केदारनाथ अग्रवाल की कुछ कविताएँ
जो जीवन की धूल चाटकर बड़ा हुआ है,
तूफ़ानों से लड़ा और फिर खड़ा हुआ है,
जिसने सोने को खोदा, लोहा मोड़ा है,
जो रवि के रथ का घोड़ा है,
वह जन मारे नहीं मरेगा,
नहीं मरेगा।
जो जीवन की धूल चाटकर बड़ा हुआ है,
तूफ़ानों से लड़ा और फिर खड़ा हुआ है,
जिसने सोने को खोदा, लोहा मोड़ा है,
जो रवि के रथ का घोड़ा है,
वह जन मारे नहीं मरेगा,
नहीं मरेगा।
जब भी कविता की सांस्कृतिक सार्थकता के समर्थक कवि और आत्मीय बेबाक अन्वेषणों और निजी सघन अनुभूतियों की कविता का ज़िक्र होगा, कवि केदारनाथ अग्रवाल याद आयेंगे। उनकी कविताओं को पढ़ते हुए अलग तरह की कलात्मक अनुभूति और रचना की नर्मी और गुदाजी का अहसास होता है। वह शिल्प के कटे-छटेपन और पॉलिश के लिए भी याद आते हैं। उनकी विशेषता है कि उन्होंने कविता में करोड़ों कर्म के उत्सव मनाये। वे हर रचना में मगन मन रहे। एकान्तवास की एक पंक्ति नहीं रची। साथ ही उनके मन में उत्पीड़ित, दुखी, संघर्षशील जनता से अथाह प्रेम था। उनकी कविता सिर्फ पढ़े जाने के लिए नहीं लगती है, बल्कि कवि होने की सीख लेने के लिए भी ज़रूरी लगती है।