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‘‘आनर किलिंग’’- सम्मान के नाम पर हत्या या सम्मान के साथ ना जीने देने का जुनून

दरअसल ‘‘सम्मान’’ के नाम पर हत्याओं की यह अमानवीय परिघटना उन्हीं देशों में अधिक है जहाँ बिना किसी जनवादी क्रान्ति के, धीमे सुधारों की क्रमिक प्रक्रिया के जरिये पूँजीवादी विकास हुआ है। इन देशों में पूँजीवादी उत्पादन सम्बन्ध तो कायम हुए हैं, लेकिन यह पूँजीवाद यूरोपीय देशों की तरह यहां जनवादी मूल्य लेकर नहीं आया। सामाजिक-सांस्कृतिक धरातल पर आज भी यहाँ सामन्ती मूल्यों की जकड़ बेहद मजबूत है। इन देशों (भारत भी इनमें से एक है) के सामाजिक-सांस्कृतिक ताने-बाने में गैरजनवादी मूल्य गहरे रचे-बसे हैं। इसी कारण यहां व्यक्तिगत आज़ादी और निजता जैसी अवधारणाओं के लिए कोई जगह नहीं है। व्यक्ति के जीवन के हर फैसले में समाज दखल देता है चाहे वह प्रेम का सवाल हो, शादी का, रोजगार का या कोई अन्य।