चुनाव मैच रेफ़री की किसने सुनी!
जनता के सामने एकदम ‘सजग व सक्रिय’ दिखने का ढोंग करने वाला चुनाव आयोग प्रतिबन्धित क्षेत्रों में चुनाव सामग्री बँटवाने, मतदाताओं को पैसा व शराब बँटवाने, समुदाय विशेष के ख़िलाफ़ बयान देने, धार्मिक उन्माद फैलाने व आदर्श चुनाव आचार संहिता का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन करने आदि को रोक तो नहीं पाया (वैसे रोकने की इनकी कोई चाहत भी नहीं थी), हाँ, लेकिन हाथ में आदर्श चुनाव आचार संहिता का दिखावटी चाबुक लिये आयोग तमाम चुनावबाज़ पार्टियों के नेताओं को आचार संहिता के उल्लंघन पर नोटिस देता ज़रूर नज़र आया। जैसाकि इस बार अमित शाह, वसुन्धरा राजे व आजम खाँ के भड़काऊ भाषणों पर नोटिस हो या ममता बनर्जी का आयोग की बात न मानने पर नोटिस हो आदि। ये नोटिस चुनाव आयोग के दफ़्तर से अपना सफ़र शुरु करते हैं और इन नेताओं के कचरे के डिब्बे में ख़त्म! यही इनकी मंज़िल होती ही है। अगर एक-दो कार्रवाई की भी जाती है तो वह भी ज़रूरी है वरना जनता के सामने इन चुनावों को “स्वतन्त्र व निष्पक्ष” कैसे घोषित किया जायेगा।