‘लव जेहाद’ के शोर के पीछे की सच्चाई
कात्यायनी
सत्ता तक पहुँचने के लिए हिन्दुत्ववादी लहर की सवारी करना और सत्तासीन होने के बाद साम्प्रदायिक तनाव के बुखार को एक निश्चित तापमान पर बनाये रखना – यह भाजपा की स्थायी रणनीति है। भाजपा की सरकारें जब राज्यों में अपनी आर्थिक नीतियों के चलते अलोकप्रिय हो जाती हैं तो साम्प्रदायिक तनाव के स्थिर तापमान को किसी न किसी उन्मादी प्रचार की लहर फैलाकर बढ़ा दिया जाता है। दूसरी बार केन्द्र में सत्तासीन होने के बाद अब भाजपा इसी नुस्खे को पूरे देश में आज़माने के लिए तैयार है।
पिछले विधानसभा उपचुनावों ने मोदी लहर में उतार के स्पष्ट संकेत दे दिये। इसके बाद महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में विधानसभा उपचुनाव होंगे और दिल्ली में भी मध्यावधि चुनावों की सम्भावना है। भाजपा को पता है कि नव उदारवादी नीतियों पर धुआँधार अमल आने वाले दिनों में आम जनता पर बेरोज़गारी, महँगाई, विस्थापन और रहे-सहे मज़दूर अधिकारों के अपहरण द्वारा जो कहर बरपा करने वाला है, वह मोदी की आसमान में कलाबाज़ी दिखाती पतंग को जल्दी ही ज़मीन पर उतार देगा। सौ दिनों के भीतर ही “अच्छे दिनों” की पतंग नीचे आने लगी है। ऐसी स्थिति में भाजपा ने साम्प्रदायिक तनाव के तापमान को सुव्यवस्थित ढंग से बढ़ाने की कोशिशें शुरू कर दी हैं। उत्तर प्रदेश को निशाने पर विशेष तौर पर सिर्फ़ इसलिए नहीं रखा गया है कि वहाँ 11 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने थे, बल्कि इसलिए भी रखा गया है कि उत्तर प्रदेश का केन्द्र में सत्तासीन रहने के लिए विशेष महत्त्व है और उत्तर प्रदेश में यदि साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण होगा तो उसका प्रभाव दिल्ली और हरियाणा पर तो पड़ेगा ही, महाराष्ट्र और जम्मू-कश्मीर (विशेषकर जम्मू् और लद्दाख) के विधानसभा चुनावों में भी उसका लाभ मिलेगा। इसीलिए पूर्वी उत्तर प्रदेश के 35 ज़िलों में अपनी कुख्यात ‘हिन्दू युवा वाहिनी’ के ज़रिये अरसे से साम्प्रदायिक उन्माद और दंगों का ख़ूनी खेल खेलते रहने वाले गोरखपुर के भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ को इस बार एकदम छुट्टा छोड़ दिया गया। विधानसभा उपचुनावों के प्रचार अभियान की कमान कलराज मिश्र और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकान्त वाजपेयी के साथ योगी आदित्यनाथ को सौंपी गयी, लेकिन योगी ही सबसे अधिक सक्रिय और मुखर रहे। योगी ने “लव जेहाद” को मुद्दा बनाकर घूम-घूमकर ज़हर उगला और पूरी भाजपा उनके सुर में सुर मिलाती। उपचुनावों में पटखनी खाने के बाद भाजपा नेता सकपकाये ज़रूर हैं और आधिकारिक तौर पर तो वे यहाँ तक कह रहे हैं कि ‘लव जेहाद’ उनके एजेण्डे में है ही नहीं। झूठ बोलना तो फासीवादियों की पुरानी फितरत है। दूसरी ओर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और संघ परिवार के तमाम सारे दूसरे संगठन ‘लव जेहाद’ का ज़हरीला प्रचार जारी रखे हुए हैं।
भाजपा झूठे आँकड़ों और तथ्यों के सहारे पहले से यह प्रचार करती रही है कि कुछ मुस्लिम संगठनों द्वारा सिखाये-पढ़ाये गये मुस्लिम युवक योजनाबद्ध ढंग से हिन्दू लड़कियों को बहलाते-फुसलाते हैं, उनसे शादी कर लेते हैं और फिर जबरन धर्मान्तरण करवा देते हैं। इसी तथाकथित मुहिम को भाजपाइयों ने ‘लव जेहाद’ का नाम दिया है। आदित्यनाथ ने “गर्जना” की है कि एक हिन्दू बालिका की जगह वे सौ मुस्लिम बालिकाओं का धर्मान्तरण करवायेंगे। वे भाषणों में और मीडिया साक्षात्कारों में बार-बार यह दुहराकर मुस्लिम आबादी को धमका रहे हैं कि “मेरे एक हाथ में यदि माला है तो दूसरे हाथ में भाला है।” साथ ही दंगों का एक नया जनसंख्या-विज्ञान प्रस्तुत करते हुए आदित्यनाथ ने फरमाया है कि मुसलमानों की आबादी जहाँ दस फ़ीसदी से ज़्यादा है, वहीं दंगे होते हैं और जहाँ 35 फ़ीसदी से ज़्यादा है, वहाँ ग़ैर-मुस्लिम क़तई सुरक्षित नहीं हैं। ज़ाहिर है कि ‘गुजरात 2002’ की जगह विकेन्द्रित रूप में जगह-जगह दंगे भड़काकर उत्तर प्रदेश में गुजरात प्रयोग का नया संस्करण रचने की परियोजना पर संघ परिवार काम शुरू कर चुका है। मुज़फ़्फ़रनगर, मुरादाबाद, सहारनपुर और मेरठ के प्रयोग को इसके लिए पूरे उत्तर प्रदेश में फैलाने के लिए गोरखपुर में अपना आतंकराज चलाने वाले, मऊ और आज़मगढ़ में दंगों की आग भड़काने के लिए कुख्यात तथा पूर्वांचल के 35 जिलों में सक्रिय फासिस्ट संगठन ‘हिन्दू युवा वाहिनी’ के सर्वेसर्वा योगी आदित्यनाथ से उपयुक्त और कोई व्यक्ति नहीं हो सकता था।
‘लव जेहाद’ का हौव्वा वास्तव में धर्मान्तरण के हौव्वे का ही अधिक उन्नत, अधिक उन्मादी और अधिक ख़तरनाक संस्करण है। इस शिगूफ़े को उछालने के पीछे की नीयत और इस झूठ को विश्वसनीय बनाने की फासिस्ट तकनीक को समझने से पहले यह जानना ज़रूरी है कि संघ परिवार और भाजपा ने अपने तमाम मिथ्या-प्रचारों और धर्मोन्माद-उत्प्रेरक तरकीबों-हिकमतों के तरकश में से चुनकर सर्वोपरि प्राथमिकता देकर ‘लव जेहाद’ के तीर को ही प्रत्यंचा पर क्यों चढ़ाया है।
सभी जानते हैं कि भाजपा नवउदारवाद के दौर के काफी पहले से (अपने पूर्वजन्म दिया वाले ‘जनसंघ’ के समय से ही) निजीकरण और उदारीकरण की नीतियों की पैरोकारी करती रही है। आज नवउदारवाद की वैश्विक लहर में, भारत की सभी बुर्जुआ पार्टियाँ निजीकरण-उदारीकरण की पक्षधर हैं। अन्तर सिर्फ़ यह है कि भाजपा एक घनघोर अनुदारवादी पार्टी होने के नाते नवउदारवादी नीतियों पर अधिकतम सम्भव गति से अमल करने की पक्षधर है, हर विरोधी आवाज़ को, हर जनान्दोलन को कुचलते हुए तथा सभी श्रम-अधिकारों एवं जनवादी अधिकारों पर पाटा चलाते हुए अमल करने की पक्षधर है। इन आर्थिक नीतियों में प्रत्यक्षतया कोई लोकरंजक आकर्षण नहीं हो सकता, लेकिन मतपत्रें की ठगी के लिए इन नीतियों के सुनहरे सपनों की सुन्दर आकर्षक पैकेजिंग करके ज़रूर पेश किया जा सकता है। सौ स्मार्ट सिटी बनाकर, बुलेट ट्रेन चलाकर, काला धन वापस लाकर, सामरिक शक्ति बढ़ाकर देश को समृद्धि के शिखर पर पहुँचा देने का वायदा करके नरेन्द्र मोदी यह काम कर चुके हैं। समस्या यह है कि सत्तासीन होकर इन नीतियों पर अमल शुरू होते ही सुनहरे सपनों की आकर्षक पैकेजिंग बहुत जल्दी बदरंग होकर चीथड़े में तब्दील हो जानी है (और यह शुरू भी हो चुका है)। आर्थिक तरक़्क़ी के मोदी के वायदे जल्दी ही अपना सारा आकर्षण खो देंगे। तब फिर संघ परिवार और भाजपा के पास अगले पाँच वर्षों के दौरान होने वाले कई विधानसभा चुनावों में और पाँच वर्षों बाद होने वाले लोकसभा चुनावों में अपना वोट बैंक बचाने के लिए पुराने हिन्दुत्ववादी विभाजनकारी नारों, नुस्खों और चालों को आज़माने के अतिरिक्ति और कोई विकल्प नहीं बचेगा। हालात ऐसे हैं कि सौ दिनों के भीतर ही बैलून पिचकता हुआ नीचे उतरने लगा है, इसलिए चिन्तित-विचलित भाजपाइयों को साम्प्रदायिक तनाव और उन्माद भड़काने की वे तमाम तिकड़में अभी से करनी पड़ रही हैं, जो वे कुछ समय बाद करने की सोचते थे।
हिन्दुत्व के नारे उछालकर साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के चिर-परिचित भाजपाई नुस्खे ये हैं: रामजन्म भूमि का मसला, संविधान से धारा 370 हटाने का मुद्दा, मुस्लिम आतंकवाद का मुद्दा और धर्मान्तरण का मुद्दा। रामजन्मभूमि का मसला अब ऐसी काठ की हाँड़ी हो चुका है, जिसे फिर से आँच पर रखना मुश्किल है। दूसरे, यह मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है और जब केन्द्र में अपनी ही सरकार हो तो भाजपाई मन्दिर-निर्माण के लिए क़ानून बनाने की बात करके फ़िलहाल अपनी ही सरकार के लिए संकट नहीं पैदा करना चाहते क्योंकि ऐसा करने के दूरगामी परिणाम न तो उनके हित में होंगे, न ही भारतीय पूँजीपति वर्ग और साम्राज्यवादी इस मामले को अन्तिम परिणति तक पहुँचाने की इजाज़त देने और उसका ख़ामियाजा भुगतने के लिए अभी तैयार है। रही बात धारा 370 की, तो भाजपा बख़ूबी जानती है कि वह इसे हटा नहीं सकती। यदि वह ऐसा वायदा करती है, तो इससे न तो जम्मू-कश्मीर में उसे लाभ होगा, न ही व्यापक जनता के लिए यह इतना ज्वलन्त प्रश्न है कि आगामी उपचुनावों में इससे अपने पक्ष में कोई लहर पैदा की जा सके। तीसरा मुद्दा मुस्लिम आतंकवाद का है, जो प्रभावी बनता नहीं दीखता क्योंकि हाल के वर्षों में भारत में यह परिघटना उतार पर रही है (संसद पर हमले या मुम्बई-पुणे जैसी घटनाएँ नहीं घटी हैं)। दूसरे, मुस्लिम आतंकवाद के नाम पर आम लोगों को प्रताड़ित करने की बहुतेरी घटनाएँ प्रमाणित होकर सामने आयी हैं। तीसरे, मुस्लिम आतंकवाद की देशी-विदेशी अभिव्यक्तियों के विरुद्ध आम मुस्लिम आबादी के बीच से विरोध के स्वर मुखर होकर सामने आये हैं। चौथे, साध्वी प्रज्ञा, असीमानन्द और कर्नल पुरोहित आदि के मामलों के उदाहरणों से हिन्दुत्ववादी आतंकवाद की संगठित साज़िशों के उजागर होने से भी एकतरफ़ा ढंग से इस मामले को तूल देकर केन्द्रीय मुद्दा बनाना मुश्किल लग रहा था। फिर बच जाता था धर्मान्तरण का मामला। संघ परिवार और उसके अनुषंगी संगठन तृणमूल स्तर पर अपने मुस्लिम-विरोधी और ईसाई-विरोधी प्रचार कार्य के दौरान इस मसले को लगातार ज़िन्दा बनाये रखते हैं। यह बात कई समाज विज्ञानी विस्तृत तथ्यों सहित प्रमाणित कर चुके हैं कि किस तरह आर.एस.एस. के विचारक मुस्लिम आबादी की सापेक्षिक वृद्धि दर के अधिक होने के जालसाज़ी भरे आँकड़े प्रस्तुत करके 2040 तक भारत के मुस्लिम बहुल देश हो जाने का हौव्वा खड़ा करते समय मुस्लिमों में बहुविवाह और धर्मान्तरण के बारे में भी सरासर झूठे तथ्य प्रस्तुत करते हैं। हिन्दुत्ववादी प्रचारक प्रायः किसी एक इलाक़े में धर्मान्तरण की घटनाओं की अफ़वाह योजनाबद्ध ढंग से फैला देते हैं और फिर साम्प्रदायिक तनाव और दंगे भड़काने में कामयाब हो जाते हैं। योगी आदित्यनाथ भी इस गोयबेल्सी हुनर के पुराने माहिर उस्ताद हैं।
‘लव जेहाद’ का हौव्वा धर्मान्तरण के पुराने हौव्वे का ही एक उन्नत और ज़्यादा ख़तरनाक संस्करण है। यह धर्मान्तरण के साथ हिन्दू स्त्रियों को “पथभ्रष्ट” बनाकर मुस्लिम सन्तानों की माँ बनाने की “साज़िश” को जोड़ देता है। पारम्परिक रूढ़िवादी आम हिन्दू जनमानस को तब यह कहकर भड़काना और आसान हो जाता है कि यह सिर्फ़ धर्म की रक्षा का ही सवाल नहीं है, बल्कि “घर की इज़्ज़त” का मामला है।
उल्लेनखनीय है कि मुज़फ़्फ़रनगर में किसी मुस्लिम लड़के द्वारा हिन्दू लड़की को छेड़ने की घटना से विवाद की शुरुआत बाद में विशुद्ध अफ़वाह सिद्ध हुई, जिसे संगठित ढंग से रातों-रात पूरे इलाक़े में फैलाकर संघ परिवार दंगा भड़काने में कामयाब हुआ था। झगड़े की शुरुआत वास्तव में दो लोगों की मोटरसाइकिलें टकराने से हुई थी। अभी राँची की तारा शाहदेव और रकीबुल हसन उर्फ रंजीत कोहली के मामले को काफी तूल दिया गया। रकीबुल उर्फ रंजीत नेताओं-नौकरशाहों से घनिष्ठता रखने वाला एक दलाल धन्धेबाज़ है, यह तय है। हो सकता है तारा शाहदेव से प्रेम विवाह के बाद उनके रिश्तों में दरार और टूटन का यह भी एक कारण हो। तारा शाहदेव ने पहले तो विवाद की गर्मी में जबरिया धर्मान्तरण के दबाव का आरोप लगाया, लेकिन बाद में वह स्वयं इससे मुकर गयी और उसने उन लोगों की कड़ी आलोचना भी की, जो इसे हिन्दू बनाम मुसलमान का सवाल बना रहे हैं। यह मामला केवल एक विफल प्रेम विवाह और पारिवारिक हिंसा का है और साथ ही, अब रंजीत उर्फ रकीबुल के कथित काले धन्धों का भी है।
‘लव जेहाद’ के तथ्य गढ़ने की “तकनीक” क्या होती है – इसे आसानी से समझा जा सकता है। यदि पूरे देश के आँकड़े जुटाये जायें तो वैवाहिक जीवन में स्त्रियों की प्रताड़ना एवं अलगाव तथा प्रेम में धोखा देने की लाखों घटनाएँ मिलेंगी। इनमें से उन अन्तर-धार्मिक प्रेम विवाहों और प्रेम प्रसंगों को छाँट लिया जाये जिनमें पति/प्रेमी मुस्लिम हों और पत्नी/प्रेमिका हिन्दू। विवाद की गर्मी में पत्नी/प्रेमिका की ओर से स्वयं या किसी प्रेरणा-सुझाव के वशीभूत होकर कोई भी आरोप लगाया जा सकता है, जिसमें धर्मान्तरण का आरोप भी शामिल हो सकता है। हो सकता है कुछ मामलों में धर्मान्तरण के दबाव का आरोप सच भी हो, लेकिन मात्र इस आधार पर यह भयंकर नतीजा कत्तई नहीं निकाला जा सकता कि संगठित तरीक़े से कुछ मुस्लिम संगठन मुस्लिम युवाओं को तैयार करके हिन्दू युवतियों को बहला-फुसलाकर प्रेमजाल में फँसाने की मुहिम चला रहे हैं। यह बता पाना मुश्किल है कि इस प्रकार “बहलाने या फुसलाने” में हिन्दू युवकों की संख्या अधिक है या मुस्लिम युवकों की। इसी प्रकार संघ परिवार के फासिस्ट यह भी दावे के साथ नहीं कह सकते कि अन्तरधार्मिक दम्पतियों में हिन्दू पति-मुस्लिम पति वाले जोड़ों की संख्या अधिक है या मुस्लिम पति-हिन्दू पत्नी वाले जोड़ों की संख्या अधिक है।
यह दिलचस्प है कि संघ परिवार आज तक किन्हीं मुस्लिम संगठनों द्वारा संगठित ढंग से ‘लव जेहाद’ चलाने का एक भी प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर पाया। बहुत कोशिशों के बाद, अब तक मीडिया के सामने वे कुल आठ-दस ऐसी मुँह पर काला कपड़ा बाँधे लड़कियों को ही पेश कर सके जिन्होंने बताया कि धर्म छुपाकर उन्हें किसी मुस्लिम ने प्रेमजाल में फँसाया या शादी के बाद जबरिया धर्मान्तरण का दबाव बनाया। हालाँकि इन साक्ष्यों की प्रामाणिकता को भी जानने का कोई तरीक़ा नहीं है, लेकिन इन्हें सच भी मान लें तो इनके आधार पर ‘लव जेहाद’ जैसे किसी संगठित अभियान का वजूद में होना कत्तई साबित नहीं होता। तथ्य बस यही है कि विभिन्न चैनलों पर उपस्थित संघ परिवार के प्रवक्ताओं और सोशल मीडिया पर लगातार यह बात की जाती रहती है कि कुछ मुस्लिम युवक हाथ में कलावे बाँधकर बाइक लिये हिन्दू बहुल मुहल्लों और सार्वजनिक स्थानों पर हिन्दू लड़कियों को बहलाने-फुसलाने के लिए घूमते रहते हैं। गोयबेल्सों की जारज औलादों को तथ्यों और प्रमाणों से भला क्या लेना-देना! वे अपने पिताजी की इस सीख पर अमल करते हैं कि एक झूठ को यदि सौ बार दुहराया जाये तो वह सच लगने लगेगा।
संघ परिवार के हिन्दुत्ववादी फासिस्टों ने जितना मुसोलिनी से सीखा है, उतना ही हिटलर से भी सीखा है। हिटलर ने अपनी आत्मकथा ‘माइन कैम्फ’ में आर्य रक्त की शुद्धता के प्रति गहरी चिन्ता बार-बार प्रकट की है। यहूदियों के बारे में उसने लिखा है: “ये गन्दे और कुटिल लोग मासूम ईसाई लड़कियों को बहला-फुसलाकर, उनको अपने प्रेम के जाल में फँसाकर उनका ख़ून गन्दा किया करते हैं।” इतिहासकार विलियम एल-शिरर ने अपनी पुस्तक ‘द राइज़ एण्ड फ़ॉल ऑफ थर्ड राइख’ में हिटलर के यहूदी-विरोध की पूरी मानसिकता की संरचना और फासिस्ट मानस में गहराई तक पैठी रुग्ण यौन-मनोग्रन्थियों की तफ़सील से पड़ताल की है। फासिस्ट राजनीति संकटग्रस्त पूँजीवाद की ज़रूरत है, इसलिए वह उसे अपनाता है। फासिस्ट राजनीति के वाहक रुग्ण पूँजीवादी सामाजिक ज़मीन से पैदा हुए वे रुग्ण मानस लोग होते हैं, जो जनवाद और तर्कणा के घोर विरोधी होने के कारण नस्ली-धार्मिक संकीर्णता और निरंकुश स्त्री-विरोधी मानसिकता से ग्रस्त होते हैं। वे एक विरूपित मिथ्याभासी चेतना के शिकार होते हैं और अपने विचारों का प्रचार करते-करते “विधर्मियों” नास्तिकों और स्त्रियों के प्रति ‘ऑटोसजेस्टिव’ तरीक़े से स्वयं को ज़्यादा से ज़्यादा नफ़रत से लबरेज़ करते चले जाते हैं। ऐसे फासिस्ट ‘लव जेहाद’ का हौव्वा खड़ा करके दूसरे धर्मावलम्बी ‘अन्य’ के ख़िलाफ़ और आज़ाद स्त्री रूपी ‘अन्य’ के ख़िलाफ़ जब कोई मुहिम चलाते हैं तो उनके राजनीतिक- सामूहिक हित की पूर्ति के साथ ही व्यक्तिगत स्तर पर उन्हें गहन सन्तोष और आत्मिक आनन्द मिलता है।
‘लव जेहाद’ का हौव्वा एक ऐसा मुद्दा है जो धर्मान्तरण का हौव्वा खड़ा करके मुस्लिमों को ‘सॉफ़्ट टारगेट’ बनाने के साथ ही स्त्रियों की आज़ादी को भी ‘सॉफ़्ट टारगेट’ बनाने का हिन्दुत्ववादियों को सुनहरा अवसर देता है। इसके नाम पर हिन्दू् लड़कियों को अन्तरधार्मिक प्रेम और विवाह करने से भी आतंकित करके रोकना सुगम होगा। सार्वजनिक स्थानों पर प्रेमी जोड़ों के बैठने, वैलेण्टाइन डे मनाने, आधुनिक कपड़े पहनने आदि को मुद्दा बनाकर हिन्दुत्ववादी गुण्डा वाहिनियाँ स्त्रियों की आज़ादी और अपने बारे में फ़ैसले लेने के अधिकार पर हमले करती रही हैं। फासिस्टों के लिए स्त्रियाँ स्वतन्त्र निर्णय लेने में सक्षम नागरिक नहीं होतीं, वे “घर की इज़्ज़त” होती हैं, जिनकी हिफ़ाज़त की ज़िम्मेदारी मर्दों की होती है। स्त्री यदि स्वयं निर्णय ले, प्रेम करे, अपना जीवन साथी स्वयं चुन ले, “बेशर्मी” वाले कपड़े पहने तो यह धर्म की हानि है, पुरुष प्रतिष्ठा की हानि है। और यदि वह किसी “विधर्मी” से प्रेम और विवाह करे तब तो धर्म की, संस्कृति की, राष्ट्र की और पुरुष प्रतिष्ठान की घोर हानि है – यही मानक फासिस्ट सोच होती है। इसी मानक सोच से प्रेरित फासिस्ट बहुत मन से “विधर्मियों” और आज़ाद स्त्रियों को सबक सिखाने के लिए बढ़-चढ़कर ‘लव जेहाद’ का शोर मचा रहे हैं, हालाँकि इस पूरे शोर का मूल प्रेरक तत्व यह है कि आज की परिस्थिति में धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण करके अपनी राजनीतिक गोट लाल करने के लिए यही हौव्वा खड़ा करना हिन्दुत्ववादी फासिस्टों के लिए सबसे मुफ़ीद है।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, जुलाई-अगस्त 2014
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