जनता को गाय के नाम पर कुत्सित राजनीति नहीं बल्कि शिक्षा-स्वास्थ्य और रोज़गार चाहिए!
आह्वान संवाददाता
9 दिसम्बर को कर्नाटक विधानसभा में ‘कर्नाटक मवेशी वध रोकथाम एवं संरक्षण विधेयक-2020’ पारित कर दिया गया है। भाजपा शासित राज्यों में सरकारों के पास यही काम रह गया है कि साम्प्रदायिक नफ़रत भड़काने वाले मुद्दों को लगातार हवा देते रहना और सम्प्रदाय विशेष के उत्पीड़न की नयी-नयी तरकीबें भिड़ाते रहना। हाल ही में भाजपा शासित पाँच राज्यों में तथाकथित लव जिहाद के नाम पर क़ानून बनाने की कुत्सित योजनाओं को अमली जामा पहनाने पर भी काम चल रहा है। उत्तरप्रदेश में तो परिवारों की आपसी सहमति के बाद हुए रिश्तों, जिनमें प्रथम दृष्टया ही किसी षडयन्त्र और धर्म परिवर्तन का कोई सबूत नहीं दिखता, में भी तथाकथित लव जिहाद के एंगल तलाशे जा रहे हैं। गाय के नाम पर भी तथाकथित गौरक्षक गुण्डा गिरोह की कारगुजारियों को कौन नहीं जानता। कितने ही लोगों को मोब लिंचिंग में मार दिया गया और कितनों ही को गौ तस्करी के झूठे आरोप में मार दिया गया। गुण्डा गिरोह को तो बेगुनाहों का शिकार करने की पहले ही छूट मिली हुई थी अब पुलिस-प्रशासन को भी गैरज़रूरी नफरती अभियान में लगा दिया गया है। नफरत के जिन सौदागरों पर पुलिसिया कार्रवाई होनी चाहिए पुलिस उनके साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर काम कर रही है।
एक तरफ भाजपा गौरक्षक होने का दम भरती है तो दूसरी और चुनाव के समय बूचड़खानों के बड़े व्यापारियों से मोटा चन्दा भी वसूलती है। गोआ और केरल के चुनावी वायदों में भाजपा गौमाँस के प्रबन्धन के वायदे करती है लेकिन दूसरी ओर हिन्दू बहुल राज्यों और खासकर उत्तरभारत में वोट बैंक हेतु गाय के मुद्दे को खूब भुनाती भी है। तमाम गौशालाएँ चन्दा उगाहने की मुफ़ीद जगह और गायों के भूख से मारने के अड्डे बनी हुई हैं। आये दिन हम देखते हैं कि गौरक्षण के पीछे कैसा घिनौना खेल चल रहा है।
देश के संविधान का अनुच्छेद – 21 नागरिकों को अपनी पसन्द का खाने-पीने-रहने और जीवनसाथी चुनने का अधिकार देता है लेकिन फ़ासिस्ट रंग में रंगी भाजपा को संविधान में दर्ज जनवादी हक़ों से कोई सरोकार नहीं है। लम्बे समय से रहे-सहे अधिकारों को भी जनता से छीन लेने के प्रयास हो ही रहे हैं। संवैधानिक संस्थाओं को दन्त-नख विहीन कर दिया गया है। न्यायपालिका से लेकर विभिन्न जाँच एजेन्सियों के हालात किसी से छिपे नहीं हैं। हत्यारे और दंगाई अपने सरगनाओं की छत्र-छाया में बेलगाम होकर आपराधिक कृत्यों को सरेआम अन्जाम देते घूम रहे हैं।
देश में इस समय बेरोज़गारी, ग़रीबी, महँगाई जनता की कमर तोड़ रही हैं। सरकारें जनता की बुनियादी ज़रूरतें पूरा करने में नाकाम साबित हो रही हैं। बड़े धन्नासेठों के अच्छे दिन आ चुके हैं और जनता को गाय, लव जिहाद, घर वापसी जैसे मुद्दों में उलझाये रखने की तीन तिकड़में चल रही हैं। आज भाजपा और संघ परिवार के कुत्सित फ़ासिस्टी इरादों को नेस्तनाबूद करते हुए जनता की फ़ौलादी वर्गीय एकजुटता की पहले किसी भी समय से ज़्यादा दरकार है। फ़ासिस्ट गुण्डा गिरोह के नफरती अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को मेहनकश जनता ही एकजुट होकर काबू में कर सकती है। इसके अलावा हमारे पास कोई विकल्प भी नहीं है।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, नवम्बर 2020-फ़रवरी 2021
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