणतया जीवन की परम्परागत दशाओं के साथ चिपक जाते हैं और परिवर्तन के विचार मात्र से ही काँपने लगते हैं। यही वह अकर्मण्यता की भावना है जिसके स्थान पर क्रान्तिकारी भावना जागृत करने की आवश्यकता है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि अकर्मण्यता का वातावरण निर्मित हो जाता है और रूढ़िवादी शक्तियाँ मानव समाज को कुमार्ग पर ले जाती हैं। ये परिस्थितियाँ मानव समाज की उन्नति में गतिरोध का कारण बन जाती हैं। क्रान्ति की इस भावना से मनुष्य जाति की आत्मा स्थायी तौर ओत-प्रोत रहनी चाहिए, जिससे कि रूढ़िवादी शक्तियाँ मानव समाज की प्रगति की दौड़ में बाधा डालने को संगठित न हो सकें। यह आवश्यक है कि पुरानी व्यवस्था सदैव बदलती रहे और वह नयी व्यवस्था के लिए स्थान रिक्त करती रहे, जिससे कि यह आदर्श व्यवस्था संसार को बिगड़ने से रोक सके। यह है हमारा वह अभिप्राय जिसको हृदय में रखकर हम ‘इंक़लाब जिन्दाबाद’ का नारा बुलंद करते हैं।
(‘मॉडर्न रिव्यू’ के सम्पादक रामानंद चट्टोपाध्याय को लिखे गए भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त के पत्र से।)
आह्वान कैम्पस टाइम्स, जुलाई-सितम्बर 2005
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