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गाज़ा में इज़रायल की हार और आगे की सम्भावनाएँ

किसी हद तक फ़िलिस्तीनी जनता का भविष्य समूचे अरब क्षेत्र में जन मुक्ति संघर्ष के आगे बढ़ने के भविष्य के साथ भी जुड़ा है। आने वाले दिनों में अन्तरसाम्राज्यवादी प्रतियोगिता के नये दौर के गति पकड़ने का भी इस पर अनुकूल सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। मुक्ति की मंज़िल अभी दूर है, पर इतना सिद्ध हो चुका है कि असीम सामरिक शक्ति के बूते भी एक छोटे से देश की जनता को ग़ुलाम बनाकर रख पाना मुमकिन नहीं। जनता अजेय होती है। आने वाले दिनों में भी फ़िलिस्तीन में ज़ायनवादी ज़ुल्म और अँधेरगर्दी जारी रहेगी, लेकिन इतना तय है कि हर अत्याचार का जवाब फ़िलिस्तीनी जनता ज़्यादा से ज़्यादा जुझारू प्रतिरोध द्वारा देगी। ज़ायनवादियों को आने वाले दिनों में कुछ महत्त्वपूर्ण रियायतें देने के लिए भी मजबूर होना पड़ सकता है। और देर से ही सही, फ़िलिस्तीनी जन जब निर्णायक विजय की मंज़िल के करीब होंगे तो उनके तमाम अरब बन्धु भी तब मुक्ति संघर्ष के पथ पर आगे क़दम बढ़ा चुके रहेंगे।

इज़रायली जियनवादियों का फ़िलिस्तीनी जनता पर नया हमला

इतने वर्षों के संघर्ष के बाद इज़रायली जनता का भी एक बड़ा हिस्सा इस बात को समझने लगा है कि इज़रायल-फ़िलिस्तीन समस्या का “दो-राज्य समाधान” ही सम्भव और वांछित समाधान है। लेकिन साम्राज्यवाद और उसके टुकड़ों पर पलने वाले जियनवाद के रहते यह समाधान प्राप्त नहीं किया जा सकता। इनके ख़िलाफ़ संघर्ष आज अरब जनता के एजेण्डे पर सबसे ऊपर है और इस संघर्ष के नतीजे पर ही इज़रायल-फ़िलिस्तीन समस्या का समाधान निर्भर करता है। फ़िलिस्तीनी जनता को कोई सेना और हथियारों का जखीरा नहीं हरा सकता।