तुम राम भजो, हम राज करें।

नवीन, करावल नगर, दिल्ली

अपने अधिनायकत्व को मज़बूत बनाने के लिए कोई भी शासक वर्ग जनमानस के अन्दर अपने दर्शन को स्थापित करता है। अपने दर्शन को जनता की सभ्यता संस्कृति बताकर इसमें कोई भी बदलाव जनमानस की जिन्दगी और उसके आस्था पर हमला बताया जाता है। दास व्यवस्था में दास-स्वामी वर्ग ने यह भ्रान्ति फैलायी कि मानसिक श्रम करने वाले शासन करते हैं ताकि वह शारीरिक श्रम करने वालों पर शासन का डण्डा आसानी से चला सके जो अभी भी जारी है। भारत में भी कुछ ऐसी ही व्यवस्था आयी थी जिसमें समाज को चार वर्णों में बाँट दिया गया था – बाह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। शूद्र को बता दिया गया था कि ऊपर के तीन वर्णों की सेवा करना उसका धर्म है। दास समाज से सामन्ती समाज के परिवर्तनों के दौर में दास समाज के प्रतिक्रियावादी लोगों ने सामाजिक सुधार का पुरजोर विरोध किया और दास व्यवस्था की पुनस्थार्पना की वकालत की। इसी प्रकार सामन्ती समाज के प्रतिक्रियावादी लोगों ने भी पूँजीवादी समाज के दर्शन को जनता की आस्था और जिन्दगी पर हमला बताकर इसका पुरजोर विरोध किया। आज भी जब कोई समाज परिवर्तन और वैज्ञानिक समाज की बात करे तो इस व्यवस्था के तमाम प्रतिक्रियावादी तत्व उठ खड़े होते हैं।

भारत में इस तरह के अन्धविश्वास, पोंगापन्थ और धर्म की जड़ें और भी गहरी हैं और इन्होंने हमेशा से शासक वर्ग को मज़बूती प्रदान की है। देश के कई हिस्सों में ज़मींदारों ने अपनी ज़ागीर बचाने के लिए बड़े पैमाने पर देवी-देवताओं का सहारा लिया। राम, जानकी, कृष्ण, हनुमान, शिव आदि के नाम पर लगान मुक्त भूमि पहले किसी वर्ष दिखलाकर ज़मीन हड़प ली गयी। इसी तरह सत्तर के दशक में शुरू हुआ किसानों के विद्रोह को, जिसे नक्सलबाड़ी आन्दोलन के नाम से जाना जाता है, सरकार ने कुचलने के लिए कई तरीके अपनाये। एक तरफ जहाँ पुलिस-फौज का सहारा लिया गया, वहीं ऐसा विद्रोह फिर से न हो और इसकी आग दूसरे इलाकों में न फैल सके, बहुत से आध्यात्मिक बाबाओं को प्रोत्साहन दिया गया। ग़रीब किसान और मज़दूरों को इन बाबाओं ने उनकी नर्कपूर्ण जिन्दगी के लिए व्यवस्था और सरकार को दोषी न बताकर कर्म का फल, किसी की बुरी नज़र, ग्रह-नक्षत्र का दोष, ईश्वर की उपासना न करना आदि-आदि को कारण बताया।

आज भारत में हर छोटे-बड़े शहर में आश्रमों, मन्दिरों और मठों में बाबा अपने चेले-चपाटों के साथ ऐश कर रहे हैं। सार्वजनिक भूमि हथियाने, काले धन को सफेद धन में बदलने से लेकर अनेकों किस्म के अपराध इनके परिसरों में चलते रहते हैं। हाल में ही इच्छाधारी बाबा उर्फ शिवमूरत द्विवेदी नामक व्यक्ति द्वारा चलाये जा रहे वेश्यावृत्ति के बड़े रैकट का पर्दाफाश हुआ था। एक टीवी चैनल द्वारा सि्ंटग ऑपरेशन में बड़े-बड़े बाबाओं का खुलासा किया गया। लाखों भक्तों वाले आसाराम बापू ने एक ऐसी महिला को शरण देने का वादा किया जो अमेरिका से गबन करके भागी थी। सुधांशु महाराज को पैसों की हेराफेरी करते दिखाया गया था। इस तरह के सैकड़ों बाबाओं के कारनामे आयेदिन उजागर होते रहते हैं। वस्तुतः धर्म और अन्धविश्वास का कारोबार बहुत फायदे का है बशर्ते चतुराई और धूर्तता के साथ किया जाये, जिसमें जनसमुदाय को फँसाया जा सके। राज्यसत्ता के लोग भी इन आध्यात्मिक बाबाओं को भरपूर मदद करते रहते हैं और धर्म और अन्धविश्वास के प्रति गहरी आस्था दिखाते हैं। अब मुख्यमन्त्री येदियुरप्पा को लीजिये। अपनी सरकार बचाने के लिए जहाँ विभिन्न मन्दिरों में पूजा-अर्चना की, दुष्ट आत्माओं से रक्षा के लिए एक पुजारी से प्राप्त ताबीज धारण किया, वहीं किसी तान्त्रिक के कहने पर विधानसभा का पूर्वी फाटक बन्द करा दिया और मुख्य द्वार पर लिख दिया गया ‘सरकार का काम ईश्वर का काम है’! वसुन्धरा राजे सरकार ने मुहूर्त देखकर शपथ ग्रहण किया था और उस अवसर पर अनेक सन्त-महात्मा मंच पर आसीन हुए थे। ऐसा ही उमा भारती ने पुलिस में व्याप्त असुरक्षा बोध को दूर करने के लिए महामृत्युंजय जाप कराया था। ऐसा सिर्फ भाजपा शासित प्रदेशों में नहीं होता है, बल्कि दूसरे नेतागण भी कुछ कम नहीं हैं। जयललिता चुनाव प्रचार के समय रोज़़ अपनी गाड़ी से कद्दू कुचलकर घर से बाहर निकलती थीं। लालू प्रसाद ने नीतीश पर आरोप लगाया था कि उन्होंने राजद को हराने के लिए टोना-टोटका कराया है।

Babas_like_Ramdev

एक दमनकारी राज्यसत्ता को चलाने के लिए यह ज़रूरी है कि वे तमाम लोग, जिनका इस व्यवस्था में स्वर्ग है, एक ऐसे दर्शन का प्रचार करें ताकि जनता की सोचने-समझने की शक्ति को ख़त्म किया जा सके। बड़े-बड़े राजनेता से लेकर फिल्मी एक्टर, वैज्ञानिक, प्रोफेसर, डॉक्टर, इंजीनियर आदि जो करोड़ों की कमाई कर रहे हैं, ऐसे दर्शन का ख़ूब प्रचार करते दिख जायेंगे। शोषणकारी पूँजीवादी राज्यसत्ता अपने तमाम सत्ता-संस्थानों द्वारा चाहे वह शिक्षा केन्द्र हो, न्यायालय व संविधान हों अथवा तथाकथित लोकतन्त्र के चौथे स्तम्भ मीडिया का टी-वी, रेडियो, अख़बार हो – चारों तरफ कूपमण्डूकता, अन्धविश्वास, अवैज्ञानिकता फैलाते हैं। भारत की एक तिहाई आबादी यानी 35 करोड़ लोगों को प्रायः भूखे सोना पड़ता है, प्रतिदिन 9 हज़ार से ज़्यादा बच्चे भूख और कुपोषण से मरते हैं; दूसरी तरफ गोदामों में लाखों टन अनाज सड़ता रहता है। एक तरफ बहुसंख्यक लोग 20 रुपये पर जीते हैं, दूसरी तरफ कुछ लोग मिनटों में करोड़ रुपये कमाते हैं। ज़ाहिर है भुखमरी, बदहाली, बेरोज़गारी, महँगाई से परेशान जनता को अगर यह स्पष्ट हो जाये कि सभी समस्याओं का कारण मौजूदा व्यवस्था है तो राज्यसत्ता के लिए बड़ा ख़तरा हो सकता है। तमाम अन्धविश्वास, कूपमण्डूकता, तन्त्र-मन्त्र, ग्रह-नक्षत्र, ज्योतिष, ईश्वर की आराधना आदि को फैलाने का एक ही मकसद है – ‘’तुम राम भजो हम राज करें’‘।

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान,नवम्‍बर-दिसम्‍बर 2010

 

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