म्यूरल आन्दोलन: मैक्सिकन क्रान्ति की आँच में निर्मित हुआ कला आन्दोलन
म्यूरल आन्दोलन: मैक्सिकन क्रान्ति की आँच में निर्मित हुआ कला आन्दोलन सनी मैक्सिको में जन्मे ‘जन तक कला’ ले जाने का आह्वान करने वाले म्यूरल आन्दोलन के इतिहास को लगभग…
म्यूरल आन्दोलन: मैक्सिकन क्रान्ति की आँच में निर्मित हुआ कला आन्दोलन सनी मैक्सिको में जन्मे ‘जन तक कला’ ले जाने का आह्वान करने वाले म्यूरल आन्दोलन के इतिहास को लगभग…
धुएँ से कजलाये
कोठे की भीत पर
बाँस की तीली की लेखनी से लिखी थी
राम-कथा व्यथा की
कि आज भी जो सत्य है
लेकिन, भाई, कहाँ अब वक़्त है !!
तसवीरें बनाने की
इच्छा अभी बाक़ी है–
सच्चे कलाकार को जनता के दुखों को अपने कैनवास, सेल्यूलोईड या संगीत में उतार लाना होगा। इस कथन में ही यह निहित है कि मौजूदा बाज़ार पर चलने वाली व्यवस्था में एक कलाकार को अपनी कलाकृति को बाजारू माल नहीं बल्कि जनपक्षधर औज़ार बनाना होगा। आज जिस समाज में हम जी रहे हैं वह मानवद्रोही और कलाद्रोही है और नैसर्गिक तौर पर कोई भी कलाकार इस समाज की प्रभावी विचारधारा से ही निगमन करता है परंतु उसकी कला उसकी पूँजीवादी विचारधारा के नज़रिये के विरोध में रहती है। कला इसलिए ही एक आदमी द्वारा दूसरे आदमी के शोषण पर टिके मौजूदा समाज के खिलाफ़ विद्रोह के साथ ही संगति में रहती है। आज जब देश में फासीवादी सरकार जनता के हक अधिकारों को अपने बूटों तले कुचल रही है तो क्या इन मसलों पर कलाकारों द्वारा एक जनपक्षधर विरोध देश में उठता दिख रहा है? नहींं। हालाँकि कलाकार भी इन सभी मुद्दों से अलहदा नहींं हैं। इस सवाल पर थोड़ा विस्तार से बात करते हैं।