म्यूरल आन्दोलन: मैक्सिकन क्रान्ति की आँच में निर्मित हुआ कला आन्दोलन

सनी

मैक्सिको में जन्मे ‘जन तक कला’ ले जाने का आह्वान करने वाले म्यूरल आन्दोलन के इतिहास को लगभग भुला दिया गया है। इस आन्दोलन से जुड़े रिवेरा और फ्रिडा काहलो का नाम तो फिर भी कला जगत में ले लिया जाता है। परन्तु इसे समाजवादी यथार्थवाद की धारा के रूप में या जनता के बीच कला लेकर जाने वाले आन्दोलन के रूप में नहीं जाना जाता है। वहीं म्यूरल आन्दोलन के जनकों में से एक सिक्वेरोस को बिलकुल ग़ायब कर दिया गया है। यह उनकी सक्रिय कम्युनिस्ट प्रतिबद्धता के कारण ही है। मैक्सिको का म्यूरल आन्दोलन 1920 से शुरू हुआ और 1970 तक जारी रहा।
1919 से मैक्सिको में और फिर उसके बाद मैक्सिको की सरकार के कलाकारों को दिया समर्थन वापस लेने पर अमरीका में कलाकार कलाकर्म करते रहे। बाद में कलाकारों की वापसी होने पर पुन: मैक्सिको में शानदार प्रयोग किये गये। कॉलेज, म्यूजि़यम से लेकर अस्पताल की दीवारें कैनवस बन गयीं। म्यूरल आन्दोलन ने मैक्सिको के इतिहास, उसकी जनता के संघर्षों की तस्वीरें उकेरीं। यह भी तब समझा जा सकता है जब हम मैक्सिको के इतिहास पर एक नज़र डालें। साथ ही मैक्सिकन म्यूरल आन्दोलन के प्रवर्तक सिक्वेरोस, रिवेरा और औरोको के जीवन पर एक संक्षिप्त दृष्टि डालें।
आज अकादमिक जगत में बीसवीं शताब्दी में कला के मानकों में निर्णायक बदलाव करने वाले नामों में पिकासो, दालीयापोलोक आदि को ही गिनाया जाता है। मानवतावाद का परचम लेकर उठी पुर्नजागरण कला, विद्रोही रूमानीवादी कला से गोया, दोलीकार से लेकर कूर्बे तक की यथार्थवाद तक की यात्रा में कला ने समाज को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। बीसवीं शताब्दी में समाजवादी यथार्थवाद ने इसका जिम्मा उठाया। म्यूरल आन्दोलन भी समाजवादी यथार्थवाद की धारा के रूप में अपनी जगह पाता है। परन्तु अकादमिक जगत में इस यात्रा में कलाकारों की सामाजिक ऐतिहासिक भूमिका मिटा दी जाती है और सार को भुलाकर केवल रूप पर ज़ोर दिया जाता है। कलाकारों में समाज के प्रति प्रतिबद्धता, जन के बीच कला लेकर जाने या सामूहिक प्रतिरोध की कोई अवधारणा पैदा न हो इसका कला महाविद्यालयों में सचेतन प्रयास होता है। कला छात्रों में जो जनपक्षधर होते भी हैं वे प्रगतिशील कलाकार बोहेमियन समझदारी के शिकार मिलते हैं। ऐसे में म्यूरल आन्दोलन की ज़मीन की पड़ताल करना एक ज़रूरी कार्यभार है क्योंकि यह आन्दोलन कलाकारों को जनता से जुड़ने और उनके संघर्षों और उनके स्वप्नों को ही सड़कों पर उकेरने का आह्वान करता है।
अकादमिक जगत में कला इतिहास को उबाऊ रहस्यवादी और अमूर्तन तथा निष्पक्ष तौर पर पेश किया जाता है। प्रगतिशील अध्यापक अमूर्त चिन्तन और उत्तरआधुनिक कला विमर्श में ही छात्रों को उलझा कर रखते हैं। दर्शन के तौर पर फ़ूको सरीखे प्रतिक्रियावादी चिन्तकों को ही पढ़ाया जाता है। भारतीय कला के नाम पर अक्सर कला विद्यालयों में छात्र ईश्वरों की तस्वीर बनाते हैं। ऐसे में इतिहास के पन्नों पर बैठी धूल को साफ़़ करना होगा ताकि भविष्य की ओर क़दम उठ सकें।
मैक्सिको का म्यूरल आन्दोलन मैक्सिको की ज़मीन पर उपनिवेशवादियों की लूट और क़त्लेआम, जनता के जीवन उनके संघर्षों और भविष्य को अभिव्यक्त करता है। म्यूरल पुर्नजागरण काल के फ्रेस्का को ही पुन: ऊँचे स्तर पर ले जाता है। यह ऐतिहासिक तौर पर निषेध का निषेध की ही प्रक्रिया है। एक ओर यह प्राचीन माया, एज़टेक व इंका सभ्यता से तत्व सोखता है तो दूसरी ओर पुर्नजागरण की कला की भव्यता और सबसे प्रमुख समाजवादी भविष्य के स्वप्नों को उकेरता है। यह सामाजिक यथार्थवाद की वह धारा है जो लातिन अमरीका की ज़मीन से निकली और नेरुदा की कविता, गालियानो और मार्खेज़ के जादुई यथार्थवाद के समानान्तर है परन्तु सिक्वेरोस की कलाकृतियाँ इन सभी से आगे जाती हैं। सिक्वेरोस ने म्यूरल व चित्रकला में इण्डस्ट्रियल पेण्ट का इस्तेमाल किया व उभर रहे समाज के दृश्यों के जो बिम्ब उकेरे वे शानदार हैं। सिक्वेरोस कल्चरल फोरम में सिक्वेरोस का काम आर्किटेक्चर के तत्वों को भी म्यूरल से मिलाता है। औरोको जहाँ युद्ध की त्रासदियों और जनपक्षधर म्यूरल बनाते हैं तो रिवेरा क्लासिकीय यूरोपीय फ्रेस्का के प्रयोगों को ही परिष्कृत करते हैं। मैक्सिको के आम जीवन को रिवेरा ने समाजवादी भविष्य से जोड़कर कई बेजोड़ म्यूरल बनाये।
पुर्नजागरण काल में बने फ्रेस्का को पुर्नजागरण काल में राफेयल और माइकल एन्जेलो सरीखे कलाकारों ने कला के ज़रिये मानवतावाद प्रचारित किया और सामन्तवाद की आत्मिक शक्ति के रूप में मौजूद कैथोलिक चर्च के वर्चस्व को चुनौती दी। म्यूरल आन्दोलन ने इस धारा को ही आगे बढ़ाते हुए जन संघर्षों और जन स्वप्नों के रंगों को सड़कों पर उकेरा। म्यूरल आन्दोलन के तीन महान कलाकारों के कलाकर्म पर और अधिक विस्तार में जाने से पहले हम मैक्सिको के इतिहास पर एक नज़र डाल लेंगे ताकि म्यूरल आन्दोलन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि समझी जा सके।
मैक्सिको का एक संक्षिप्त इतिहास और म्यूरल आन्दोलन की पृष्ठभूमि
मैक्सिको और पूरे लातिन अमेरिका का इतिहास एदुआर्दो गालियानो के इस कथन से समझा जा सकता है।
‘‘लातिन अमेरिका खुली शिराओं वाला देश है इसकी ख़ासियत इसकी हार में है, यह ख़ासियत तब से है जब पुनर्जागृत यूरोपियन समुद्र पार करके आये और इण्डियन सभ्यता के गले में अपने दाँत गाड़ दिये!’’
लातिन अमेरिका की हार का दौर यहीं से शुरू होता है। माया, एज़टेक और इंका सभ्यता जब आधुनिक मैक्सिको, पेरू और एण्डीज की पर्वत मालाओं पर बसी हुई थी। यूरोपियनों का लातिन अमेरिका में प्रवेश यहाँ की आदिम सभ्यताओं के लिए प्रलय का अन्तकारी पल साबित हुआ और उपनिवेशवादी क़त्लेआम और मानवता के भीषण नरसंहार की शुरुआत भी यहीं से शुरू हुई। लातिन अमेरिका पहले लातिन नहीं था, स्पेनी उपनिवेशवादियों ने अमेरिका की सभ्यता को लगभग ख़त्म करके इसे लातिन अमेरिका बनाया था। इस इतिहास की छाप म्यूरल आन्दोलन की हर कृति में दिखायी पड़ती है।
लातिन अमरीका की औपनिवेशिक व्यवस्था का आर्थिक मॉडल इकानोमीडिया था जो कि कब्ज़े वाली जगह पर रहने वाली इण्डियन (मूल) आबादी को ग़ुलाम के रूप में इस्तेमाल करने का अधिकार देता था। लातिन अमेरिका कई राष्ट्रीयताओं का गढ़ बन चुका था।
पुनर्जागरण और प्रबोधन के विचारों से जन्मी फ़्रांसीसी क्रान्ति व आज़ादी, बन्धुत्व और बराबरी के विचार स्पेन के उपनिवेशों में भी पहुँच रहे थे। नेपोलियन से हार के कगार पर पहुँच रहे स्पेन की स्थिति में उपनिवेशों में आज़ादी की लड़ाई छिड़ गयी। हालाँकि आज़ादी तो मिली पर कई रूपों में औपनिवेशिक रिश्ते क़ायम रहे, ग़ुलामी जारी रही। कडिलियोस जैसे ज़मींदारों के हाथ में ताकत आ गयी। मूल इण्डियन निवासी, अश्वेत नागरिक अब भी दोयम दर्ज़े के नागरिक का जीवन जी रहे थे। आगे आज़ादी के बाद का इतिहास उदारपन्थी और कट्टरपन्थियों के बीच टकराव, उभर रही बुर्ज़ुआजी,ज़मींदार व पिछड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले जो अब भी अपना माल विदेशों में बेचकर अमीर हो रहे थे।
औपनिवेशिक इतिहास से निकले लातिन अमेरिका के तमाम देशों में एक विशिष्ट किस्म के पूँजीवाद ने जन्म लिया। औपनिवेशिक अतीत के दौर में तो हर देश कुछ विशिष्ट उत्पादों का निर्यातक था ही (जैसे वेनेजुएला कॉफ़ी, बोलीविया कोकोवा, चिले नाइट्रेट, क्यूबा चीनी आदि) किन्तु आज़ादी के बाद भी इन देशों की अर्थव्यवस्थाएँ वैविध्यपूर्ण नहीं बन सकीं। औपनिवेशिक स्वतन्त्रता के बाद भी तमाम लातिन अमेरिकी देश साम्राज्यवादी लूट की खुली चारागाह के रूप में इस्तेमाल किये जाते रहे। तमाम देशों में साम्राज्यवादी लुटेरे अपनी कठपुतली सत्ताओं की स्थापना करते रहे और ये सत्ताएँ जनता के द्वारा भी लगातार और बार-बार उखाड़कर फ़ेंकी जाती रहीं जिससे यहाँ की जनता के ज़बरदस्त साम्राज्यवाद विरोध और जुझारूपन का परिचय मिलता है।
मैक्सिको में भी 1821 में आज़ादी मिली परन्तु शासन का चरित्र नहीं बदला। राजशाही व पुरानी लूट जारी थी। 1910 में जनवादी क्रान्ति शुरू होती है। 1910 में शुरू हुई क्रान्ति के बाद एक के बाद एक तानाशाह उखाड़े जाते हैं और 1914 के बाद मैक्सिको में कैरेन्ज़ा की संविधानवादी सेना, ज़पाटा के नेतृत्व वाली सेना और पैंचो विआ की सेना के बीच सत्ता के लिए 1920 तक गृह युद्ध जारी रहता है। ज़पाटा की हत्या और पैंचो विआ की हार के बाद संविधानवादी सरकार बनती है जो जनता के दबाव में प्रगतिशील क़दम उठाती है। जब गृह युद्ध चल रहा था तब सिक्वेरोस 15 साल की उम्र में कला विद्यालय की हड़ताल में शामिल थे। इस दौरान वे जेल भी गये। बहरहाल, ज़पाटा की माँगों को भी 1917 में संविधानवादी सेना नए संविधान में जगह देती है। कलाकारों को भी जनपक्षधर और शैक्षणिक कार्य हेतु कलाकर्म हेतु प्रोत्साहन मिलता है। संविधानवादियों की सेना में महज़ तेईस साल की उम्र में ही कैप्टन के पद पर काम कर रहे सिक्वेरोस भी सैन्य सेवा छोड़कर कलाकर्म में लग जाते हैं। सिक्वेरोस महज़ चौदह साल की उम्र में अपने बाप से मैक्सिकन क्रान्ति विरोध के सवाल पर झगड़कर घर छोड़कर निकल आये थे। वे तब कला विद्यालय में थे। 1919 के बाद सिक्वेरोस को यूरोप जाने का मौका मिला ताकि यूरोप में कला का अध्ययन कर सकें। गृह युद्ध से दूर रिवेरा फ़्रांस में कलाकर्म में लगे थे। सिक्वेरोस रिवेरा से मुलाकात कर इटली साथ जाते हैं और पुर्नजागरण काल के फ्रेस्का देखने के बाद ही म्यूरल आन्दोलन की मुख्य प्रतिस्थापनाओं पर चर्चा करते हैं। सिक्वेरोस मैक्सिको के कलाकारों के नाम ‘विवा अमेरिका’ में एक घोषणापत्र लिख मैक्सिको के म्यूरल आन्दोलन का सूत्रपात करते हैं।
सड़कें ही हमारी म्यूज़ियम होंगी
सिक्वेरोस का ‘अमरीकी चित्रकारों और मूर्तिकारों की नयी पीढ़ी का नया रास्ता’ नामक घोषणापत्र असल में म्यूरल आन्दोलन का घोषणापत्र था, जिसमें उन्होंने मैक्सिको की विरासत, जनता के संघर्षों और मशीन युग के नये भविष्य को मज़दूरों के बीच ले जाने का आह्वान किया। अपने कलाकर्म को जनता तक पहुँचाने के लिए नये-नये रास्ते तलाश रहे थे। यहीं उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी से सम्पर्क किया और उसके नेतृत्व में ही कलाकारों, स्कल्पटर्स और इनग्रवर्स की यूनियन गठित की। इस यूनियन के मुखपत्र के रूप में सिक्वेरोस व अन्य कलाकारों ने ‘एल मैशेट’ पत्रिका निकाली। यह पत्रिका सरकार की वायदाखि़लाफ़ी और निरंकुश चरित्र व अमरीकापरस्ती को खुली चुनौती बन रही थी। सरकार ने बतौर कला अध्यापक सिक्वेरोस को नौकरी से निकाल दिया। परन्तु सिक्वेरोस ‘एल मैशेट’ निकालते रहे। इस दौरान रिवेरा ने सरकार परस्ती की राह चुनी। सिक्वेरोस सक्रिय कम्युनिस्ट के तौर पर मज़दूरों को संगठित करने लगे। ‘एल मैशेट’ कम्युनिस्ट पार्टी का मुखपत्र बन गया। सिक्वेरोस केन्द्रीय कमेटी में चुन लिए गये। वहीं औरोको गृह युद्ध की ही भांति सबसे ख़ुद को अलग कर निष्पक्ष बन अमेरिका और मैक्सिको में म्यूरल बनाते रहे। ‘एल मैशेट’ का चरित्र भी एक दीवार पत्रिका के रूप में ही था। सिक्वेरोस के शब्दों में ‘एल मैशेट’ को मज़दूर बस्तियों में कारखाना इलाकों में दीवार पत्रिका की तरह चिपकाना ही था, जिससे कि यह म्यूरल का ही काम करे। सिक्वेरोस सोवियत रूस भी गये जहाँ उनकी स्तालिन से भी मुलाकात हुई। मायाकोव्स्की और रिवेरा से अलग सिक्वेरोस स्तालिन की इस बात से सहमत थे कि कला को मेहनतकश जनता की सेवा करनी चाहिए। मैक्सिको वापस जाने पर वे और अधिक सघनता से कम्युनिस्ट पार्टी में सक्रिय रहे। अगले हिस्से में हम सिक्वेरोस, रिवेरा व औरोको के जीवन की यात्रा पर बात करेंगे और उनके वैयक्तिक कलाकर्म पर बात रखेंगे। (अगले अंक में जारी)

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, जुलाई-अगस्त 2021

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