गोरखपुर में आन्दोलनरत मज़दूरों पर मालिकों का क़ातिलाना हमला

गोरखपुर में पिछले करीब 3 साल से गोरखपुर औद्योगिक विकास क्षेत्र (गीडा) के अन्तर्गत आने वाली फैक्टरियों के मज़दूर श्रम कानूनों को लागू कराने सम्बधी अपनी माँगों को लेकर संघर्षरत हैं। ‘बिगुल मज़दूर दस्ता’ के नेतृत्व में ये मज़दूर अपनी ट्रेडयूनियन बनाने के साथ-साथ लगातार राजनीतिक शिक्षा-दीक्षा भी ग्रहण कर रहे हैं। इसी के अन्तर्गत 1 मई, यानी 125वें मज़दूर दिवस के अवसर पर गोरखपुर से करीब 2000 मज़दूर, मज़दूर माँगपत्रक आन्दोलन के पहले चरण की समाप्ति के मौके पर दिल्ली के जन्तर-मन्तर पर इकट्ठा हुए थे। ज्ञात हो कि मज़दूर माँगपत्रक आन्दोलन के पहले चरण की समाप्ति के अवसर पर देशभर से करीब 8000 मज़दूर मई दिवस के मौके पर अपनी 26 सूत्री माँगों के माँगपत्रक को लेकर संसद पर दस्तक देने पहँचे थे।

गोरखपुर जैसे शहर के लिए, जो देश के बडे़ औद्योगिक केन्द्रो में नहीं आता, और राजनीतिक सरगमियों के लिहाज़ से एक पिछड़ा हुआ शहर माना जाता है, यह एक बड़ी घटना थी कि वहाँ से करीब 2000 मज़दूर इकट्ठा होकर देश की राजधानी पहुंच जायें। इस इलाके के फैक्टरी मालिकों के शब्दों में कहें तो इससे मज़दूरों का ‘’मन बढ़ जायेगा”। इसी डर के चलते फैक्टरी मालिक विशेषकर अंकुर उद्योग लिमिटेड और वी एन डायर्स लिमिटेड, स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर लगातार मज़दूरों को इस देशव्यापी प्रदर्शन में शामिल होने से रोकने का प्रयास कर रहे थे। इन सब कोशिशों को धता बताते हुए जब मज़दूर बड़ी संख्या में इकट्ठा होकर दिल्ली चले गये तो मालिकों ने उन्हें ‘सबक सिखाने’ का तय किया। फलस्वरूप 3 मई, 2011 को अंकुर उद्योग लिमिटेड से करीब 18 मज़दूरों को बिना कोई कारण बताये फैक्टरी से निकालने का नोटिस थमा दिया गया। इस पर मज़दूर फैक्टरी के बाहर विरोध ज़ाहिर करने के लिए इकट्ठा होने लगे। मालिकों को यह पहले से ही पता था, और इसीलिए प्रदीप सिंह नामक एक हिस्ट्रीशीटर को तीन अन्य गुण्डों के साथ मौका-ए-वारदात पर बुला रखा था। धरना-प्रदर्शन और नारेबाज़ी शुरू होते ही इन गुण्डो ने फैक्टरी की छत पर चढ़कर निहत्थे मज़दूरों पर फायरिंग शुरू कर दी, जिसमें 19 मज़दूर घायल हो गये। मज़दूरों ने करीब 4 घण्टे तक गुण्डों और उनके सरगना प्रदीप सिंह को फैक्टरी से बाहर नहीं निकलने दिया। पुलिस के हस्तक्षेप करने और यह आश्वासन देने के बाद कि गुण्डों पर तत्काल कार्यवाही की जायेगी, उन्हें मज़दूरों की गिरफ्त से छुड़ाया जा सका। लेकिन जैसा कि हर इस तरह के मामले में होता है, गुण्डों के खि़लाफ कुछ बेहद मामूली मुकदमे दर्ज करने क बाद उन्हें आज तक गिरफ्तार नहीं किया गया है। उल्टे पूरे प्रशासन ने एकदम नंगे तौर पर मालिकों का पक्ष लेते हुए मज़दूरों पर फर्जी मुकदमे दर्ज कर दिये।

दरअसल, पिछले 2 साल से जब से मज़दूरों ने संगठित होकर एक संघर्ष की शुरुआत की है, तब से ही इलाके के फैक्टरी मालिकों से लेकर स्थानीय प्रशासन और गोरखपुर के कुख्यात सांसद योगी आदित्यनाथ की नींद उड़ गयी है। लेकिन यह कोई अप्रत्याशित परिघटना नहीं है, बल्कि दुनियाभर में कहीं भी मज़दूरों के संगठित होने के साथ ही वर्ग-ध्रुवीकरण की प्रक्रिया तेज़ हो जाती है। यही कारण है कि लम्बे समय से फैक्टरी मालिक-प्रशासन-पुलिसतन्त्र का गठजोड़़ पूरे इलाके में मज़दूरो को संगठित करने वाली नेतृत्वकारी ताकतों को कभी ‘’माओवादी” कहकर तो कभी ‘’बाहरी तत्व” कहकर बदनाम करने का प्रयास कर रहा है। योगी आदित्यनाथ के शब्दों में तो यह पूरा आन्दोलन ‘’चर्च के पैसे” से चल रहा है। दो साल पहले बाकायदा तीन मज़दूर कार्यकर्ताओं को फर्जी मुकदमों में फँसाकर जेल के भीतर बुरी तरह पीटा गया था और उन्हें बाकायदा एनकाउण्टर करने की तैयारी चल रही थी। इस दौरान देशव्यापी स्तर पर बुद्धिजीवियों, संस्कृतिकर्मियों और मानवाधिकार कर्मियों के संयुक्त प्रयास और हज़ारों मज़दूरों की एकजुटता के दम पर प्रशासन को फर्जी मुकदमे वापस लेने और मज़दूर कार्यकर्ताओं को बाइज़्ज़्त बरी करने के लिए मजबूर होना पड़ा था। इस घटनाक्रम के बाद मज़दूरों का मनोबल टूटने के बजाय और बढ़ गया और संगठन के दायरे के भीतर मज़दूरों की बड़ी आबादी शामिल हो गयी है।

3 मई, 2011 को हुए गोलीकाण्ड के बाद एक बार फिर से देशव्यापी स्तर पर बुद्धिजीवियों-संस्कृतिकर्मियों और मानवाधिकार कर्मियों का संयुक्त प्रतिरोध शुरू हो गया। 5 मई 2011 को दिल्ली में उत्तर प्रदेश भवन पर बड़ी संख्या में बु‍द्धिजीवियों और संस्कृतिकर्मियों ने इकट्ठा होकर धरना प्रदर्शन किया। विभिन्न मानवधिकार संगठन जैसे पीपुल्स युनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (पी.यू.डी.आर.), पीपुल्स यूनियन फॉर सिविहल लिब्रटीज़ (पी.यू.सी.एल.), पीपुल्स यूनियन फॉर ह्यूमन राइट्स (पी.यू.एच.आर.) ने पूरी घटना की निन्दा करते हुए अपनी जाँच टीमें गोरखपुर शहर भेजने की घोषणा कर दी। मुख्यमन्त्री मायावती से लेकर प्रदेश के राज्यपाल श्री बी.एल. जोशी और गोरखपुर के स्थानीय प्रशासन के नाम दिल्ली, लखनऊ, इलाहाबाद, पंजाब, बम्बई से फ़ोन, फैक्स, ई-मेल और डाक के माध्यम से पूरे घटनाक्रम की निन्दा करते और प्रशासन से मज़दूरों के पक्ष में उचित हस्तक्षेप की माँग को लेकर ज्ञापनों की झड़ी लग गयी। पूरे घटनाक्रम के सन्दर्भ में एक ‘आनलॉइन पिटीशन’ जारी की गयी, जिसमें देश-विदेश से लोगों ने हस्ताक्षर कर मुख्यमन्त्री महोदया से उचित हस्तक्षेप की माँग की। मालिकों ने मज़दूरों का मनोबल तोड़ने के लिए अंकुर उद्योग लिमिटेड और वी.एन. डायर्स लिमिटेड की दो फैक्टरियों में तालाबन्दी की घोषणा कर दी। मज़दूरों ने अपने हथियार डालने के बजाय अपना संघर्ष और तेज़ कर दिया। 8 मई से मज़दूरों ने अपनी माँगों को लेकर मज़दूर सत्याग्रह की शुरुआत कर दी। पुलिस प्रशासन ने लाठीचार्ज से लेकर, आँसू-गैस छोड़ने ओर मज़दूरों को धमकाकर इस सत्याग्रह में शामिल होने से रोकने का प्रयास किया, जिसका एक बार फिर गोरखपुर, लखनऊ, दिल्ली, इलाहाबाद, पंजाब के बुद्धिजीवियों और संस्कृतिकर्मियों ने पुरज़ोर विरोध किया।

अन्ततः 9 मई को थक हारकर मालिकों को वार्ता की मेज पर आना पड़ा। स्थानीय प्रशासन भी अब एकतरफा कार्यवाई के मद्देनज़र देशव्यापी स्तर पर जारी विरोध की आँच को महसूस करने लगा था, और फिलहाल पूरे मामले को ठण्डा करने के मूड में था। 9 मई को उप श्रमायुक्त कार्यालय में मज़दूरों और मालिकों के बीच हुई वार्ता के बाद मज़दूरों को आंशिक सफलता प्राप्त हुई। अंकुर उद्योग लिमिटेड़ फैक्टरी को दोबारा शुरू कर दिया गया और उससे निकाले गये 18 मज़दूरों को काम पर वापस रख लिया गया है। इसके अलावा मज़दूर अपनी अन्य माँगों – पूरे मामले की न्यायिक जाँच कराना, वी.एन. डायर्स लिमिटेड की दोनों फैक्टरियों को दोबारा शुरू करना और उनसे निकाले गये 18 मज़दूरों को वापस काम पर लेना, प्रदीप सिंह समेत गोलीकाण्ड के तीनों अभियुक्तों को तत्काल गिरफ्तार करना, और गोलीकाण्ड में घायल मज़दूरों को उचित मुआवज़ा दिलाना को लेकर संघर्षरत है।

यह रिपोर्ट लिखे जाने तक मज़दूरों द्वारा शुरू किये गये सत्याग्रह को फिलहाल स्थगित कर दिया गया है। गीडा औद्योगिक क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाली विभिन्न फैक्टरियों के मज़दूरों ने भी इस संघर्ष में शमिल होने की घोषणा कर दी है। पूरे मामले को लेकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका दायर करने की तैयारी चल रही है, और यह उम्मीद की जा सकती है कि मज़दूरों की फौलादी एकजुटता पूरे देश के मज़दूर आन्दोलन में छाये हुए गतिरोध को तोड़ने में एक मील का पत्थर साबित होगी।

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, मार्च-अप्रैल 2011

 

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